रांचीः भारतीय जनता पार्टी ने हेमंत सरकार पर वनाधिकार कानून ((Forest Rights Law)) को अक्षरश: लागू नहीं करने का आरोप लगाया है. रांची में मीडिया से बात करते हुए भाजपा एसटी मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष समीर उरांव (BJP ST Morcha National President Sameer Oraon) ने कहा है कि इस वजह से राज्य के जनजाति समाज परेशान हैं और इस कानून का लाभ मिलने से वंचित हैं.
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भारतीय जनता पार्टी ने वनाधिकार कानून के प्रति राज्य सरकार की उदासीन रवैया पर चिंता जताया. भाजपा एसटी मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष समीर उरांव ने प्रेस वार्ता में कहा कि जनजाति समाज के कल्याण और उत्थान के लिए बने इस कानून का लाभ लोगों को नहीं मिल रहा है. भाजपा एसटी मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष सह सांसद समीर उरांव (MP Sameer Oraon) ने बताया कि अनुसूचित जनजाति एवं अन्य परंपरागत निवासी अधिनियम-2006 जिसे वनाधिकार कानून के नाम से जाना जाता है और संविधान की पांचवी अनुसूची के तहत अनुसूचित क्षेत्रों के लिए पंचायती राज प्रावधान अधिनियम-1996 (Panchayat Extension to the Scheduled Areas Act, 1996) को पारित हुए लगभग दो दशक बीत चुके हैं.
जनजातीय समाज को नहीं मिल रहा कानून का लाभ
लेकिन इन दोनों कानून के क्रियान्वयन की दिशा में राज्य सरकार की उदासीनता और असहयोगात्मक रवैये की वजह से जनजातीय समाज को इन कानूनों का लाभ नहीं मिल पा रहा, यह अत्यंत गंभीर विचारणीय विषय है. उन्होंने कहा कि इस संदर्भ में वर्तमान की केंद्र सरकार की ओर से देश में जनजातीय समाज को वनों पर अधिकार देने के लिए सकारात्मक पहल की जा रही है. साथ ही केंद्र सरकार के जनजाति मामलों का मंत्रालय, केंद्रीय वन-पर्यावरण एवं मौसम विभाग मंत्रालय की ओर से मिलकर संयुक्त रूप से समान नियमों का सामंजस्य स्थापित करते हुए संयुक्त रूप से क्रियान्वयन की आवश्यकता है.
कानून बने 15 साल हो गए, अब तक लाभ नहीं मिला
उन्होंने कहा कि इस कानून को बने और देश में लागू किए हुए 15 वर्ष पूरे हो चुके हैं, पर वनों पर अपनी जीविका के लिए आश्रित ही आज इनसे वंचित हैं. इनको परंपरागत रूप से वन संसाधनों का नैसर्गिक ज्ञान है, वन देवता को पूजते हुए वन एवं पर्यावरण की सुरक्षा रक्षा और संरक्षण करने वाला जनजाति समाज अपने परंपरागत अधिकारों से आज भी वंचित है. कानून में प्रावधान रहते हुए भी गांव-समाज को अपनी परंपरागत गांव सीमा क्षेत्र के वन संसाधनों का पुनर्निमाण, पुनरुद्धार करने, संवर्द्धन एवं प्रबंधन का अधिकार अभी तक प्राप्त नहीं हुआ है.
वन विभाग का सहयोग नहीं मिलता
इस कानून के तहत वनाधिकार के व्यक्तिगत वन-भूमि पट्टा (Forest Land Lease) जरूर दिया गया, पर सामुदायिक वनाधिकार पट्टा पूरे देश में मात्र 10 प्रतिशत दिए जा सके हैं, जो चिंता का विषय है. उन्होंने कहा कि देश में ऐसे भी राज्य हैं, जो गांव वासियों, वनवासियों को वनों के संसाधनों पर सामुदायिक अधिकार देने के बाद गांव की ग्राम सभाओं को विविध प्रकार के तकनीकी एवं वित्तीय सहयोग देने का प्रयास किया है. ऐसे राज्यों में महाराष्ट्र, ओडिशा जैसे प्रांतों ने तो जिला स्तर पर कनवर्जंस करते हुए ग्राम सभाओं को सक्षम बनाया गया है. फिर इन्ही विषयों पर अन्य राज्यों में वन विभाग सहयोग करना क्यों नहीं चाहती या नहीं कर रही है.
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पेसा का भी हो रहा है उल्लंघन- शिवशंकर
भाजपा अनुसूचित जनजाति मोर्चा के प्रदेश अध्यक्ष शिवशंकर उरांव ने कहा है कि केंद्रीय कानून पेसा (PESA Act-1996) साल 1996 को पारित हुए आज 25 वर्ष पूरे हो चुके हैं. लेकिन राज्य के पंचायतीराज कानून में गौण वनोत्पाद, गौण खनिजों पर ग्राम सभा को मालिकाना अधिकार देने के मामले में भारी विसंगतिया हैं. वास्तविकता तो यह है कि केंद्रीय पेसा कानून के विपरित गौण वनोपज एवं गौण खनिज पदार्थों पर ग्राम सभा को अधिकार ही नहीं दिए गए हैं, यह केंद्रीय कानून का उलंघन है.
इसलिए केंद्रीय स्तर पर वन, पर्यावरण एवं मौसम विभाग मंत्रालय और केंद्रीय जनजाति मामलों का मंत्रालय को आपस मिलकर समन्वित रूप से प्रावधानों का निरूपण करके राज्यों को भेजने की आवश्यकता है. उन्होंने कहा कि राज्य में इस कानून का पूर्ण उल्लंघन किया जा रहा है. जब से हेमंत सोरेन की सरकार आई है, ग्राम पंचायत को दिए अधिकार छीने जा रहे, बालू घाट की नीलामी कर ग्राम पंचायत का सीधे उल्लंघन हो रहा है.
वन अधिकार अधिनियम क्या है?
वन अधिकार अधिनियम (2006) वनवासी समुदायों के पारंपरिक अधिकारों और वनों तक उनकी पहुँच को संस्थागत बनाने की आवश्यकता को मान्यता देता है. इस प्रकार भारतीय राज्य ने वन-आश्रित लोगों की आजीविका और आश्रय के पुनर्वास के लिए वैधानिक व्यवस्था करते हुए वनों तक उनकी पहुँच को सीमित करके एक संरक्षक की भूमिका निभाई.
PESA कानून क्या है?
पंचायत (अनुसूचित क्षेत्रों में विस्तार) अधिनियम 1996 (Panchayat Extension to the Scheduled Areas Act, 1996) जो पेसा के नाम से जाना जाता है, संसद का एक कानून है ना कि पांचवीं एवं छठी अनुसूची जैसा संवैधानिक प्रावधान. इसलिए इन क्षेत्रों के लिए यह अधिनियम एक मूलभूत कानून का स्थान रखता है.