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सीएम हेमंत सोरेन के सपने पर पानी फेर रहा सिस्टम, दुमका में ही दम तोड़ रही बिरसा हरित ग्राम योजना - बिरसा हरित ग्राम योजना

मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन (Chief Minister Hemant Soren) ने 4 मई 2020 को बिरसा हरित ग्राम (Birsa Harit Gram Yojna) योजना लॉन्च की. इसका मकसद था कोरोना महामारी (corona pandemic) के दौर में जो प्रवासी मजदूर लौटे थे उन्हें अपने घर में रोजगार देना. लेकिन सीएम हेमंत सोरेन का ये सपना दुमका में ही दम तोड़ रहा है.

Birsa Harit Gram Yojna
सीएम हेमंत सोरेन
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Published : Aug 20, 2021, 8:28 PM IST

Updated : Aug 20, 2021, 9:07 PM IST

रांची: मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन (Chief Minister Hemant Soren) की राजनीतिक रणभूमि और झामुमो सुप्रीमो की कर्मभूमि दुमका में बिरसा हरित ग्राम योजना (Birsa Harit Gram Yojna) दम तोड़ती दिख रही है. इस योजना की अहमियत का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि इसकी शुरूआत 4 मई 2020 को खुद मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने ही की थी. इसका मकसद था कि कोरोना महामारी (corona pandemic) के कारण परदेस से लौटे अकुशल मजदूरों को गांव में ही काम मिले और आमदनी का एक जरिया तैयार हो जाए. लेकिन गुजरते वक्त के साथ दुमका जिला इस योजना से दूर होता रहा है.

ये भी पढ़ें: मुख्यमंत्री बिरसा हरित ग्राम योजना का लाभुकों को नहीं हो रहा भुगतान

दुमका में बिरसा हरित ग्राम योजना के तहत फलदार और टिंबर ट्री लगाने के लिए 952 एकड़ जमीन चिन्हित कर 1,56,307 गड्ढे भी खोद दिए गए थे. लेकिन 13,554 गड्ढों में ही पौधे लगाए जा सके हैं. यानी सिर्फ 9 फीसदी गड्ढों में पौधे लगे हैं. यही नहीं देखरेख के अभाव में बड़ी संख्या में पौधे सूख गए. दुमका के बाद बोकारो में 23 प्रतिशत, रांची में 33 प्रतिशत, गोड्डा में 34, पश्चिमी सिंहभूम में 44 और गढ़वा में महज 46 प्रतिशत गड्ढों में पौधे लगाए गये हैं. खास बात है कि बड़ी संख्या में पूर्व में लगाए पौधे सूख चुके हैं लेकिन उसकी जगह दुमका में सिर्फ 2342 पौधे दोबारा लगाए गए. बोकारो, रांची, पश्चिमी सिंहभूम, गढ़वा, धनबाद, लातेहार और गिरिडीह में भी एक भी पौधा दोबारा नहीं लगा है.

कई जिलों का परफॉर्मेंस अच्छा

ऐसा नहीं कि बिरसा हरित ग्राम योजना पूरे राज्य में फेल हो गई है. कई जिले हैं जहां इसका शानदार परफॉर्मेंस दिख रहा है. इस मामले में सबसे टॉप पर है पलामू जिला. यहां 723 एकड़ जमीन पर किए गए सभी 1,38,014 गड्ढों में पौधे लगाए जा चुके हैं. पलामू में 17,525 पौधे ट्रांसप्लांट भी किए गये हैं. लोहरदगा, जामताड़ा, कोडरमा, देवघर, लातेहार, गिरिडीह और चतरा में 80 प्रतिशत से ज्यादा गड्ढों में पौधे लगाए जा चुके हैं. मोटे तौर पर देखें तो राज्य स्तर पर इस योजना के नाम पर कुल 21,134 एकड़ जमीन चिन्हित की गई है. इसमें कुल 36,35,106 गड्ढे किए गए हैं और 22,10,425 पौधे लगाए जा सके हैं.

सीएम ने क्यों शुरू की थी यह योजना

पिछले साल मार्च में कोरोना ने दस्तक दी थी. पहली बार लॉक डाउन से सामना हुआ था. मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने दूसरे प्रदेशों में फंसे अपने मजदूरों को लाने के लिए एड़ी चोटी एक कर दी थी. 1 मई 2020 को मजदूरों को लेकर पहली ट्रेन हटिया पहुंची थी. बाद में सीएम की पहल पर विमान से भी मजदूर झारखंड लौटे थे. महामारी के उस कठिन दौर में ग्रामीण अर्थव्यवस्था को बचाने के लिए सीएम ने दूरगामी सोच के साथ 4 मई 2020 को बिरसा हरित ग्राम योजना की शुरूआत की थी. इसका मकसद है व्यापक स्तर पर फलदार और टिंबर ट्री लगाना ताकि कुछ वर्ष में पेड़ों पर फल लगने से ग्रामीण उसे बेचकर अपनी आजीविका चला सकें. लोगों को दो पैसे कमाने के लिए परसेद जाने की जरूरत न पड़े. लेकिन झारखंड का सिस्टम सीएम के सपने पर पानी फेर रहा है.

रांची: मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन (Chief Minister Hemant Soren) की राजनीतिक रणभूमि और झामुमो सुप्रीमो की कर्मभूमि दुमका में बिरसा हरित ग्राम योजना (Birsa Harit Gram Yojna) दम तोड़ती दिख रही है. इस योजना की अहमियत का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि इसकी शुरूआत 4 मई 2020 को खुद मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने ही की थी. इसका मकसद था कि कोरोना महामारी (corona pandemic) के कारण परदेस से लौटे अकुशल मजदूरों को गांव में ही काम मिले और आमदनी का एक जरिया तैयार हो जाए. लेकिन गुजरते वक्त के साथ दुमका जिला इस योजना से दूर होता रहा है.

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दुमका में बिरसा हरित ग्राम योजना के तहत फलदार और टिंबर ट्री लगाने के लिए 952 एकड़ जमीन चिन्हित कर 1,56,307 गड्ढे भी खोद दिए गए थे. लेकिन 13,554 गड्ढों में ही पौधे लगाए जा सके हैं. यानी सिर्फ 9 फीसदी गड्ढों में पौधे लगे हैं. यही नहीं देखरेख के अभाव में बड़ी संख्या में पौधे सूख गए. दुमका के बाद बोकारो में 23 प्रतिशत, रांची में 33 प्रतिशत, गोड्डा में 34, पश्चिमी सिंहभूम में 44 और गढ़वा में महज 46 प्रतिशत गड्ढों में पौधे लगाए गये हैं. खास बात है कि बड़ी संख्या में पूर्व में लगाए पौधे सूख चुके हैं लेकिन उसकी जगह दुमका में सिर्फ 2342 पौधे दोबारा लगाए गए. बोकारो, रांची, पश्चिमी सिंहभूम, गढ़वा, धनबाद, लातेहार और गिरिडीह में भी एक भी पौधा दोबारा नहीं लगा है.

कई जिलों का परफॉर्मेंस अच्छा

ऐसा नहीं कि बिरसा हरित ग्राम योजना पूरे राज्य में फेल हो गई है. कई जिले हैं जहां इसका शानदार परफॉर्मेंस दिख रहा है. इस मामले में सबसे टॉप पर है पलामू जिला. यहां 723 एकड़ जमीन पर किए गए सभी 1,38,014 गड्ढों में पौधे लगाए जा चुके हैं. पलामू में 17,525 पौधे ट्रांसप्लांट भी किए गये हैं. लोहरदगा, जामताड़ा, कोडरमा, देवघर, लातेहार, गिरिडीह और चतरा में 80 प्रतिशत से ज्यादा गड्ढों में पौधे लगाए जा चुके हैं. मोटे तौर पर देखें तो राज्य स्तर पर इस योजना के नाम पर कुल 21,134 एकड़ जमीन चिन्हित की गई है. इसमें कुल 36,35,106 गड्ढे किए गए हैं और 22,10,425 पौधे लगाए जा सके हैं.

सीएम ने क्यों शुरू की थी यह योजना

पिछले साल मार्च में कोरोना ने दस्तक दी थी. पहली बार लॉक डाउन से सामना हुआ था. मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने दूसरे प्रदेशों में फंसे अपने मजदूरों को लाने के लिए एड़ी चोटी एक कर दी थी. 1 मई 2020 को मजदूरों को लेकर पहली ट्रेन हटिया पहुंची थी. बाद में सीएम की पहल पर विमान से भी मजदूर झारखंड लौटे थे. महामारी के उस कठिन दौर में ग्रामीण अर्थव्यवस्था को बचाने के लिए सीएम ने दूरगामी सोच के साथ 4 मई 2020 को बिरसा हरित ग्राम योजना की शुरूआत की थी. इसका मकसद है व्यापक स्तर पर फलदार और टिंबर ट्री लगाना ताकि कुछ वर्ष में पेड़ों पर फल लगने से ग्रामीण उसे बेचकर अपनी आजीविका चला सकें. लोगों को दो पैसे कमाने के लिए परसेद जाने की जरूरत न पड़े. लेकिन झारखंड का सिस्टम सीएम के सपने पर पानी फेर रहा है.

Last Updated : Aug 20, 2021, 9:07 PM IST
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