रांचीः महाराष्ट्र में पुणे के भीमा कोरेगांव में दो साल पहले हुई हिंसा की आंच झारखंड तक पहुंच गई है. एनआईए की चार्जशीट में रांची के सामाजिक कार्यकर्ता स्टेन स्वामी को माओवादी बताया गया है. इस बीच झारखंड सरकार खुलकर स्टेन स्वामी की गिरफ्तारी का विरोध कर रही है.
पुणे के भीमा कोरेगांव केस में राष्ट्रीय जांच एजेंसी यानी एनआईए ने 10 हजार पन्नों की चार्जशीट दायर की है. इस चार्जशीट में स्टेन स्वामी को भाकपा माओवादी संगठन का सक्रिय सदस्य बताया गया है. उन्हें भाकपा माओवादियों की फ्रंटल आर्गेनाइजेशन परसीक्यूटेड प्रिजनर्स सॉलिडैरिटी कमेटी (पीपीएससी) का संयोजक भी बताया गया है. इसके अनुसार स्टेन स्वामी महाराष्ट्र के भाकपा माओवादियों से लगातार संपर्क में थे. उन पर माओवादी कैडरों के लिए फंड का जुगाड़ करने का आरोप भी लगाया गया है. इंस्पेक्टर स्तर के अधिकारी अजय कुमार कदम के नेतृत्व में एनआईए की टीम ने 8 अक्तूबर की रात फादर स्टेन स्वामी को नामकुम के बगइचा स्थित आवास से गिरफ्तार किया था. इसके बाद शुक्रवार को उन्हें फ्लाइट से मुंबई ले जाया गया.
इससे पहले 28 अगस्त 2018 को भी महाराष्ट्र पुलिस ने स्टेन स्वामी के कमरे की तलाशी ली थी. 12 जुलाई 2019 को महाराष्ट्र पुलिस की आठ सदस्यीय टीम ने रांची में स्टेन स्वामी के घर पर छापा मारा था. पुलिस ने साढ़े तीन घंटों तक उनके कमरे की छानबीन की थी. टीम ने उनके कंप्यूटर की हार्ड डिस्क और इंटरनेट मॉडेम जब्त कर लिया गया था. उनसे उनके ईमेल और फेसबुक के पासवर्ड मांगकर पासवर्ड बदल दिए थे. दोनों अकाउंट जब्त भी कर लिए गए थे, ताकि डाटा की जांच की जा सके. एनआईए की टीम 6 अगस्त को दिल्ली से आई थी. तब लगभग तीन घंटे तक पूछताछ की गई थी. बीते दिनों एनआईए मुंबई ने पूछताछ के लिए समन भी भेजा था, तब स्टेन स्वामी ने अपनी बिगड़ी तबीयत की जानकारी ईमेल के जरिये दी थी और वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए एनआईए के सामने हाजिर होने की गुहार लगाई थी.
स्टेन स्वामी को सरकार का साथ
स्टेन स्वामी की गिरफ्तारी का झारखंड सरकार खुलकर विरोध कर रही है. मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने ट्वीट कर कहा है कि गरीब, वंचितों और आदिवासियों की आवाज उठाने वाले स्टेन स्वामी को गिरफ्तार कर केंद्र की भाजपा सरकार क्या संदेश देना चाहती है? अपने विरोध की हर आवाज को दबाने की ये कैसी जिद्द है? वहीं झारखंड के वित्त मंत्री रामेश्वर उरांव ने कहा कि केंद्र सरकार अर्बन नक्सलवाद के नाम पर देश के विभिन्न हिस्सों में रहने वाले बुद्धिजीवियों को प्रताड़ित करने की कार्रवाई कर रही है. उन्होंने कहा कि फादर स्टेन स्वामी 25 वर्षां से रांची में रहकर जनजातीय समुदाय के उत्थान में जुटे हैं. ऐसे में अर्बन नक्सलवाद के नाम पर उन्हें फंसाने की कोशिश की जा रही है. उन्होंने कहा कि इससे पहले भी भाजपा नेतृत्व वाली सरकार के इशारे पर महाराष्ट्र पुलिस स्टेन स्वामी के घर छापेमारी कर चुकी है. कांग्रेस के प्रदेश प्रवक्ता आलोक कुमार दूबे, लाल किशोरनाथ शाहदेव और राजेश गुप्ता ने भी आरोप लगाया कि केंद्र सरकार जांच एजेंसियों का दुरुपयोग कर रही है. इसके साथ ही कई सामाजिक कार्यकर्ताओं का विरोध सड़कों पर दिखने लगा है. इसी के तहत शुक्रवार को रांची के अल्बर्ट एक्का चौक में विभिन्न आदिवासी और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने मानव श्रृंखला बनाकर स्टेन को रिहा करने की मांग की.
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स्टेन स्वामी का विवादों से नाता
साल 2017 में शुरू हुए पथलगड़ी आंदोलन को लेकर स्टेन स्वामी विवादों में आए थे. खूंटी में लोगों को पत्थलगड़ी के लिए उकसाने के आरोपी स्टेन स्वामी पर पुलिस ने देशद्रोह, सोशल मीडिया के माध्यम से पत्थलगड़ी को बढ़ावा देने, सरकार के खिलाफ लोगों को भड़काने और सरकारी योजनाओं का विरोध करने का आरोप लगाया था. स्टेन स्वामी के खिलाफ खूंटी थाना में 26 जुलाई 2018 को आईटी एक्ट के तहत इन सभी मामलों पर केस दर्ज किया गया था. खूंटी एसपी ने 25 जनवरी 2019 को इस कांड में आरोपी फादर स्टेट स्वामी, बबीता कच्छप, सुकुमार सोरेन, विरास नाग, थॉमस रूंडा, वाल्टर कंडुलना, घनश्याम बिरूली, धरमकिशो कुल्लू, साम टुडू, गुलशन टुडू, मुक्ति तिर्की, राकेश रोशनकिरो, अजल कंडुलना, अनुपम सुमित लकड़ा, अजंग्या बिरूआ, विकास कोड़ा, विनोद केरकेट्टा, आलोका कुजूर, विनोद कुमार, थियोडर किडो की गिरफ्तारी का आदेश दिया था. इसके बाद खूंटी पुलिस ने 21 अक्टूबर 2019 को स्टेन स्वामी के घर की कुर्की जब्ती की थी. हालांकि 2019 में राज्य में नई सरकार आते ही राजद्रोह का मुकदमा वापस ले लिया गया.
कौन हैं स्टेन स्वामी
मूल रूप से केरल के रहने वालेस्वामी स्टेन झारखंड के जाने-माने सामाजिक कार्यकर्ता हैं. 84 वर्षीय स्टेन बीते करीब 25 सालों से वे झारखंड में रह रहे हैं. रांची के नामकुम थाना क्षेत्र के बगइचा में स्टेन स्वामी का घर है. वे यहां आदिवासी और वंचित समूहों के लिए काम करते हैं. स्टेन स्वामी हमेशा से आदिवासियों के पक्ष और सरकार के विरोध में मुखर रहे हैं. वे लगातार ये सवाल उठाते रहे कि सरकार संविधान की पांचवीं अनुसूची क्यों लागू नहीं कर रही है, जो आदिवासी इलाकों में आदिवासी सलाहकार परिषद बनाने का निर्देश देती है. ये परिषद आदिवासियों के विकास के लिए राज्यपाल के सलाहकार का काम करेगी.
क्या है भीमा कोरेगांव मामला
महाराष्ट्र में पुणे के पास भीमा कोरेगांव में 1 जनवरी 1818 को ईस्ट इंडिया कंपनी ने महार समुदाय की मदद से पेशवा की सेना को हराया था. इसे दलितों के शौर्य का प्रतीक मानकर हर साल उत्सव मनाया जाता है. साल 2018 में इस उत्सव के ठीक एक दिन पहले एल्गर परिषद ने रैली की थी. इसी रैली में हिंसा भड़काने की भूमिका तैयार करने के आरोप लगाए गए हैं. रैली में कथित भड़काऊ भाषणों की वजह से 1 जनवरी 2018 को जातिगत हिंसा हुई थी.
इस संगठन पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की हत्या की साजिश रचने का भी आरोप लगाया गया था. भीमा कोरेगांव में हिंसा और अर्बन नक्सलियों के ओर से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की हत्या की योजना बनाने के मामले में राष्ट्रीय जांच एजेंसी ने जनवरी 2020 में केस टेकओवर किया था. एनआईए ने इस मामले में स्टेन स्वामी सहित 8 लोगों के खिलाफ चार्जशीट दायर की है. आरोपियों में दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर हनी बाबू, सामाजिक कार्यकर्ता नवलखा, गोवा इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट के प्रोफेसर आनंद तेलतुंबड़े और कबीर कला मंच के तीन सदस्यों ज्योति जगदीप, रमेश गाईचोर और सागर गोरखे के नाम भी हैं. इस मामले में आरोपी नवलखा का लिंक पाकिस्तान की जासूसी एजेंसी आईएसआई से होना बताया गया है.