रांचीः हैदराबाद और कोटा के बाद सोमवार को झारखंड में और तीन ट्रेनें पहुंची. ये तमाम श्रमिक स्पेशल ट्रेन ही हैं. इसमें मजदूर वर्ग के लोग सवार थे. हालांकि रांची रेल मंडल द्वारा इन तीनों ट्रेनों को डायवर्ट कर अलग-अलग स्टेशनों पर पहुंचाया गया और उन्हीं स्टेशनों से यात्रियों को स्क्रीनिंग कर गंतव्य के लिए भेजा गया.
बेंगलुरु से चली श्रमिक स्पेशल ट्रेन लगभग 1,225 श्रमिकों को लेकर हटिया रेलवे स्टेशन पहुंची, लेकिन प्रति मजदूर 900 रुपये रेलवे ने किराए के तौर पर वसूले हैं. स्टेशन पर निकलने के बाद मजदूरों ने अपनी पीड़ा बताई है.
वहीं मजदूरों को तिरुवंतपुरम, बंगलुरु और नागौर राजस्थान से भी लाया गया है. पहले इन तीनों ट्रेनों को रांची लाने की ही तैयारी चल रही थी, लेकिन दो ट्रेनों के परिचालन में बदलाव करते हुए रांची छोड़ धनबाद, जसीडीह और बड़काखाना पहुंचाया गया.
संथाल परगना से हैं 1200 मजदूर
बता दें कि हटिया के लिए शनिवार को ही तिरुवंतपुरम से श्रमिक स्पेशल ट्रेन खुल गई थी, लेकिन इसमें फेरबदल करते हुए इसे जसीडीह ले जाया गया. केरल से आने वाली यह पहली ट्रेन है. केरल में 1,200 मजदूरों में अधिकतर संथाल परगना के, साहिबगंज , पाकुड़, गोड्डा और गिरिडीह के अलावे गढ़वा लातेहार के रहने वाले हैं. इसीलिए इस ट्रेन को जसीडीह तक ले जाया गया.
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रात 12 हटिया पहुंची ट्रेन
वहीं, नागौर से आने वाली ट्रेन बरकाकाना तक शाम 5:00 बजे पहुंची. स्थानीय प्रशासन द्वारा यात्रियों के लिए बसों की व्यवस्था कर गंतव्य तक पहुंचाया गया. इसी कड़ी में बंगलुरु से चली श्रमिक स्पेशल ट्रेन रात 12 बजे हटिया पहुंची. हटिया में रांची जिला प्रशासन और रांची रेल मंडल के अधिकारियों द्वारा श्रमिकों का स्वागत किया गया.
साथ ही उनकी प्रारंभिक जांच कर उन्हें संबंधित जिलों के अधिकारियों के साथ उनके जिलों के लिए रवाना किया गया. रांची जिले के श्रमिकों को स्थानीय अस्पताल में स्क्रीनिंग कर होम क्वॉरेंटाइन को लेकर निर्देश दिए गए हैं.
गौरतलब है कि इससे पहले भी हटिया रेलवे स्टेशन पर दो ट्रेन आ चुकी हैं और जो पहले व्यवस्था थी उसी व्यवस्था के तहत बंगलुरु से आए. इस ट्रेन के यात्रियों को भी प्लेटफार्म पर उतारा गया और संबंधित जिलों की बसों से गंतव्य के लिए भेजा गया.
मजदूरों से वसूला गया किराया
हालांकि जसीडीह और धनबाद रेलवे स्टेशन की तरह यहां भी मजदूरों ने खरीदे गए टिकट को दिखाते अपनी मजबूरी का रोना रोया. मजदूरों की मानें तो कहा गया था कि मुफ्त में ट्रेन में सफर है, लेकिन भुखमरी की कगार पर पहुंचे इन मजदूरों को भी बख्शा नहीं गया. इनसे भी टिकट का दाम लिए गए, जबकि इनके पास खाने तक के पैसे नहीं थे. किसी तरह पैसा जुटाकर इन्होंने टिकट खरीदा और अपने घर पहुंचे.