रांची: झारखंड मछली उत्पादन के क्षेत्र में आत्मनिर्भर राज्य बनने के करीब पहुंच चुका है. वर्ष 2000 में राज्य बनने के बाद झारखंड में जहां महज 14000 मीट्रिक टन मछली का उत्पादन होता था वहीं, आज राज्य में 2.38 लाख मीट्रिक टन मछली का उत्पादन होता है. मछली उत्पादन में आत्मनिर्भर बन जाने के करीब पहुंचने के बाद अब मत्स्य निदेशालय ने राज्य भर के तालाबों में एक नई क्रांति करने की तैयारी शुरू कर दी है. मछली उत्पादन के साथ-साथ राजभर के मीठे जल के तालाबों में डिजाइनर मोतियों का उत्पादन को बढ़ावा दिया जा रहा है.
झारखंड मछली उत्पादन में आत्मनिर्भर राज्य की श्रेणी में जल्द आ सकता है. झारखंड मत्स्य निदेशालय ने पिछले 22 सालों में इसपर काफी काम किया है. अब झारखंड मत्स्य निदेशालय डिजाइनर मोती की खेती को बढ़ावा देकर किसानों की आय दोगुनी करना चाहता है. इसकी पूरी पटकथा मत्स्य निदेशालय ने तैयार कर ली है. इसके लिए ध्रुवा के मत्स्य अनुसंधान केंद्र में सीआईएफए (CIFA) मार्गदर्शन में पायलट प्रोजेक्ट भी शुरू कर दिया गया है, जिसमें एक एक करके दो तालाबों में 2600 के करीब सीप में डिजाइनर मोती तैयार किए जा रहे हैं.
मत्स्य पालकों में अभी से ही उत्साह: मत्स्य अनुसंधान निदेशालय में जहां डिजाइनर मोतियों के उत्पादन का पायलट प्रोजेक्ट शुरू किया है, वहां मछली पालन का पांच दिवसीय प्रशिक्षण लेने आए राज्य के युवाओं में मोती पालन का भी क्रेज दिखा. यही वजह है कि मछली पालन के प्रशिक्षण में ही भविष्य के प्रोजेक्ट मोती उत्पादन की जानकारी भी युवाओं को दी जा रही है. झारखंड मत्स्य निदेशालय को उम्मीद है कि इससे मोती उत्पादन के लक्ष्य को जल्द हासिल किया जा सकता है.
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मत्स्य पालकों की बढ़ेगी आय: राज्य में शुरू किए गए डिजाइनर मोती उत्पादन पायलट प्रोजेक्ट को मत्स्य अनुसंधान केंद्र के सहायक निदेशक अनुसंधान नवराजन तिर्की लीड कर रहे हैं. उनका कहना है कि जिस तालाब में मत्स्यपालक मछली पालन करेंगे उसी में वह डिजायनर मोती का भी उत्पादन कर सकते हैं. बाजार में ऐसे प्रति मोती की कीमत 200 रुपये से 500 तक मिलती है, समझा जा सकता है कि कैसे मोती पालन से मछली पालक आर्थिक रूप से संपन्न हो सकते हैं. उनका कहना है कि मोती उत्पादन को कमर्शियल रूप देने की है की जा रही है.
राज्य के मत्स्य निदेशक डॉ एच एन दिवेदी कहते हैं कि अभी राज्य में सरकार की ओर से मोती उत्पादन का पायलट प्रोजेक्ट चल रहा है. इसकी सफलता की उम्मीद सभी को है. इसके अलावा कुछ लोग अपने स्तर से भी मोती उत्पादन में लगे हैं. ऐसे में विभाग एक ओर जहां राज्य के मत्स्य पालकों को मोती उत्पादन का विशेष प्रशिक्षण देगा. वहीं, इसे कैसे कमर्शियल रूप दिया जाए इसको लेकर भी विशेष योजना बनाएगा.