रांची: देश में नक्सलियों का शीर्ष संगठन भाकपा माओवादी कोविड-19 संक्रमण के बीच जेल में बंद राजनीतिक कैदियों का रिहाई चाहते हैं. तेलुगू में लिखे गए एक पत्र में भाकपा माओवादियों के शीर्ष केंद्रीय कमेटी ने यह मांग की है.
नक्सलियों के पत्र में क्या है लिखा
तेलुगू भाषा में लिखे गए दो पन्ने के पत्र में माओवादियों के सर्वोच्च कमेटी ने यह लिखा है कि भीमा कोरेगांव प्रकरण के बाद कथित तौर पर अर्बन नक्सली कहे जाने वाले बुद्धिजीवियों गौतम नौलखा, माओवादी विचारक और कवि बरबरा राव, 2014 से जेल में बंद है. दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर जीएन साईबाबा और स्कॉलर आनंद तेलतुं बड़े जैसे राजनीतिक बंदियों को कोरोना संक्रमण के इस कठिन समय में जेल से मुक्त कर देना चाहिए. भाकपा माओवादियों के सेंट्रल कमेटी के अधिकार प्रतिनिधि अभय के नाम से तेलुगू में यह पत्र जारी किया गया है. झारखंड पुलिस के खुफिया विभाग के अधिकारियों को भी तेलुगू में लिखा पत्र हासिल हुआ है.
संगठन की नजर है उच्च वर्ग के गतिविधियों पर
माओवादियों ने कोविड-19 के लिए विकसित देशों को दोषी ठहराया है. वहीं केंद्र की सरकार पर बगैर तैयारी लॉकडाउन लागू करने का आरोप भी लगाया है. भाकपा माओवादी संगठन ने जारी किए गए पत्र में यह भी बताया गया है कि संगठन की नजर वैसे हर पैसे वाले और प्रभावी लोगों पर है. ऐसे लोग जो इस परिस्थिति में भी ऐसो आराम के साथ अपना जीवन जी रहे हैं. माओवादियों के अनुसार एक तरफ गरीबी से लोग दाने-दाने को मोहताज हैं तो वहीं दूसरी तरफ कुछ लोग इस संकट के समय में भी ऐसो आराम की जिंदगी जी रहे हैं. ऐसे लोगों पर संगठन की नजर है इनके खिलाफ बाद में चिन्हित कर कार्रवाई की जाएगी.
नक्सलियों के शीर्ष संगठन ने पत्र के जरिए यह भी आरोप लगाया है कि कोरोना वायरस का खतरा साम्राज्यवादी राज्यों की लापरवाही के कारण उत्पन्न हुआ है. इस कठिन समय में सरकार ने गरीबों और किसानों का हाल खराब है. अचानक लॉकडाउन जैसे हालात उत्पन्न होने से भुखमरी की समस्या उत्पन्न हो गई है और इसके लिए सरकार जिम्मेवार है.
नहीं मानते नक्सलियों को राजनीतिक बंदी
वहीं, दूसरी तरफ माओवादियों के लिखे गए पत्र को झारखंड पुलिस प्रोपगेंडा का एक अंश मात्र मानती है. झारखंड पुलिस की मानें तो नक्सलियों को किसी भी तरह से राजनीतिक बंदी नहीं माना जा सकता है. एक तरफ नक्सली हिंसा का सहारा ले रहे हैं और निर्दोष जनता के साथ-साथ पुलिस कर्मियों को भी निशाना बना रहे हैं, दूसरी तरफ से जेल में बंद अपने साथियो को राजनीतिक बंदी बताते हैं. यह दोहरी चाल है. नक्सली अगर मुख्यधारा में लौट कर आते हैं और जनता के चुनी सरकार के जरिए वह सामने आते हैं तब उन्हें राजनीतिक बंदी माना जाएगा.
संघर्ष विराम की बात भी निकली झूठी
कोरोना वायरस के संक्रमण के बाद नक्सल प्रभावित कई राज्यों से यह सूचनाएं लगातार सामने आती रही कि नक्सली संघर्ष विराम करना चाहते हैं. झारखंड के कुछ नक्सल प्रभावित इलाकों से भी इस तरह की बातें सामने आई लेकिन कोरोना काल में जिस तरह से नक्सलियों ने उत्पात मचाया है, उसे यह बात भी बेमानी ही लगी कि नक्सली किसी तरह का संघर्ष विराम करना चाहते हैं.
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झारखंड पुलिस के एडीजी अभियान मुरारी लाल मीणा ने कहा कि नक्सलियों ने झारखंड पुलिस के सामने संघर्ष विराम जैसी कोई भी बात नहीं रखी है. एडीजी के अनुसार वर्तमान समय में पुलिस के सामने सबसे बड़ा दायित्व कोरोना महामारी से लोगों को बचाना है, जिस पर झारखंड पुलिस सफलता के साथ काम कर रही है लेकिन नक्सली यह न समझे की इस वजह से उनके खिलाफ अभियान धीमा हो जाएगा. उनके खिलाफ लगातार अभियान चल रहा है और यही वजह है कि लॉकडाउन के दौरान भी लगातार नक्सली मारे जा रहे हैं और पकड़े भी जा रहे हैं.
झारखंड में नहीं चलेगी दोहरी चाल
झारखंड पुलिस के अधिकारियों की माने तो नक्सलियों के खिलाफ लॉकडाउन के दौरान भी लगातार जंग जारी है. इस दौरान झारखंड पुलिस को अपने दो जवानों की जान भी गंवानी पड़ी है लेकिन जवानों ने भी अपना शौर्य दिखाते हुए पिछले दो सफ्ताह में ही हुए सिर्फ दो एनकाउंटर में ही छह नक्सलियों को मार गिराया है. जबकि 8 को जिंदा पकड़ लिया है. झारखंड पुलिस का स्पष्ट संदेश है नक्सलियो के लिए है कि वे कोई राजनीतिक कैदी नहीं है जो उनके रिहाई पर कोई विचार किया जाय.