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आखिर झारखंड में कांग्रेस क्यों हुई 'बेपटरी', कभी दी जाती थी पार्टी की मजबूती की मिसाल - झारखंड समाचार

इस साल के आखिर तक झारखंड में विधानसभा चुनाव होने हैं. ऐसे में पिछले दिनों कांग्रेस में उठे बवंडर के बाद पूरा खेमा चिंतित है. दिल्ली में हुई बैठक के बाद पार्टी डेमेज कंट्रोल का दावा कर रही है जिसका परिणाम हमें चुनाव के बाद ही देखने को मिलेगा.

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Published : Aug 5, 2019, 7:10 PM IST

रांची: 2014 और 2019 के लोकसभा चुनावों में करारी हार के बाद से नेतृत्व संकट से गुजर रही कांग्रेस पार्टी के बुरे दिन मानो खत्म होने का नाम नहीं ले रहे हैं. पार्टी को देशभर में किसी संजीवनी की तलाश है, झारखंड में भी पार्टी की स्थिति खस्ताहाल है. एक अगस्त 2019 को झारखंड के स्टेट हेड क्वार्टर में धक्का-मुक्की और हंगामे की जो तस्वीर सामने आई उसकी कल्पना तो विरोधियों ने भी नहीं की थी.

संयुक्त बिहार के समय से ही ये इलाका कांग्रेस के लिए काफी अहम रहा है. यहां शुरूआती दिनों से यहां के कई दिगग्ज जैसे दिवंगत जयपाल सिंह मुंडा, कार्तिक उरांव, थॉमस हांसदा, सुशीला केरकेट्टा समेत अनेक नेताओं ने जल, जंगल और जमीन के नारे के बीच कांग्रेस को गांव-गांव तक पहुंचाया था, जिसके बदले इनमें से कई नेताओं को देश के मंत्रिमंडल में जगह मिली थी तो कई नेताओं को पार्टी के बड़े पदों पर विराजमान होने का अवसर भी मिला था. ये नेता क्षेत्र में मजबूत पकड़ तो रखते ही थे. इसके अलावा दिल्ली दरबार में भी इनकी गजब की दखल थी लेकिन अब संभावनाओं से भरे इस प्रदेश में पार्टी का दोरोमदार गुटबाजी के शिकार इन्हीं नेताओं पर हैं.

ये भी पढ़ें- क्या इस्तीफे की दौर से घबराई महानगर कांग्रेस? कमिटी भंग कर पुनर्गठन का प्रस्ताव पारित

प्रदेश अध्यक्ष डॉ अजय कुमार और पूर्व केंद्रीय मंत्री सुबोधकांत सहाय के बीच गुटबाजी लोकसभा चुनाव के बाद से ही चल रही है. एक अगस्त को ये सतह पर आ गया. जानकारों की मानें को गुटबाजी की वजह टिकट बंटवारा है. भले ही विधानसभा चुनाव में अभी वक्त हो लेकिन टिकटों के लिए फिल्डिंग अभी से हो रही है. असल में अजय कुमार खुद जमशेदपुर पश्चिमी सीट से चुनाव लड़ने की मंशा रखते हैं जबकि वहां से पूर्व विधायक बन्ना गुप्ता हर हाल में किसी और को इस सीट पर उतरने नहीं देना चाहते.

इधर, हटिया से अजय कुमार अजयनाथ शाहदेव के पक्ष में जबकि सुबोधकांत सहाय अपने भाई सुनील सहाय को वहां से उतारना चाहते हैं. इतना ही नहीं कोल्हान की घाटशिला सीट से पूर्व राज्यसभा सांसद प्रदीप बलमुचू चुनाव लड़ने की मंशा रखते हैं, जहां से अभी जेएमएम के विधायक हैं. ददई दूबे भी अपने बेटे अजय दूबे को टिकट दिलवाना चाहते हैं.

ये भी पढ़ें- JPCC अध्यक्ष डॉ अजय कुमार ने रांची महानगर कांग्रेस कमिटी को किया भंग, 10 दिनों में होगा पुनर्गठन

कांग्रेस में उपजे इस विवाद को खत्म करने के लिए 3 अगस्त को दिल्ली कांग्रेस मुख्यालय में एक अहम बैठक हुई थी. जिसमें राष्ट्रीय संगठन सचिव केसी वेणुगोपाल ने दोनों पक्षों बातें सुनी और एकजुट होकर आगे की तैयारी करने का निर्देश दिया. इसके साथ ही कहा कि फिलहाल अजय कुमार ही प्रदेश अध्यक्ष के पद पर काबिज रहेंगे लेकिन उन्हें भी इश बाद का अहसास है कि अजय कुमार समेत झारखंड के इन नेताओं के को रहत मिलेगी या फिर ये किसी आफत में जाएंगे इसका फैसला विधानसभा चुनाव के बाद ही होगा.

मौजूदा समय में कांग्रेस के विधायकों की संख्या 6 और सांसदों की संख्या 2 है, जिसमें से एक लोकसभा और एक राज्यसभा का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं. इस लिहाज से इस लिहाज से दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी से लोहा लेने के लिए कांग्रेस को पुराने तेवर और कलेवर में आने के लिए तमाम 'किचकिच' जल्द से ज्लद दूर करना होगा.

रांची: 2014 और 2019 के लोकसभा चुनावों में करारी हार के बाद से नेतृत्व संकट से गुजर रही कांग्रेस पार्टी के बुरे दिन मानो खत्म होने का नाम नहीं ले रहे हैं. पार्टी को देशभर में किसी संजीवनी की तलाश है, झारखंड में भी पार्टी की स्थिति खस्ताहाल है. एक अगस्त 2019 को झारखंड के स्टेट हेड क्वार्टर में धक्का-मुक्की और हंगामे की जो तस्वीर सामने आई उसकी कल्पना तो विरोधियों ने भी नहीं की थी.

संयुक्त बिहार के समय से ही ये इलाका कांग्रेस के लिए काफी अहम रहा है. यहां शुरूआती दिनों से यहां के कई दिगग्ज जैसे दिवंगत जयपाल सिंह मुंडा, कार्तिक उरांव, थॉमस हांसदा, सुशीला केरकेट्टा समेत अनेक नेताओं ने जल, जंगल और जमीन के नारे के बीच कांग्रेस को गांव-गांव तक पहुंचाया था, जिसके बदले इनमें से कई नेताओं को देश के मंत्रिमंडल में जगह मिली थी तो कई नेताओं को पार्टी के बड़े पदों पर विराजमान होने का अवसर भी मिला था. ये नेता क्षेत्र में मजबूत पकड़ तो रखते ही थे. इसके अलावा दिल्ली दरबार में भी इनकी गजब की दखल थी लेकिन अब संभावनाओं से भरे इस प्रदेश में पार्टी का दोरोमदार गुटबाजी के शिकार इन्हीं नेताओं पर हैं.

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प्रदेश अध्यक्ष डॉ अजय कुमार और पूर्व केंद्रीय मंत्री सुबोधकांत सहाय के बीच गुटबाजी लोकसभा चुनाव के बाद से ही चल रही है. एक अगस्त को ये सतह पर आ गया. जानकारों की मानें को गुटबाजी की वजह टिकट बंटवारा है. भले ही विधानसभा चुनाव में अभी वक्त हो लेकिन टिकटों के लिए फिल्डिंग अभी से हो रही है. असल में अजय कुमार खुद जमशेदपुर पश्चिमी सीट से चुनाव लड़ने की मंशा रखते हैं जबकि वहां से पूर्व विधायक बन्ना गुप्ता हर हाल में किसी और को इस सीट पर उतरने नहीं देना चाहते.

इधर, हटिया से अजय कुमार अजयनाथ शाहदेव के पक्ष में जबकि सुबोधकांत सहाय अपने भाई सुनील सहाय को वहां से उतारना चाहते हैं. इतना ही नहीं कोल्हान की घाटशिला सीट से पूर्व राज्यसभा सांसद प्रदीप बलमुचू चुनाव लड़ने की मंशा रखते हैं, जहां से अभी जेएमएम के विधायक हैं. ददई दूबे भी अपने बेटे अजय दूबे को टिकट दिलवाना चाहते हैं.

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कांग्रेस में उपजे इस विवाद को खत्म करने के लिए 3 अगस्त को दिल्ली कांग्रेस मुख्यालय में एक अहम बैठक हुई थी. जिसमें राष्ट्रीय संगठन सचिव केसी वेणुगोपाल ने दोनों पक्षों बातें सुनी और एकजुट होकर आगे की तैयारी करने का निर्देश दिया. इसके साथ ही कहा कि फिलहाल अजय कुमार ही प्रदेश अध्यक्ष के पद पर काबिज रहेंगे लेकिन उन्हें भी इश बाद का अहसास है कि अजय कुमार समेत झारखंड के इन नेताओं के को रहत मिलेगी या फिर ये किसी आफत में जाएंगे इसका फैसला विधानसभा चुनाव के बाद ही होगा.

मौजूदा समय में कांग्रेस के विधायकों की संख्या 6 और सांसदों की संख्या 2 है, जिसमें से एक लोकसभा और एक राज्यसभा का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं. इस लिहाज से इस लिहाज से दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी से लोहा लेने के लिए कांग्रेस को पुराने तेवर और कलेवर में आने के लिए तमाम 'किचकिच' जल्द से ज्लद दूर करना होगा.

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