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नियुक्ति नियमावली संबंधित मूल रिकॉर्ड हाईकोर्ट में पेश, 13 जनवरी को होगी अगली सुनवाई - Jharkhand news

नई नियोजन नीति में झारखंड कर्मचारी चयन आयोग द्वारा ली जाने वाली परीक्षा से हिंदी को हटा दिया गया है. इसके बाद झारखंड से 10वीं और 12वीं पास करने वाले गैर आरक्षित श्रेणी के छात्रों को भाग लेने की अनुमति दिए जाने पर झारखंड हाईकोर्ट में सुनवाई हुई. कोर्ट के आदेश के बाद राज्य सरकार की ओर से नई नियोजन नीति से संबंधित सभी मूल रिकॉर्ड अदालत में पेश किया गया. हालांकि समय कम होने के कारण मामले पर विस्तृत सुनवाई नहीं हो सकी. अदालत ने अगली सुनवाई के लिए 13 जनवरी की तारीख निर्धारित की है.

Hearing in Jharkhand High Court on new planning policy
Hearing in Jharkhand High Court on new planning policy
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Published : Jan 6, 2022, 10:02 PM IST

रांची: झारखंड हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश डॉ रवि रंजन और न्यायाधीश सुजीत नारायण प्रसाद की अदालत में झारखंड कर्मचारी चयन आयोग द्वारा ली जाने वाली परीक्षा से हिंदी को हटा दिया गया है. इसके बाद झारखंड से 10वीं और 12वीं पास करने वाले गैर आरक्षित श्रेणी के छात्रों को भाग लेने की अनुमति दिए जाने के मामले पर सुनवाई हुई. सुनवाई के दौरान राज्य सरकार ने रिकॉर्ड के मूल दस्तावेज पेश किए. हालांकि कम समय होने के कारण मामले पर विस्तृत सुनवाई नहीं हो सकी और सरकार को निर्देश दिया कि सभी संबंधित मूल रिकॉर्ड रजिस्टार जनरल के पास जमा कर दिया जाए. इस मामले की अगली सुनवाई 13 जनवरी को होगी. इससे पहले अदालत ने राज्य सरकार पर कड़ी नाराजगी व्यक्त करते हुए नियोजन नीति से संबंधित हुई बैठक की मूल संचिका अदालत में पेश करने का आदेश दिया था. उसी आदेश के के बाद मूल संचिका को कोर्ट में पेश किया गया था. जिसे अदालत के निर्देश के बाद रजिस्टार जनरल के पास जमा कर दिया गया है.

ये भी पढ़ें: निशिकांत दुबे की फर्जी डिग्री मामले में झारखंड हाईकोर्ट में सुनवाई, अगले आदेश तक बढ़ा अंतरिम राहत

रमेश हांसदा ने हाईकोर्ट में नई योजन नीति को चुनौती दी है उनकी ओर से बताया गया था कि नियुक्ति नियमावली में जो संशोधन की गई है, वह गलत और असंवैधानिक है. इसलिए इसे रद्द कर दिया जाए. उन्होंने अदालत को यह बताया कि नियुक्ति नियमावली में सिर्फ झारखंड से 10वीं और 12वीं करने वाले अभ्यर्थियों को ही झारखंड कर्मचारी चयन आयोग के द्वारा आयोजित होने वाली प्रतियोगिता परीक्षा में भाग लेने की अनुमति होगी. झारखंड के वैसे निवासी जिन्हें आरक्षण का लाभ नहीं दिया जा रहा है सिर्फ उन पर ही यह नियम लागू होगा. झारखंड के वैसे निवासी जिन्हें यहां आरक्षण का लाभ दिया जाता है उस पर यह नियम शिथिल रहेगा. राज्य के सभी सरकारी स्कूलों में हिंदी माध्यम से पढ़ाया जाता है. सर्वाधिक लोगों की भाषा हिंदी है. लेकिन इस संशोधित नियमावली में हिंदी को ही हटा दिया गया. उर्दू भाषा एक खास वर्ग के लिए है उसे इस नियमावली में जोड़ दिया गया है. उन्होंने यह भी कहा कि यह नियम एक खास वर्ग के लिए बनाया गया है. इसलिए यह नियम असंवैधानिक है. इसे निरस्त कर दिया जाए.

वहीं, एक दूसरे मामले में झारखंड हाईकोर्ट के जस्टिस राजेश शंकर की अदालत में दुमका जिले में कनीय अभियंता की नियुक्ति को लेकर दाखिल याचिका पर सुनवाई हुई. सुनवाई के बाद अदालत ने इस मामले में राज्य सरकार से जवाब मांगा है. इस मामले में चार सप्ताह बाद सुनवाई होगी. इस संबंध में सुलेमान मरांडी सहित अन्य की ओर से हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की गई है. सुनवाई के दौरान प्रार्थी के अधिवक्ता अमृतांश वत्स ने अदालत को बताया कि जिलास्तर पर 20 कनीय अभियंता की नियुक्ति के लिए विज्ञापन निकाला गया था. इसके लिए सितंबर 2021 में परीक्षा ली गई थी. इसके बाद इंटरनेट मीडिया पर गड़बड़ी की बात सामने आने पर स्थानीय जिला पदाधिकारियों ने इसकी जांच की. मामला सही पाए जाने पर बिना पहले की परीक्षा रद्द किए ही 30 अक्टूबर 2021 को दोबारा परीक्षा की तिथि निर्धारित कर दी. इस दौरान कई अभ्यर्थियों को इसकी सूचना नहीं मिली, जिसके कारण वे लोग इस परीक्षा में शामिल नहीं हो सके. ऐसे में बिना परीक्षा रद किए दोबारा परीक्षा करना गलत है. इसलिए दोबारा हुई परीक्षा को रद किया जाना चाहिए. इसके बाद अदालत ने इस मामले में राज्य सरकार से जवाब मांगा है.

रांची: झारखंड हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश डॉ रवि रंजन और न्यायाधीश सुजीत नारायण प्रसाद की अदालत में झारखंड कर्मचारी चयन आयोग द्वारा ली जाने वाली परीक्षा से हिंदी को हटा दिया गया है. इसके बाद झारखंड से 10वीं और 12वीं पास करने वाले गैर आरक्षित श्रेणी के छात्रों को भाग लेने की अनुमति दिए जाने के मामले पर सुनवाई हुई. सुनवाई के दौरान राज्य सरकार ने रिकॉर्ड के मूल दस्तावेज पेश किए. हालांकि कम समय होने के कारण मामले पर विस्तृत सुनवाई नहीं हो सकी और सरकार को निर्देश दिया कि सभी संबंधित मूल रिकॉर्ड रजिस्टार जनरल के पास जमा कर दिया जाए. इस मामले की अगली सुनवाई 13 जनवरी को होगी. इससे पहले अदालत ने राज्य सरकार पर कड़ी नाराजगी व्यक्त करते हुए नियोजन नीति से संबंधित हुई बैठक की मूल संचिका अदालत में पेश करने का आदेश दिया था. उसी आदेश के के बाद मूल संचिका को कोर्ट में पेश किया गया था. जिसे अदालत के निर्देश के बाद रजिस्टार जनरल के पास जमा कर दिया गया है.

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रमेश हांसदा ने हाईकोर्ट में नई योजन नीति को चुनौती दी है उनकी ओर से बताया गया था कि नियुक्ति नियमावली में जो संशोधन की गई है, वह गलत और असंवैधानिक है. इसलिए इसे रद्द कर दिया जाए. उन्होंने अदालत को यह बताया कि नियुक्ति नियमावली में सिर्फ झारखंड से 10वीं और 12वीं करने वाले अभ्यर्थियों को ही झारखंड कर्मचारी चयन आयोग के द्वारा आयोजित होने वाली प्रतियोगिता परीक्षा में भाग लेने की अनुमति होगी. झारखंड के वैसे निवासी जिन्हें आरक्षण का लाभ नहीं दिया जा रहा है सिर्फ उन पर ही यह नियम लागू होगा. झारखंड के वैसे निवासी जिन्हें यहां आरक्षण का लाभ दिया जाता है उस पर यह नियम शिथिल रहेगा. राज्य के सभी सरकारी स्कूलों में हिंदी माध्यम से पढ़ाया जाता है. सर्वाधिक लोगों की भाषा हिंदी है. लेकिन इस संशोधित नियमावली में हिंदी को ही हटा दिया गया. उर्दू भाषा एक खास वर्ग के लिए है उसे इस नियमावली में जोड़ दिया गया है. उन्होंने यह भी कहा कि यह नियम एक खास वर्ग के लिए बनाया गया है. इसलिए यह नियम असंवैधानिक है. इसे निरस्त कर दिया जाए.

वहीं, एक दूसरे मामले में झारखंड हाईकोर्ट के जस्टिस राजेश शंकर की अदालत में दुमका जिले में कनीय अभियंता की नियुक्ति को लेकर दाखिल याचिका पर सुनवाई हुई. सुनवाई के बाद अदालत ने इस मामले में राज्य सरकार से जवाब मांगा है. इस मामले में चार सप्ताह बाद सुनवाई होगी. इस संबंध में सुलेमान मरांडी सहित अन्य की ओर से हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की गई है. सुनवाई के दौरान प्रार्थी के अधिवक्ता अमृतांश वत्स ने अदालत को बताया कि जिलास्तर पर 20 कनीय अभियंता की नियुक्ति के लिए विज्ञापन निकाला गया था. इसके लिए सितंबर 2021 में परीक्षा ली गई थी. इसके बाद इंटरनेट मीडिया पर गड़बड़ी की बात सामने आने पर स्थानीय जिला पदाधिकारियों ने इसकी जांच की. मामला सही पाए जाने पर बिना पहले की परीक्षा रद्द किए ही 30 अक्टूबर 2021 को दोबारा परीक्षा की तिथि निर्धारित कर दी. इस दौरान कई अभ्यर्थियों को इसकी सूचना नहीं मिली, जिसके कारण वे लोग इस परीक्षा में शामिल नहीं हो सके. ऐसे में बिना परीक्षा रद किए दोबारा परीक्षा करना गलत है. इसलिए दोबारा हुई परीक्षा को रद किया जाना चाहिए. इसके बाद अदालत ने इस मामले में राज्य सरकार से जवाब मांगा है.

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