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कोरोना काल में राज्य में कुपोषित बच्चों की स्थिति और गंभीर! शोध की प्रारंभिक रिपोर्ट है बेहद चौकाने वाला

झारखंड में 5 साल तक के बच्चों में कुपोषण की स्थिति बेहद खराब है. वहीं कोरोना काल में अधिक गंभीर रूप से कुपोषित बच्चों की स्थिति और भी खराब हो गई. रिम्स का PSM विभाग लातेहार के दो प्रखंडों में शोध कर रहा है. शोध का रिपोर्ट बेहद चौंकाने वाला है.

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झारखंड में कुपोषण
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Published : Oct 19, 2021, 5:02 PM IST

Updated : Oct 19, 2021, 7:10 PM IST

रांची: प्राकृतिक संसाधनों से धनी राज्य झारखंड पर कुपोषण का एक बदनुमा दाग भी है. राज्य में 5 साल तक के बच्चों में कुपोषण की स्थिति बेहद खराब है. अधिक गंभीर रूप से कुपोषित बच्चों की संख्या भी काफी है.

इसे भी पढे़ं: शैवाल से दूर होगा कुपोषण, सिंफर के वैज्ञानिक 2 साल में तैयार करेंगे फूड प्रोडक्ट

राज्य में महिला एवम बाल विकास विभाग, यूनिसेफ, नेशनल सेंटर ऑफ एक्सीलेंस सीवियर एक्यूट सैम और स्टेट सेंटर ऑफ एक्सीलेंस ऑफ सीवियर एक्यूट माल न्यूट्रिशन सेंटर के साथ मिलकर रिम्स का PSM विभाग लातेहार के दो प्रखंड लातेहार सदर और चंदवा में एक शोध कर रहा है कि समुदाय स्तर पर अति गंभीर कुपोषित बच्चों का प्रबंधन कैसे किया जा सकता है. पश्चिमी सिंहभूम में अति गंभीर कुपोषित बच्चों के समुदाय स्तर पर प्रबंधन को लेकर पायलट प्रोजेक्ट शुरू किया गया है.
इस तरह के प्रोजेक्ट पहले से तेलंगाना, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और ओडिशा में चल रहा है. पश्चिमी सिंहभूम में यह प्रोजेक्ट पहले 2 प्रखंड में शुरू हुआ था, जो अब पूरे जिले में चल रहा है.

देखें स्पेशल स्टोरी



शोध के प्रारंभिक नतीजे चौकाने वाले

कुपोषण पर चल रहे शोध का नेतृत्व कर रहीं रिम्स प्रिवेंटिव एंड सोशल मेडिसीन (PSM) विभाग की सह प्राध्यापक डॉ आशा किरण कहती हैं कि अभी शोध का काम चल ही रहा है. लेकिन मुख्य रूप से जो बात सामने आई है, वह यह कि कोरोना काल आंगनबाड़ी के माध्यम से पोषाहार कुपोषित बच्चों को मिलना था, उसमें खलल पड़ा है और अति गंभीर कुपोषित बच्चों को भी नियमानुसार डबल राशन नहीं दिया गया. जिसके कारण न सिर्फ कुपोषण की समस्या और विकट हुई, बल्कि शोध करने में भी परेशानी हो रही है. अब जब तक Take Home Rashan व्यवस्था दुरुस्त नहीं हो जाता, तब तक अति गंभीर कुपोषित बच्चों को पोषक पदार्थ से कैसे कुपोषण दूर किया जा सकता है इस पर काम किया जा सकता है.


इसे भी पढे़ं: दुमका: लगातार बारिश से कुपोषण उपचार केंद्र का हाल बदहाल, मरीज के साथ कर्मी परेशान

ज्यादातर बच्चे भरपूर पोषक खाना नहीं मिलने से कुपोषित


रिम्स की ओर से किए जा रहे अति गंभीर कुपोषण बच्चों पर शोध के पूरे नतीजे आने में वक्त लगेगा. लेकिन अभी तक के आंकड़े और रिपोर्ट बताते हैं कि लातेहार सदर और चंदवा प्रखंड, जहां शोध चल रहा है वहां ज्यादातर बच्चे 24 घंटे में 07 फूड ग्रुप्स थ्योरी का पालन नहीं कर रहे हैं. हर बच्चे को 07 में से कम से कम 04 तरह के खाद्य पदार्थो को जरूर भोजन में शामिल करना चाहिए. लेकिन ज्यादातर मामलों में बच्चों को 2 या 03 तरह के फूड ही मिल पाते हैं. राज्य के ज्यादातर बच्चे का पेट चावल और अनाज से भर जा रहा है. लेकिन उन्हें सभी तरह के पोषक तत्व नहीं मिल पा रहे हैं.

लातेहार के दो प्रखंडों में 188 अति गंभीर कुपोषित बच्चे

17 जनवरी से 16 अक्टूबर 2021 तक लातेहार के सदर प्रखंड और चंदवा में अभी तक कुल 243 आंगनबाड़ी केंद्र के 4617 बच्चों की स्क्रीनिंग हुई है. जिसमें 188 अति गंभीर कुपोषित बच्चे की पहचान हुई है. इनमें 160 बच्चे जो अति गंभीर हैं. लेकिन उन्हें अस्पताल में भर्ती कराने की जरूरत नहीं है. उन्हें शोध के लिए चुना गया है. अभी 40 और ऐसे बच्चों की पहचान की जाएगी और कुल 200 बच्चों पर यह शोध होगा.

रांची: प्राकृतिक संसाधनों से धनी राज्य झारखंड पर कुपोषण का एक बदनुमा दाग भी है. राज्य में 5 साल तक के बच्चों में कुपोषण की स्थिति बेहद खराब है. अधिक गंभीर रूप से कुपोषित बच्चों की संख्या भी काफी है.

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राज्य में महिला एवम बाल विकास विभाग, यूनिसेफ, नेशनल सेंटर ऑफ एक्सीलेंस सीवियर एक्यूट सैम और स्टेट सेंटर ऑफ एक्सीलेंस ऑफ सीवियर एक्यूट माल न्यूट्रिशन सेंटर के साथ मिलकर रिम्स का PSM विभाग लातेहार के दो प्रखंड लातेहार सदर और चंदवा में एक शोध कर रहा है कि समुदाय स्तर पर अति गंभीर कुपोषित बच्चों का प्रबंधन कैसे किया जा सकता है. पश्चिमी सिंहभूम में अति गंभीर कुपोषित बच्चों के समुदाय स्तर पर प्रबंधन को लेकर पायलट प्रोजेक्ट शुरू किया गया है.
इस तरह के प्रोजेक्ट पहले से तेलंगाना, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और ओडिशा में चल रहा है. पश्चिमी सिंहभूम में यह प्रोजेक्ट पहले 2 प्रखंड में शुरू हुआ था, जो अब पूरे जिले में चल रहा है.

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शोध के प्रारंभिक नतीजे चौकाने वाले

कुपोषण पर चल रहे शोध का नेतृत्व कर रहीं रिम्स प्रिवेंटिव एंड सोशल मेडिसीन (PSM) विभाग की सह प्राध्यापक डॉ आशा किरण कहती हैं कि अभी शोध का काम चल ही रहा है. लेकिन मुख्य रूप से जो बात सामने आई है, वह यह कि कोरोना काल आंगनबाड़ी के माध्यम से पोषाहार कुपोषित बच्चों को मिलना था, उसमें खलल पड़ा है और अति गंभीर कुपोषित बच्चों को भी नियमानुसार डबल राशन नहीं दिया गया. जिसके कारण न सिर्फ कुपोषण की समस्या और विकट हुई, बल्कि शोध करने में भी परेशानी हो रही है. अब जब तक Take Home Rashan व्यवस्था दुरुस्त नहीं हो जाता, तब तक अति गंभीर कुपोषित बच्चों को पोषक पदार्थ से कैसे कुपोषण दूर किया जा सकता है इस पर काम किया जा सकता है.


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ज्यादातर बच्चे भरपूर पोषक खाना नहीं मिलने से कुपोषित


रिम्स की ओर से किए जा रहे अति गंभीर कुपोषण बच्चों पर शोध के पूरे नतीजे आने में वक्त लगेगा. लेकिन अभी तक के आंकड़े और रिपोर्ट बताते हैं कि लातेहार सदर और चंदवा प्रखंड, जहां शोध चल रहा है वहां ज्यादातर बच्चे 24 घंटे में 07 फूड ग्रुप्स थ्योरी का पालन नहीं कर रहे हैं. हर बच्चे को 07 में से कम से कम 04 तरह के खाद्य पदार्थो को जरूर भोजन में शामिल करना चाहिए. लेकिन ज्यादातर मामलों में बच्चों को 2 या 03 तरह के फूड ही मिल पाते हैं. राज्य के ज्यादातर बच्चे का पेट चावल और अनाज से भर जा रहा है. लेकिन उन्हें सभी तरह के पोषक तत्व नहीं मिल पा रहे हैं.

लातेहार के दो प्रखंडों में 188 अति गंभीर कुपोषित बच्चे

17 जनवरी से 16 अक्टूबर 2021 तक लातेहार के सदर प्रखंड और चंदवा में अभी तक कुल 243 आंगनबाड़ी केंद्र के 4617 बच्चों की स्क्रीनिंग हुई है. जिसमें 188 अति गंभीर कुपोषित बच्चे की पहचान हुई है. इनमें 160 बच्चे जो अति गंभीर हैं. लेकिन उन्हें अस्पताल में भर्ती कराने की जरूरत नहीं है. उन्हें शोध के लिए चुना गया है. अभी 40 और ऐसे बच्चों की पहचान की जाएगी और कुल 200 बच्चों पर यह शोध होगा.

Last Updated : Oct 19, 2021, 7:10 PM IST
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