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पारंपरिक रीति-रिवाज के साथ पूरी हुई सरहुल महापर्व के पहले दिन की पूजा, पाहनों ने की कोरोना से मुक्ति की कामना

रांची के पिस्का मोड़ में तीन दिवसीय सरहुल महापर्व के पहले दिन सरना स्थल पर पाहनों की ओर से पूजा की गई. पूरे पारंपरिक रीति रिवाज के साथ यह पूजा की गई. इस मौके पर आदिवासी धर्मगुरूओं ने राज्य और देश के कोरोना मुक्त होने की कामना की.

first day worship of sarhul mahaparv completed with traditional customs in ranchi
पूजा करते आदिवासी
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Published : Apr 14, 2021, 3:56 PM IST

रांचीः सत्यारी सरना स्थल पिस्का मोड़ में तीन दिवसीय सरहुल महापर्व के पहले दिन की पूजा पूरे पारंपरिक रीति-रिवाज के साथ की गई. इस मौके पर पाईनभोरा पाहन सोमरा मुंडा, जोगेंद्र पाहन, भुनू मुंडा, सोहराई मुंडा ने पूजा अर्चना की. पाहनों ने अपनी पूजा में झारखंड और देश से कोरोना वायरस से मुक्ति और खुशहाली की प्रार्थना की. सभी ने एक दूसरे को अबीर गुलाल लगाकर सरहुल पूजा की शुभकामनाएं और बधाई दी.

ये भी पढ़ें-प्रकृति के प्रति अनोखे प्रेम का पर्व है सरहुल पूजा, साल के फूल को मानते हैं नए वर्ष का प्रतीक

नए साल का आगमन

आदिवासी सेना अध्यक्ष शिवा कच्छप ने कहा कि प्रकृति महापर्व सरहुल आदिवासियों का सबसे बड़ा त्योहार है, इसे आदिवासी सरहुल के साथ नये साल के आगमन के रूप में मनाते हैं. आदिवासी आदिकाल से प्रकृति के उपासक हैं. जल, जंगल, जमीन, पहाड़, पर्वत, नदी, नाला, धरती, सूरज, आकाश, पाताल की पूजा करते आए हैं. सरहुल पूजा के दिन को धरती और सूर्य के विवाह के रूप मनाते हैं. मान्यता है कि धरती और सूर्य केकड़े से की गई सृष्टि की उत्पत्ति है. इस कार्यक्रम में झलकी तिर्की, सिंपी कुजूर, शोभा तिर्की, मीना देवी, सोनी तिर्की, मुन्नी खलखो, सोनी खलखो, पूनम तिर्की, सती तिर्की, अनिता गाड़ी मुख्य रूप से शामिल रहे.

रांचीः सत्यारी सरना स्थल पिस्का मोड़ में तीन दिवसीय सरहुल महापर्व के पहले दिन की पूजा पूरे पारंपरिक रीति-रिवाज के साथ की गई. इस मौके पर पाईनभोरा पाहन सोमरा मुंडा, जोगेंद्र पाहन, भुनू मुंडा, सोहराई मुंडा ने पूजा अर्चना की. पाहनों ने अपनी पूजा में झारखंड और देश से कोरोना वायरस से मुक्ति और खुशहाली की प्रार्थना की. सभी ने एक दूसरे को अबीर गुलाल लगाकर सरहुल पूजा की शुभकामनाएं और बधाई दी.

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आदिवासी सेना अध्यक्ष शिवा कच्छप ने कहा कि प्रकृति महापर्व सरहुल आदिवासियों का सबसे बड़ा त्योहार है, इसे आदिवासी सरहुल के साथ नये साल के आगमन के रूप में मनाते हैं. आदिवासी आदिकाल से प्रकृति के उपासक हैं. जल, जंगल, जमीन, पहाड़, पर्वत, नदी, नाला, धरती, सूरज, आकाश, पाताल की पूजा करते आए हैं. सरहुल पूजा के दिन को धरती और सूर्य के विवाह के रूप मनाते हैं. मान्यता है कि धरती और सूर्य केकड़े से की गई सृष्टि की उत्पत्ति है. इस कार्यक्रम में झलकी तिर्की, सिंपी कुजूर, शोभा तिर्की, मीना देवी, सोनी तिर्की, मुन्नी खलखो, सोनी खलखो, पूनम तिर्की, सती तिर्की, अनिता गाड़ी मुख्य रूप से शामिल रहे.

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