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Corona-Lockdown Effect: लाचार-मजबूर भिखारी, बिना दान के दाल-रोटी पर आफत - Corona and lockdown affected preists in Ranchi

कोरोना और लॉकडाउन से जिंदगी की रफ्तार पर ब्रेक लग गया है. मंदिर के कपाट बंद होने से कइयों की जिंदगी तंग हो गई है. मंदिर से जुड़े लोग फाकाकशी में दिन काटने को मजबूर हैं. सबसे ज्यादा प्रभावित वो भिखारी हो रहे हैं, जो सीधे तौर पर मंदिर आने वाले श्रद्धालुओं की दान-दक्षिणा पर निर्भर रहते हैं.

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भिखारी
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Published : Jul 17, 2021, 5:34 PM IST

Updated : Jul 17, 2021, 7:21 PM IST

रांचीः सरकार कहती है कि राज्य में कोरोना की दूसरी लहर पूरी तरह कमांड में है और शायद यही वजह है कि सरकार ने स्वास्थ्य सुरक्षा सप्ताह में कई क्षेत्रों में शर्तों के साथ ढील भी दी है. लेकिन अभी-भी सरकार ने धार्मिक स्थलों पर आम श्रद्धालुओं के प्रवेश पर पूरी तरह से पाबंदी जारी रखी है.

इसे भी पढ़ें- रजरप्पा मंदिर खोलने की मांग, पुजारियों के साथ लोगों का एक दिवसीय अनशन



मंदिरोंं को आम आदमी के लिए बंद रखने से उन लोगों की रोजी-रोटी पर खतरा है, जिनके घर का चूल्हा भक्तों से मिलने वाले दान से चलता था. शायद सरकार यह समझने में भूल कर रही है कि मंदिर सिर्फ मात्र पूजा-अर्चना की जगह ही नहीं है बल्कि एक मंदिर से कई परिवार का जीवन चलता है. भगवान के ऊपर चढ़ने वाले फूल-बेलपत्र के कारोबारी से लेकर पुजारी और मंदिर के बाहर श्रद्धालुओं की दान की उम्मीद में बैठे लोग प्रभावित हैं.

देखें पूरी खबर


दाने-दाने को मोहताज भिखारी

राजधानी में कई मंदिरों का गेट बंद होने के बावजूद इसके बाहर हर दिन बड़ी संख्या में भिखारी पहुंचते हैं. इस उम्मीद पर कि कोई भी श्रद्धालु मंदिर के बाहर से ही पूजा करने आए और कुछ दान देकर जाए. सरकार की ओर से मंदिर श्रद्धालुओं के लिए नहीं खोले जाने से हालात ऐसे हैं कि जितने श्रद्धालु मंदिर की गेट तक पहुंचते हैं उनमें कई लोग ऐसे होते हैं, जो बिस्किट या मास्क थमा जाते हैं, पर इससे भला पेट कहां भरता है.

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भिखारियों की मदद करते लोग
दिव्यांग और वृद्धा-विधवा पेंशन नहीं मिलने से स्थिति खराबमंदिर के बाहर बैठे वृद्ध लालबाबू कहते हैं कि कई बार श्रद्धालुओं की आस में दिनभर का उपवास हो जाता है. विद्यानंद शर्मा को दो महीने से दिव्यांग पेंशन नहीं मिलने के चलते मंदिर के बाहर बैठना पड़ा है. यहां भी स्थिति ऐसी की घर चलाने मुश्किल है. पार्वती कहती हैं कि कई बार बैंक गईं, पर वहां बोला जाता है कि विधवा पेंशन नहीं आया है.
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दो पैसे की आस में भिखारी

एक ओर भगवान का दरबार बंद, दूसरी ओर योजनाएं बंद

कोरोना के नाम पर मंदिर बंद होने से भिखारियों को दान-दक्षिणा तक नहीं मिल रही, दूसरी ओर सामाजिक सुरक्षा की योजनाएं भी वक्त पर लाभुकों को नहीं मिल रहा. इन लाचार और गरीबों को दिव्यांग पेंशन, विधवा वृद्धा पेंशन समय पर नहीं मिल रहा है.

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बंद मंदिर के बाहर मौजूद भिखारी

धार्मिक स्थलों के ना खुलने से मंदिरों पर पूरी तरह आश्रित पुजारियों की स्थिति काफी खराब है. क्योंकि उनका पेट और गृहस्थी मंदिर को मिलने वाले चढ़ावे से चलता है. अब तो उन पुजारियों को भी खाने के लाले पड़ रहे हैं. हिनू मंदिर के पुजारी राजेश्वर तिवारी कहते हैं कि जब सब कुछ खोल ही रहे हैं तो मंदिर को भक्तों के लिए खोलने में क्या दिक्कत है, मंदिर के पुजारी को कोरोना प्रोटोकॉल का पालन कराते हुए मंदिर खोलने की इजाजत मिलनी चाहिए.

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मंदिर के गेट के बाहर पूरा करते श्रद्धालु

इसे भी पढ़ें- छत्तीसगढ़ : कोरोना काल में भिखारियों का दर्द, भीख नहीं मिलने से जिंदगी काटना मुश्किल


पुजारियों और भिखारियों पर ध्यान देने की दरकार

कोरोना के संक्रमण को कम करने के लिए लॉकडाउन और कोरोना प्रोटोकॉल का पालन सबसे जरूरी है. लेकिन लंबे वक्त तक धार्मिक स्थलों के बंद होने से ये लोग आर्थिक तंगी का शिकार हो रहे हैं. मंदिरों के बाहर रहने वाले भिखारियों, मंदिर परिसर में फूल-माला, बेलपत्र और प्रसाद बेचने वाले दुकानदारों और पुजारियों की स्थिति खराब है. सरकार को इनके हितों को लेकर पहल करने की दरकार है ताकि इनकी जिंदगी भी पटरी पर लौट सके.

रांचीः सरकार कहती है कि राज्य में कोरोना की दूसरी लहर पूरी तरह कमांड में है और शायद यही वजह है कि सरकार ने स्वास्थ्य सुरक्षा सप्ताह में कई क्षेत्रों में शर्तों के साथ ढील भी दी है. लेकिन अभी-भी सरकार ने धार्मिक स्थलों पर आम श्रद्धालुओं के प्रवेश पर पूरी तरह से पाबंदी जारी रखी है.

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मंदिरोंं को आम आदमी के लिए बंद रखने से उन लोगों की रोजी-रोटी पर खतरा है, जिनके घर का चूल्हा भक्तों से मिलने वाले दान से चलता था. शायद सरकार यह समझने में भूल कर रही है कि मंदिर सिर्फ मात्र पूजा-अर्चना की जगह ही नहीं है बल्कि एक मंदिर से कई परिवार का जीवन चलता है. भगवान के ऊपर चढ़ने वाले फूल-बेलपत्र के कारोबारी से लेकर पुजारी और मंदिर के बाहर श्रद्धालुओं की दान की उम्मीद में बैठे लोग प्रभावित हैं.

देखें पूरी खबर


दाने-दाने को मोहताज भिखारी

राजधानी में कई मंदिरों का गेट बंद होने के बावजूद इसके बाहर हर दिन बड़ी संख्या में भिखारी पहुंचते हैं. इस उम्मीद पर कि कोई भी श्रद्धालु मंदिर के बाहर से ही पूजा करने आए और कुछ दान देकर जाए. सरकार की ओर से मंदिर श्रद्धालुओं के लिए नहीं खोले जाने से हालात ऐसे हैं कि जितने श्रद्धालु मंदिर की गेट तक पहुंचते हैं उनमें कई लोग ऐसे होते हैं, जो बिस्किट या मास्क थमा जाते हैं, पर इससे भला पेट कहां भरता है.

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भिखारियों की मदद करते लोग
दिव्यांग और वृद्धा-विधवा पेंशन नहीं मिलने से स्थिति खराबमंदिर के बाहर बैठे वृद्ध लालबाबू कहते हैं कि कई बार श्रद्धालुओं की आस में दिनभर का उपवास हो जाता है. विद्यानंद शर्मा को दो महीने से दिव्यांग पेंशन नहीं मिलने के चलते मंदिर के बाहर बैठना पड़ा है. यहां भी स्थिति ऐसी की घर चलाने मुश्किल है. पार्वती कहती हैं कि कई बार बैंक गईं, पर वहां बोला जाता है कि विधवा पेंशन नहीं आया है.
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दो पैसे की आस में भिखारी

एक ओर भगवान का दरबार बंद, दूसरी ओर योजनाएं बंद

कोरोना के नाम पर मंदिर बंद होने से भिखारियों को दान-दक्षिणा तक नहीं मिल रही, दूसरी ओर सामाजिक सुरक्षा की योजनाएं भी वक्त पर लाभुकों को नहीं मिल रहा. इन लाचार और गरीबों को दिव्यांग पेंशन, विधवा वृद्धा पेंशन समय पर नहीं मिल रहा है.

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बंद मंदिर के बाहर मौजूद भिखारी

धार्मिक स्थलों के ना खुलने से मंदिरों पर पूरी तरह आश्रित पुजारियों की स्थिति काफी खराब है. क्योंकि उनका पेट और गृहस्थी मंदिर को मिलने वाले चढ़ावे से चलता है. अब तो उन पुजारियों को भी खाने के लाले पड़ रहे हैं. हिनू मंदिर के पुजारी राजेश्वर तिवारी कहते हैं कि जब सब कुछ खोल ही रहे हैं तो मंदिर को भक्तों के लिए खोलने में क्या दिक्कत है, मंदिर के पुजारी को कोरोना प्रोटोकॉल का पालन कराते हुए मंदिर खोलने की इजाजत मिलनी चाहिए.

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मंदिर के गेट के बाहर पूरा करते श्रद्धालु

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पुजारियों और भिखारियों पर ध्यान देने की दरकार

कोरोना के संक्रमण को कम करने के लिए लॉकडाउन और कोरोना प्रोटोकॉल का पालन सबसे जरूरी है. लेकिन लंबे वक्त तक धार्मिक स्थलों के बंद होने से ये लोग आर्थिक तंगी का शिकार हो रहे हैं. मंदिरों के बाहर रहने वाले भिखारियों, मंदिर परिसर में फूल-माला, बेलपत्र और प्रसाद बेचने वाले दुकानदारों और पुजारियों की स्थिति खराब है. सरकार को इनके हितों को लेकर पहल करने की दरकार है ताकि इनकी जिंदगी भी पटरी पर लौट सके.

Last Updated : Jul 17, 2021, 7:21 PM IST
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