रांची: भाई बहन के बीच अटूट रिश्ते का पर्व भाई दूज दिवाली के 2 दिन बाद कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को मनाया जाता है. भाई दूज के त्योहार में बहन अपने भाईयों के माथे पर तिलक लगाकर उनकी आरती उतारती है. साथ ही भगवान से उनकी लंबी आयु और अच्छे भविष्य की कामना करती हैं.
भाई दूज भी राखी जैसा ही पर्व होता है. लेकिन, इसमें भाई के हाथों में राखी नहीं बांधी जाती है. हालांकि, इस पर्व में भी भाई अपनी बहन की रक्षा करने का वादा करते हैं. जबकि बहन अपने भाई की सलामती की दुआ मांगती हैं.
जानिए क्यों मनाते हैं भाई दूज?
ऐसा मानना है कि सूर्य की संज्ञा से दो संतानें थी. जिसमें पहला पुत्र यमराज और दूसरी पुत्री यमुना थी. यमुना ने इस दिन अपने भाई यमराज की लंबी आयु के लिए लिए व्रत रखा था और अन्नाकुट का भोजन खिलाया था. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार यम देवता इसी दिन अपनी बहन यमुना को दर्शन दिए थे. जिससे यमुना प्रसन्न हो गई थी.
भाई-बहन के स्नान का है महत्व
ऐसा कहा जाता है कि इस दिन यम ने भी प्रसन्न होकर यमुना को वरदान दिया. यम के वरदान के मुताबिक जो इस दिन भाई-बहन एक साथ यमुना नदी में स्नान करेंगे तो उन्हें मुक्ति की प्राप्ति होगी. यही कारण है कि यमुना नदी में भाई-बहन के एक साथ स्नान करने का बड़ा महत्व माना जाता है. इसके साथ ही यमुना ने अपने भाई से वचन लिया कि आज के दिन हर बहन को अपने भाई के पास जाना चाहिए. तब से ही इस पर्व की शुरुआत हो गई.
कैसे मनाए भाई दूज?
पौराणिक मान्यताएं हैं कि इस मौके पर भाई-बहन को सुबह स्नान कर लेना चाहिए. उसके बाद बहनों को अपनी भाईयों के लिए ईष्ट देवता की पूजा करनी चाहिए. जो चावल के आटे से चौक तैयार किया जाता है. इसपर भाई को बिठाया जाता है. इसके बाद भाई की हथेलियों पर चावल का घोल लगाया जाता है. फिर भाई के ऊपर कद्दु का फूल, सुपारी, द्रव्य आदि लेकर धीरे-धीरे हाथों से पानी छोड़ा जाता है.
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जाने कब है मुहूर्त?
भाई दूज का दिन- 29 अक्टूबर यानी मंगलवार
भाई दूज तिलक मुहूर्त- दोपहर 1 बजकर 11 मिनट से लेकर दोपहर 3 बजकर 23 मिनट तक.
दूसरा मुहूर्त- 29 अक्टूबर शाम 6 बजकर 13 मिनट से शुरू
दूसरा मुहूर्त समाप्ती- 30 अक्टूबर दोपहर 3 बजकर 47 मिनट