रांचीः भारतीय संघीय ढांचे में पहली बार जनजातीय समुदाय से आने वाली महिला ने देश की प्रथम नागरिक बनने का गौरव हासिल करेंगी. राष्ट्रपति चुनाव में आदिवासी महिला द्रौपदी मुर्मू निर्वाचित हो गई हैं (Presidential Elections 2022: Droupadi Murmu declared president). इसकी घोषणा होते ही संथाल परगना सहित देश भर के आदिवासी समाज में खुशी की लहर दौड़ गयी है. सभी अपने-अपने तरीके से जश्न मनाने लगे हैं. आदिवासी समाज की द्रौपदी मुर्मू से उम्मीदें काफी बढ़ गई हैं. इसकी वजह है कि आजादी के बाद से पहली बार जनजातीय समुदाय से आने वाली एक महिला सर्वोच्च पद पर आसीन होंगी. समुदाय के लोग इस बात से गर्व महसूस कर रहे हैं. द्रौपदी मुर्मू की जीत के साथ ही हाशिए पर रहे संथाली समाज के लोगों में विकास को लेकर एक नई ऊर्जा का संचार हुआ है. आदिवासी समुदाय में गुरुवार से ही जश्न का माहौल है. यह समाज अपने धर्म, कला और संस्कृति से इस कदर जुड़ा है कि हर गतिविधि में उसकी झलक दिखाई देती है. मांदर की थाप आदिवासी नृत्य इस उत्सव का प्रमुख हिस्सा है. हम आपको उनसे जुड़ी तमाम बातों से परिचय करा रहे हैं.
आदिवासी समाज और संस्कृति हमारे देश में जितनी प्राचीन है, उसकी जानकारी उतनी ही कम है. आदिवासियों में अद्भुत और विलक्षण क्या है, उनका जीवन और व्यवहार हमसे कितना अलग है, इसकी चर्चा हमेशा आम लोगों के लिए कौतूहल का विषय रहा है. इनके जीवन, रीति रिवाज, जादू-टोने और विलक्षण अनुष्ठानों के बारे में चर्चा तो खूब होती है. लेकिन उनके पारिवारिक जीवन की मानवीय व्यथा के बारे में बहुत कम लोगों को ही पता है. झारखंड की पूर्व राज्यपाल द्रौपदी मुर्मू के राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार बनाए जाने के बाद इस समुदाय के प्रति आमजनों में जहां सम्मान बढ़ा है. वहीं इनके बारे में जानने के लिए लोगों में ललक भी बढ़ी है.
आदिवासियों की 32 जातियां हैं, जिसमें संथाल, मुंडा, हो, उरांव, महली, बिरहोर, खड़िया आदि प्रमुख हैं. सामान्यतः क्षेत्र और भाषाओं के आधार पर इनका विभाजन हुआ है. अगर आदिवासियों की भाषाई विविधता पर बात करें तो संथाल समाज की भाषा संथाली है. वहीं उरांव की कुडुख, मुंडा की मुंडारी, हो की भाषा हो है तो खड़िया की खड़िया. इसमें मुंडारी, हो और संथाली भाषा में काफी समानताएं हैं. उरांव जाति की कुडुख भाषा बिल्कुल अलग है. कहा जाता है कि यह तेलुगु और तमिल से मिलती जुलती है.
प्रकृति के उपासक आदिवासी समाज का सबसे बड़ा पर्व सोहराय है. इसके अलावा कर्मा और सरहुल पर्व को भी काफी धूमधाम से मनाते हैं. इनके पर्व त्योहार की खास बात यह है कि यह सभी प्रकृति पूजा है. कुल मिलाकर कहा जाए तो आदिवासी प्रकृति के उपासक होते हैं. इतना ही नहीं, आदिवासी समुदाय के लोग पालतू मवेशियों को भी पूजते हैं.
आदिवासी समाज अब भी अपनी परंपरा, कला और संस्कृति से जुड़ कर रहना इस समाज की सबसे बड़ी खूबी है. लेकिन कुछ प्रथाएं ऐसी भी हैं, जो आज भी समाज में विद्यमान हैं. खासतौर से डायन बताकर हत्या कर देने जैसी घटनाएं आए दिन इस समाज में सुनने को मिलती हैं. द्रोपदी मुर्मू के राष्ट्रपति बनने के बाद यह बात तो साफ हो गई है कि महिलाओं को लेकर जिस तरह की मानसिकता और जिस तरह की व्यवस्था इस समाज के भीतर है. वह निश्चित तौर पर टूटेगी और समाज का यह वर्ग देश के विकास में कदम से कदम मिलाकर चलेगा.