रांची: भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी को अनंत चतुर्दशी की पूजा की जाती है. इस दिन भगवान विष्णु के अनंत स्वरूप की पूजा पूरे विधि विधान के साथ कर संकटो से रक्षा के लिए भक्त रक्षा सूत्र बांधते हैं. जिसे 14 गांठ वाला अनंत सूत्र कहा जाता है. स्त्रियां दाएं हाथ और पुरुष बाएं हाथ में अनंत सूत्र धारण करते हैं. इस साल 19 सितंबर (रविवार) को ये पर्व मनाया जाएगा.
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क्या है पूजा की विधि
अनंत चतुर्दशी की पूजा पूरे विधि विधान के साथ किया जाता है. रांची के प्रख्यात पंडित स्वामी दिव्यानंद महाराज बताते हैं कि पूजा करने से पहले किसी नदी या सरोवर के तट पर पहले स्नान करें. उसके बाद घर में भगवान विष्णु की शेषनाग की शैया पर लेटे मूर्ति या चित्र को स्थापित कर उसके सामने 14 घाटों वाली अनंत सूत्र के डोर को रखें. पूजा के बाद मंत्र पढ़कर पुरुष अपने दाहिने हाथ और स्त्री अपने बाएं हाथ में अनंत सूत्र को बांध लें जिससे उनकी सभी मनोकामना पूर्ण होगी और उनके जीवन में आने वाली समस्या भी समाप्त हो जाएगी. अनंत चतुर्दशी के दिन भक्त अपने घर के पूजा स्थल पर पीला फूल, पीला फल, चूर्ण, पंचामृत, धूप, दीप, नैवेद्य (भोग) से भगवान विष्णु के सभी रूपों की पूजा अवश्य करें.
क्या है 14 गांठों का रहस्य
अनंत चतुर्दशी के दिन शुभ मुहूर्त में पूजा करने के बाद अनंत सूत्र को हाथ में बांधा जाता है. इस सूत्र में 14 गांठें होती है जिसे 14 लोकों से जोड़कर देखा जाता है. इसके बारे में धार्मिक मान्यता है कि भौतिक जगत में 14 लोक हैं. जिनमें भूर्लोक, भुवर्लोक, स्वर्लोक, महर्लोक, जनलोक, तपोलोक, ब्रह्मलोक, अतल, वितल, सतल, रसातल, तलातल, महातल और पाताल लोक शामिल है. अनंत सूत्र में लगने वाली हर एक गांठ एक लोक का प्रतिनिधित्व करती है जिसे हाथ में बांधा जाता है.
कब तक रहेगा शुभ मुहूर्त
पंडितों के मुताबिक इस साल अनंत चतुर्दशी पूजा का शुभ मुहूर्त 19 सितंबर की सुबह 6 बजे से शुरू होकर अगले दिन यानि 20 सितंबर को सुबह 6 बजे तक रहेगा. अनंत चतुर्दशी पूजा के लिए शुभ मुहूर्त की कुल अवधि 24 घंटे की होगी. इसीलिए भक्त 19 सितंबर को दिन में किसी समय पर भगवान विष्णु का पूजा कर अनंत चतुर्दशी मना सकते हैं.
क्या है पौराणिक मान्यता
स्वामी दिव्यानंद महाराज बताते हैं कि अनंत चतुर्दशी मनाने के पीछे कई पौराणिक मान्यता है. उनके मुताबिक एक मान्यता ये है कि जब राजा युधिष्ठिर दुर्योधन से जुए में हारकर 12 वर्ष के लिए अज्ञातवास में गए तब उन्हें काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ा. इसी कष्ट से निजात दिलाने के लिए भगवान कृष्ण ने युधिष्ठिर को अनंत भगवान का व्रत करने को कहा. व्रत करने के साथ ही युधिष्ठिर के सारे कष्ट दूर हो गए और एक बार फिर वे राजा बन गए. तभी से अपने कल्याण के लिए अनंत चतुर्दशी की पूजा की परंपरा चलते आ रही है.