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विश्व आदिवासी दिवस: कई सभ्यता की जड़ है आदिवासी समाज, हक के लिए बुलंद की आवाज

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Published : Aug 6, 2019, 7:53 PM IST

9 अगस्त को विश्व आदिवासी दिवस है, इस अवसर पर कई कार्यकर्मों का आयोजन हो रहा है. झारखंड में भी आदिवासी समाज की बहुलता है, उनके विकास और इतिहास पर कई शोधकर्ता शोध कर रहे हैं. ऐसे में आज हमें इनसे बहुत कुछ सीखने की जरूरत है.

कॉनसेप्ट इमेज

हजारीबाग: आदिवासी ये शब्द न केवल झारखंड के लिए बल्कि राष्ट्रीय स्तर पर इस शब्द के कई मायने हैं. इसका अर्थ अनादि काल से रहने वाला पहला मानव है. इनकी अपनी भाषा,व्यवहार और संस्कृति होती है. 9 अगस्त को विश्व आदिवासी दिवस है. इस अवसर पर कई कार्यकर्मों का आयोजन हो रहा है. ऐसे में पद्मश्री से विभूषित बुलू इमाम आदिवासियों के प्रति कुछ अलग नजरिया रखते हैं.

देखें स्पेशल स्टोरी

वर्तमान में आदिवासी कौन हैं, उनकी उत्पत्ति कैसे हुई है और वह किन-किन क्षेत्रों में प्रवास करते हैं. यह अध्ययन की बात है और इसे लेकर शोध भी हो रहे हैं, जहां शोधकर्ता अपनी बातें और तर्क से आदिवासी समाज के बारे में बताने की कोशिश करते हैं ऐसे में पद्मश्री से विभूषित बुलू इमाम आदिवासियों के प्रति सोच सबसे अलग है.

कौन हैं बूलु इमाम ?
सांस्कृतिक क्षेत्र में सराहनीय योगदान के लिए पद्मश्री पाने वाले झारखंड के बुलू इमाम का जन्म 31 अगस्त 1942 को हुआ. बुलू पर्यावरण कार्यकर्ता के तौर पर झारखंड में आदिवासी संस्कृति और विरासत को संरक्षित करते रहे हैं. इसके लिए उन्हें 21 जून 2012 को लंदन के हाउस आफ कार्ड्स में गांधी इंटरनेशनल पीस अवॉर्ड से भी सम्मानित किया गया है.1995 में जनजातीय कला को बढ़ावा देने के लिए हजारीबाग में संस्कृति संग्रहालय और आर्ट गैलरी की स्थापना की. ऑस्ट्रेलिया, यूरोप और यूके में आदिवासी संस्कृति 'खोबर' और सोहराय चित्रों की 50 से अधिक अंतरराष्ट्रीय प्रदर्शनी का आयोजन कर चुके हैं. उन्होंने पुस्तक ब्राइडल केव्स भी लिखी है. जिसमें आदिवासी समाज के बारे में अध्ययन कर उसे किताबों के पन्नों में उतारा है जिन्होंने आदिवासी कला और संस्कृति पर कई फिल्में बनाई है.

ये भी पढ़ें- पुरुषों में शराब की लत ने ऐसे दिया इस इलाके को 'विधवा गांव' का नाम

कई सभ्यताओं के जन्मदाता हैं आदिवासी
पद्मश्री बुलू इमाम का मानना है कि आदिवासी समाज सभी सभ्यता और संस्कृति की जड़ है. आदिवासी का मतलब एक जगह पर रहने वाला आदिम जनजाति है. जो कालांतर में आदिवासी के रूप में जाना गया है. कोई भी धर्म या संस्कृति के आगे और पीछे कुछ होता है, आदिवासी प्रथम जड़ है. आदिवासी वह गर्व है जहां से कई सभ्यता और संस्कृति का जन्म हुआ है. आदिवासी समाज कभी किसी को मारता नहीं है, यही कारण है कि आदिवासी समाज के अध्ययन में कभी युद्ध की बात सामने नहीं आई. आदिवासी समाज ने क्रांति किया है, जिसे हम रिवोल्ट करते हैं इसलिए यह संस्कृति हमें प्रेम के बारे में भी बताती है. यह शांतिप्रिय सभ्यता का द्योतक है, जब आदिवासी खुश होते हैं तो मांदर, ढोलक और बांसुरी लेकर सड़क पर निकलते हैं.

ये भी पढ़ें- कस्तूरबा विद्यालय की छात्राओं की ऊंची उड़ान, ISRO भ्रमण कर साझा किया अनुभव

विश्व के कोने-कोने से आते हैं लोग
बुलू इमाम के घर में एक अनोखा संग्रहालय भी है, जिसमें आदिवासी समाज के कई धरोहर को संजोया गया है. उसका नाम उन्होंने 'संस्कृति म्यूजियम' रखा है, मुख् रूप से यह संग्रहालय मानव विकास की कहानी को बयां करता है. इमाम खुद कहते हैं कि इस म्यूजियम को बनाने की कोई विशेष योजना नहीं थी लेकिन आज यह म्यूजियम को देखने के लिए और आदिवासी समाज के बारे में जानने के लिए विश्व के कोने-कोने से लोग पहुंच रहे हैं.

बुलू इमाम आगे बताते हैं झारखंड में दामोदर घाटी सबसे बड़ी सभ्यता है, जहां पत्थर के औजार से लेकर लोहे के औजार तक मिले हैं. इस सभ्यता में जीने का कला भी काफी सुंदर था. क्योंकि आदिवासी शांति में जीते थे, लोग मार-काट से ऊपर उठकर खेती की ओर अग्रसर हुए. उस खुशी के पल को लोगों ने आकृति के रूप में अपने दीवारों पर उभारा.

हजारीबाग: आदिवासी ये शब्द न केवल झारखंड के लिए बल्कि राष्ट्रीय स्तर पर इस शब्द के कई मायने हैं. इसका अर्थ अनादि काल से रहने वाला पहला मानव है. इनकी अपनी भाषा,व्यवहार और संस्कृति होती है. 9 अगस्त को विश्व आदिवासी दिवस है. इस अवसर पर कई कार्यकर्मों का आयोजन हो रहा है. ऐसे में पद्मश्री से विभूषित बुलू इमाम आदिवासियों के प्रति कुछ अलग नजरिया रखते हैं.

देखें स्पेशल स्टोरी

वर्तमान में आदिवासी कौन हैं, उनकी उत्पत्ति कैसे हुई है और वह किन-किन क्षेत्रों में प्रवास करते हैं. यह अध्ययन की बात है और इसे लेकर शोध भी हो रहे हैं, जहां शोधकर्ता अपनी बातें और तर्क से आदिवासी समाज के बारे में बताने की कोशिश करते हैं ऐसे में पद्मश्री से विभूषित बुलू इमाम आदिवासियों के प्रति सोच सबसे अलग है.

कौन हैं बूलु इमाम ?
सांस्कृतिक क्षेत्र में सराहनीय योगदान के लिए पद्मश्री पाने वाले झारखंड के बुलू इमाम का जन्म 31 अगस्त 1942 को हुआ. बुलू पर्यावरण कार्यकर्ता के तौर पर झारखंड में आदिवासी संस्कृति और विरासत को संरक्षित करते रहे हैं. इसके लिए उन्हें 21 जून 2012 को लंदन के हाउस आफ कार्ड्स में गांधी इंटरनेशनल पीस अवॉर्ड से भी सम्मानित किया गया है.1995 में जनजातीय कला को बढ़ावा देने के लिए हजारीबाग में संस्कृति संग्रहालय और आर्ट गैलरी की स्थापना की. ऑस्ट्रेलिया, यूरोप और यूके में आदिवासी संस्कृति 'खोबर' और सोहराय चित्रों की 50 से अधिक अंतरराष्ट्रीय प्रदर्शनी का आयोजन कर चुके हैं. उन्होंने पुस्तक ब्राइडल केव्स भी लिखी है. जिसमें आदिवासी समाज के बारे में अध्ययन कर उसे किताबों के पन्नों में उतारा है जिन्होंने आदिवासी कला और संस्कृति पर कई फिल्में बनाई है.

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कई सभ्यताओं के जन्मदाता हैं आदिवासी
पद्मश्री बुलू इमाम का मानना है कि आदिवासी समाज सभी सभ्यता और संस्कृति की जड़ है. आदिवासी का मतलब एक जगह पर रहने वाला आदिम जनजाति है. जो कालांतर में आदिवासी के रूप में जाना गया है. कोई भी धर्म या संस्कृति के आगे और पीछे कुछ होता है, आदिवासी प्रथम जड़ है. आदिवासी वह गर्व है जहां से कई सभ्यता और संस्कृति का जन्म हुआ है. आदिवासी समाज कभी किसी को मारता नहीं है, यही कारण है कि आदिवासी समाज के अध्ययन में कभी युद्ध की बात सामने नहीं आई. आदिवासी समाज ने क्रांति किया है, जिसे हम रिवोल्ट करते हैं इसलिए यह संस्कृति हमें प्रेम के बारे में भी बताती है. यह शांतिप्रिय सभ्यता का द्योतक है, जब आदिवासी खुश होते हैं तो मांदर, ढोलक और बांसुरी लेकर सड़क पर निकलते हैं.

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विश्व के कोने-कोने से आते हैं लोग
बुलू इमाम के घर में एक अनोखा संग्रहालय भी है, जिसमें आदिवासी समाज के कई धरोहर को संजोया गया है. उसका नाम उन्होंने 'संस्कृति म्यूजियम' रखा है, मुख् रूप से यह संग्रहालय मानव विकास की कहानी को बयां करता है. इमाम खुद कहते हैं कि इस म्यूजियम को बनाने की कोई विशेष योजना नहीं थी लेकिन आज यह म्यूजियम को देखने के लिए और आदिवासी समाज के बारे में जानने के लिए विश्व के कोने-कोने से लोग पहुंच रहे हैं.

बुलू इमाम आगे बताते हैं झारखंड में दामोदर घाटी सबसे बड़ी सभ्यता है, जहां पत्थर के औजार से लेकर लोहे के औजार तक मिले हैं. इस सभ्यता में जीने का कला भी काफी सुंदर था. क्योंकि आदिवासी शांति में जीते थे, लोग मार-काट से ऊपर उठकर खेती की ओर अग्रसर हुए. उस खुशी के पल को लोगों ने आकृति के रूप में अपने दीवारों पर उभारा.

Intro:आदिवासी शब्द का अर्थ अनादि काल से रहने वाला पहला मानव। इसका जन्म धरती पर सबसे पहले हुआ है ।आदिवासी समुदाय की अपनी भाषा ,व्यवहार ,संस्कृति जरूरतें के लिए जानी जाती है । यह बातें आदिवासी बेहतर समझ सकता है । दुनिया में करोडो आदिवासी रहते हैं और सबकी अपनी अपनी संस्कृति है जिसके साथ जी रहे हैं।


Body:आज आदिवासी कौन है उनकी उत्पत्ति कैसे हुई है और वह किन किन क्षेत्रों में प्रवास करते हैं। यह अध्ययन की बात है और इसे लेकर शोध भी हो रहे हैं। जहां शोधकर्ता अपनी बातें और तर्क से आदिवासी समाज के बारे में बताने की कोशिश करते हैं ऐसे में पद्मश्री से विभूषित बूलू इमाम आदिवासियों के प्रति सोच सबसे अलग है।

सबसे पहले यह जानने की जरूरत है कि बूलु इमाम कौन है....

सांस्कृतिक क्षेत्र में सराहनीय योगदान के लिए पद्मश्री पाने वाले झारखंड के बुलू इमाम का जन्म 31 अगस्त 1942 को हुआ। बुलु पर्यावरण कार्यकर्ता के तौर पर झारखंड में आदिवासी संस्कृति और विरासत को संरक्षित करते रहे हैं। इसके लिए उन्हें 21 जून 2012 को लंदन के हाउस आफ कार्ड्स में गांधी इंटरनेशनल पीस अवॉर्ड से भी सम्मानित किया गया है।

1995 में जनजातीय कला को बढ़ावा देने के लिए हजारीबाग में संस्कृति संग्रहालय और आर्ट गैलरी की स्थापना किया ।ऑस्ट्रेलिया यूरोप और यूके में आदिवासी संस्कृति खोबर और सोहराय चित्रों की 50 से अधिक अंतरराष्ट्रीय प्रदर्शनी का आयोजन कर चुके हैं। उन्होंने अपने पुस्तक ब्राइडल केव्स के लेखक भी हैं जिसमें आदिवासी समाज के बारे में अध्ययन कर उसे किताबों के पन्नों में उतारा है। जिन्होंने आदिवासी कला और संस्कृति पर कई फिल्में बनाई है।


पद्मश्री बुलु इमाम का मानना है कि आदिवासी समाज जड़ है सभी सभ्यता और संस्कृति की। आदिवासी का मतलब एक जगह पर रहने वाला आदिम जनजाति है। जो कालांतर में आदिवासी के रूप में जाना है गया। कोई भी धर्म या संस्कृति की आगे और पीछे कुछ होता है। आदिवासी प्रथम जड़ है ,जैसे बरगद एक छोटा जड़ से बना है ।मां के गर्भ में बच्चा का जन्म होता है। ठीक उसी तरह आदिवासी वह गर्व है जहां से कई सभ्यता और संस्कृति का जन्म हुआ है। हमें यह मानना होगा कि हमारी सभ्यता की बीच जड़ आदिवासी समाज है।

आदिवासी समाज कभी किसी को मारता नहीं है। यही कारण है कि आदिवासी समाज के अध्ययन में कभी युद्ध की बात सामने नहीं आई। आदिवासी समाज ने क्रांति किया है ।जिसे हम रिवोल्ट करते हैं। इसलिए यह संस्कृति हमें प्रेम के बारे में भी बताती है ।यह शांति प्रिय सभ्यता का द्योतक है। जब आदिवासी खुश होते हैं तो मांडर और ढोलक बांसुरी लेकर सड़क पर निकलते हैं। जो उनके शांतिप्रिय होने का द्योतक है।


पद्मश्री ब्लू इमाम ने अपने घर में ही एक अनोखा संग्रहालय भी बनाया है । जिसमें आदिवासी समाज की कई धरोहर को संजोया गया है ।जो उनके शोध पर आधारित है। जिसका नाम उन्होंने "संस्कृति म्यूजियम" रखा है। मुख्यतः यह संग्रहालय मानव विकास की कहानी को बयां करता है ।जिसमें आदिवासी समाज के कई महत्वपूर्ण बातों का उल्लेख मिलता है ।खासकर सोहराय और कोहबर कला की छवि इस म्यूजियम में देखने को मिलती है। इमाम खुद कहते हैं कि उन्होंने इस म्यूजियम को कैसे बनाया इस बात को लेकर कोई विशेष योजना नहीं थी। लेकिन आज यह म्यूजियम को देखने के लिए और आदिवासी समाज के बारे में जानने के लिए विश्व के कोने-कोने से लोग पहुंच रहे हैं। इसे लेकर भी खुशी है ।उनका कहना है कि सबसे बड़ी सभ्यता झारखंड में को रही है तो दामोदर घाटी। जहां पत्थर के औजार से लेकर लोहे के औजार तक मिले हैं । इस सभ्यता में जीने का कला भी काफी सुंदर था। क्योंकि आदिवासी शांति में जीते थे ।यहां सोहराय और ओवर कला के जरिए यह जानकारी मिलती है कि मारकाट की जीवन से लोग ऊपर उठकर खेती की ओर अग्रसर हुए । उस खुशी का पल रहा ,जिसे लोगों ने आकृति के रूप में अपने दीवारों पर उभारा है।

byte.... पद्मश्री बुलु इमाम आदिवासी समाज के ऊपर शोध करने वाले

byte.... पद्मश्री बुलु इमाम म्यूजियम पर





Conclusion:कहां जाए तो बुलु इमाम सोच पर विचार किया जाए तो यह कहने में तनिक भी आश्चर्य की बात नहीं है कि आदिवासी समाज सभी सभ्यता की जननी रही है ।जरूरत है इस समाज को संरक्षित करने की साथ ही साथ उनके जीवन कला को विश्व पटल पर लाने की।

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