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दुर्गाबाटी मंदिर से माता को नम आंखों से दी गई विदाई, कंधे पर उठाकर प्रतिमा को ले जाते हैं लोग - रांची के दुर्गा बाड़ी मंदिर

रांची के दुर्गाबाटी मंदिर में 9 दिनों तक माता दुर्गा की पूजा के बाद विधान अनुसार विजयादशमी के दिन माता को विदाई दी गई. यहां की परंपरा अन्य जगहों से बेहद अलग और अनोखा माना जाता है. लोग कंधे पर उठाकर माता की प्रतिमा को विसर्जन करने ले जाते हैं.

नम आंखों से दी गई विदाई
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Published : Oct 8, 2019, 7:51 PM IST

रांची: राजधानी स्थित दुर्गाबाटी मंदिर में नियम समय और विधान का काफी ख्याल रखा जाता है. समय के साथ यहां पूजा की शुरुआत होती है और समय के साथ ही अनुष्ठान संपन्न भी कराए जाते हैं. इसी कड़ी में दुर्गाबाटी में 9 दिनों तक लगातार मां दुर्गे की आराधना के बाद दसवें दिन यानी विजयादशमी के दिन ही विसर्जन कर दी गई.

देखें पूरी खबर

कंधे पर उठाकर विदा देने की है परंपरा
यह भी पारंपरिक रिवाजों में से एक है, दशमी को ही यहां पूरे विधि विधान के साथ मां को कंधे पर उठाकर विदा देने की परंपरा है. बताया जाता है कि दुर्गाबाटी मंदिर की मां दुर्गे की प्रतिमा को विसर्जन करने के लिए किसी वाहन या फिर गाड़ी की व्यवस्था नहीं करनी पड़ती है और न ही किसी को बुलाने की जरूरत पड़ती है. श्रद्धालु खुद-ब-खुद समय और वक्त देखकर यहां पहुंच जाते हैं और मां की प्रतिमा के विसर्जन में पूरे भक्ति के साथ जुट जाते हैं.

दशमी के दिन ही दी जाती है विदाई
एक परंपरा के तहत मां की विदाई दशमी को ही यहां पूरे पारंपरिक विधि विधान के साथ होती है. इस वर्ष भी विजयादशमी के दिन विसर्जन के दौरान पुरुष मां की प्रतिमा को अपने कंधे पर लेकर विसर्जन स्थल तक गए और महिलाएं लाल पाढ़ साड़ी पहनकर विसर्जन शोभायात्रा के आगे-आगे ढाक की धुन पर नाचते गाते हुए विसर्जन स्थल तक पहुंची.

ये भी पढ़ें- शक्तिपीठ छिन्नमस्तिका मंदिर में भक्तों की उमड़ी भीड़, माता को मछली का लगाया गया भोग

नम आंखों से मां को विदाई
मां की विदाई की बेला में एक तरफ जहां श्रद्धालुओं की आंखें नम थी. तो वहीं, इस बात की भी खुशी थी कि मां दुर्गे 9 दिनों तक अपने भक्तों के बीच रह कर तमाम दुख-कलेश और कष्टों को हर कर गई है. अगले बरस दोबारा मां आएगी इसी उम्मीद के साथ भक्तों ने मां को विदा किया.

रांची: राजधानी स्थित दुर्गाबाटी मंदिर में नियम समय और विधान का काफी ख्याल रखा जाता है. समय के साथ यहां पूजा की शुरुआत होती है और समय के साथ ही अनुष्ठान संपन्न भी कराए जाते हैं. इसी कड़ी में दुर्गाबाटी में 9 दिनों तक लगातार मां दुर्गे की आराधना के बाद दसवें दिन यानी विजयादशमी के दिन ही विसर्जन कर दी गई.

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कंधे पर उठाकर विदा देने की है परंपरा
यह भी पारंपरिक रिवाजों में से एक है, दशमी को ही यहां पूरे विधि विधान के साथ मां को कंधे पर उठाकर विदा देने की परंपरा है. बताया जाता है कि दुर्गाबाटी मंदिर की मां दुर्गे की प्रतिमा को विसर्जन करने के लिए किसी वाहन या फिर गाड़ी की व्यवस्था नहीं करनी पड़ती है और न ही किसी को बुलाने की जरूरत पड़ती है. श्रद्धालु खुद-ब-खुद समय और वक्त देखकर यहां पहुंच जाते हैं और मां की प्रतिमा के विसर्जन में पूरे भक्ति के साथ जुट जाते हैं.

दशमी के दिन ही दी जाती है विदाई
एक परंपरा के तहत मां की विदाई दशमी को ही यहां पूरे पारंपरिक विधि विधान के साथ होती है. इस वर्ष भी विजयादशमी के दिन विसर्जन के दौरान पुरुष मां की प्रतिमा को अपने कंधे पर लेकर विसर्जन स्थल तक गए और महिलाएं लाल पाढ़ साड़ी पहनकर विसर्जन शोभायात्रा के आगे-आगे ढाक की धुन पर नाचते गाते हुए विसर्जन स्थल तक पहुंची.

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नम आंखों से मां को विदाई
मां की विदाई की बेला में एक तरफ जहां श्रद्धालुओं की आंखें नम थी. तो वहीं, इस बात की भी खुशी थी कि मां दुर्गे 9 दिनों तक अपने भक्तों के बीच रह कर तमाम दुख-कलेश और कष्टों को हर कर गई है. अगले बरस दोबारा मां आएगी इसी उम्मीद के साथ भक्तों ने मां को विदा किया.

Intro:रांची।


रांची के दुर्गा बाड़ी मंदिर में नियम समय और विधान का काफी ख्याल रखा जाता है .समय के साथ यहां पूजा की शुरुआत होती है और समय के साथ ही अनुष्ठान संपन्न भी कराए जाते हैं .इसी कड़ी में दुर्गाबाटी में 9 दिनों तक लगातार मां दुर्गे की आराधना के बाद दसवे दिन यानी विजयादशमी के दिन ही विसर्जन कर दी गई. यह भी पारंपरिक रिवाजों में से एक है. दशमी को ही यहां पूरे विधि विधान के साथ मां को विदा देने की परंपरा है .वह भी कंधे पर उठाकर.......


Body:दुर्गाबाटी मंदिर की मां दुर्गे की प्रतिमा को विसर्जन करने के लिए किसी वाहन या फिर गाड़ी की व्यवस्था नहीं करनी पड़ती है और ना ही किसी को बुलाने की जरूरत पड़ती है. श्रद्धालु खुद-ब-खुद समय और वक्त देखकर यहां पहुंच जाते हैं और मां की प्रतिमा के विसर्जन में पूरे भक्ति के साथ जुट जाते हैं. एक परंपरा के तहत मां की विदाई दशमी को ही यहां पूरे पारंपरिक विधि विधान के साथ होती है. इस वर्ष भी विजयादशमी के दिन विसर्जन के दौरान सारे पुरुष मां की प्रतिमा को अपने कंधे पर लेकर विसर्जन स्थल तक गए और महिलाएं लाल पाल साड़ी पहनकर विसर्जन शोभायात्रा के आगे आगे ढाकी की धुन पर नाचते गाते हुए विसर्जन स्थल तक पहुंची. मां की विदाई की बेला में एक तरफ जहां श्रद्धालुओं की आंखें नम थी. तो वहीं इस बात की भी खुशी थी कि मां दुर्गे 9 दिनों तक अपने भक्तों के बीच रह कर तमाम क्लेश- दुख और कष्टों को हर कर गई है. अगले बरस दोबारा मां आएगी इसी उम्मीद के साथ भक्तों ने मां को विदा किया.........


Conclusion:दशमी के साथ ही दुर्गोत्सव की समाप्ति हो जाती है...


बाइट-महुआ मांझी, श्रद्धालु।
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