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स्थापना दिवस विशेष: किशोर से युवा हुआ झारखंड, कई राजनीतिक घटनाक्रम का बना गवाह - 19वां झारखंड दिवस

किशोरावस्था की दहलीज पार कर युवावस्था में प्रवेश करने वाले झारखंड ने पिछले 19 सालों में कई राजनीतिक उतार-चढ़ाव देखें हैं. इस दौरान राज्य में कई बार राष्ट्रपति शासन भी लग चुका है. इस दौरान 10 10 मुख्यमंत्रियों का शासनकाल देखा.

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Published : Nov 15, 2019, 7:16 AM IST

Updated : Nov 15, 2019, 8:59 AM IST

रांची: किशोरावस्था की दहलीज पार कर युवावस्था में प्रवेश करने वाले झारखंड ने पिछले 19 सालों में कई राजनीतिक उतार-चढ़ाव देखें हैं. एकीकृत बिहार से नवंबर 2000 में अलग हुए इस प्रदेश ने पिछले 19 साल में 10 मुख्यमंत्रियों का शासनकाल देखा. इसके साथ ही इतने विधानसभा अध्यक्षों को भी देखा.

नेताओं का बयान

उन मुख्यमंत्रियों में अर्जुन मुंडा और शिबू सोरेन दो ऐसे चेहरे हैं जिन्होंने अलग-अलग तीन तीन बार राज्य के मुखिया की कमान संभाली. बीजेपी के नेता और राज्य के तत्कालीन मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा तीन बार सीएम बने जबकि प्रदेश में प्रमुख विपक्षी दल की सबसे लंबी पारी खेलने वाले झारखंड मुक्ति मोर्चा सुप्रीमो शिबू सोरेन के माथे 10 दिन के मुख्यमंत्री बनने का रिकॉर्ड है. इसके अलावा निर्दलीय मुख्यमंत्री बनने वाले मधु कोड़ा देश में तीसरे ऐसे शख्स के रूप में जाने जाते हैं जिन्होंने बिना किसी दल से जुड़े दो साल से अधिक शासन किया. राज्य में 2014 में हुए विधानसभा चुनावों के बाद बीजेपी को पहली बार कथित तौर पर पूर्ण बहुमत वाली सरकार चलाने का मौका मिला.

ये भी पढ़ें- सुदेश महतो से मुलाकत करने पहुंचे प्रदीप बालमुचू, कांग्रेस छोड़ AJSU का थाम सकते हैं दामन

जमकर चला दलबदल का खेल
अपने स्थापना के बाद से ही झारखंड में राजनीतिक अस्थिरता का दौर देखने को मिला. इस दौरान सरकारें आई और गई. उनमें सबसे ज्यादा चांदी दलबदलू विधायकों ने काटी. एक तरफ जहां निर्दलीय विधायकों ने तत्कालीन बीजेपी सरकार का समर्थन कर अपना लोहा मनवाया. वहीं दूसरी तरफ अलग-अलग दलों से जीतकर विधानसभा पहुंचे, विधायकों ने बीजेपी का दामन थाम कर पूरे देश में चर्चा का माहौल पैदा कर दिया. इसका सबसे ज्यादा असर झारखंड विकास मोर्चा में देखने को मिला जहां 2009 विधानसभा चुनाव के बाद और फिर 2014 के विधानसभा चुनाव के बाद बड़ी संख्या में विधायकों ने पाला बदला. 2014 में जेवीएम के 6 विधायकों ने बीजेपी का दामन थाम लिया.

मिला प्रशिक्षण फिर भी टूटी संसदीय मर्यादा
हालांकि, 19 साल में पहली बार 2014 में बनी बीजेपी सरकार ने नए विधायकों के लिए बाकायदा प्रशिक्षण कार्यक्रम बुलाया गया. इस कार्यक्रम में लोकसभा के अध्यक्ष सुमित्रा महाजन ने विधायकों को चरित्र और संसदीय मर्यादा का पाठ पढ़ाया लेकिन सबसे ज्यादा इसी दौरान संसदीय मर्यादा तार-तार हुईं. झारखंड के संसदीय इतिहास में पहली बार विधानसभा अध्यक्ष के ऊपर जूते फेंके गए और सदन के मुखिया ने कथित तौर पर अपशब्द का प्रयोग किया गया.

मिला अपना विधानसभा भवन
19 साल के झारखंड में कुछ ऐसी भी चीजें देखने को मिली जिसकी वजह से पूरे देश में इसका नाम पॉजिटिव सेंस में लिया जाएगा. उनमें सबसे पहला झारखंड विधानसभा का भवन है जो अपने आप में अनूठा है. मौजूदा 81 सदस्य विधानसभा भवन में डेढ़ सौ से अधिक विधायकों को एकोमोडेट किया जा सकता है. इसके साथ ही यहां बैठने के लिए मंत्रियों, सभापति, नेता प्रतिपक्ष और मुख्यमंत्री के लिए अलग-अलग बकायदा चेंबर बने हुए. इसके अलावा विधानसभा के पास ही सचिवालय का भी शिलान्यास किया गया. इसके पूरा होने से सरकारी कार्यालय एक ही इलाके में स्थापित हो जा सकेंगे.

क्या कहते हैं राजनेता ?
इस बारे में बीजेपी के प्रदेश प्रवक्ता प्रतुल शाहदेव कहते हैं कि झारखंड के झारखंड में 19 साल में काफी लंबा सफर तय किया है. गठबंधन सरकार की मजबूरी रही कि सरकारी योजनाएं बनी लेकिन धरातल पर नहीं उतर सकी. अब स्थितियां बदली है वहीं झारखंड प्रदेश कांग्रेस कमिटी के कार्यकारी अध्यक्ष केशव महतो कमलेश ने कहा कि झारखंड पिछले 19 सालों में काफी आगे जा सकता था लेकिन राजनीतिक अस्थिरता सबसे बड़ी रुकावट रही. उन्होंने कहा कि सबसे अधिक समय तक राज्य में बीजेपी ने शासन किया बावजूद इसके अभी तक अपनी असफलता का ठीकरा दूसरे दलों के ऊपर फोड़ते आये हैं.

रांची: किशोरावस्था की दहलीज पार कर युवावस्था में प्रवेश करने वाले झारखंड ने पिछले 19 सालों में कई राजनीतिक उतार-चढ़ाव देखें हैं. एकीकृत बिहार से नवंबर 2000 में अलग हुए इस प्रदेश ने पिछले 19 साल में 10 मुख्यमंत्रियों का शासनकाल देखा. इसके साथ ही इतने विधानसभा अध्यक्षों को भी देखा.

नेताओं का बयान

उन मुख्यमंत्रियों में अर्जुन मुंडा और शिबू सोरेन दो ऐसे चेहरे हैं जिन्होंने अलग-अलग तीन तीन बार राज्य के मुखिया की कमान संभाली. बीजेपी के नेता और राज्य के तत्कालीन मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा तीन बार सीएम बने जबकि प्रदेश में प्रमुख विपक्षी दल की सबसे लंबी पारी खेलने वाले झारखंड मुक्ति मोर्चा सुप्रीमो शिबू सोरेन के माथे 10 दिन के मुख्यमंत्री बनने का रिकॉर्ड है. इसके अलावा निर्दलीय मुख्यमंत्री बनने वाले मधु कोड़ा देश में तीसरे ऐसे शख्स के रूप में जाने जाते हैं जिन्होंने बिना किसी दल से जुड़े दो साल से अधिक शासन किया. राज्य में 2014 में हुए विधानसभा चुनावों के बाद बीजेपी को पहली बार कथित तौर पर पूर्ण बहुमत वाली सरकार चलाने का मौका मिला.

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जमकर चला दलबदल का खेल
अपने स्थापना के बाद से ही झारखंड में राजनीतिक अस्थिरता का दौर देखने को मिला. इस दौरान सरकारें आई और गई. उनमें सबसे ज्यादा चांदी दलबदलू विधायकों ने काटी. एक तरफ जहां निर्दलीय विधायकों ने तत्कालीन बीजेपी सरकार का समर्थन कर अपना लोहा मनवाया. वहीं दूसरी तरफ अलग-अलग दलों से जीतकर विधानसभा पहुंचे, विधायकों ने बीजेपी का दामन थाम कर पूरे देश में चर्चा का माहौल पैदा कर दिया. इसका सबसे ज्यादा असर झारखंड विकास मोर्चा में देखने को मिला जहां 2009 विधानसभा चुनाव के बाद और फिर 2014 के विधानसभा चुनाव के बाद बड़ी संख्या में विधायकों ने पाला बदला. 2014 में जेवीएम के 6 विधायकों ने बीजेपी का दामन थाम लिया.

मिला प्रशिक्षण फिर भी टूटी संसदीय मर्यादा
हालांकि, 19 साल में पहली बार 2014 में बनी बीजेपी सरकार ने नए विधायकों के लिए बाकायदा प्रशिक्षण कार्यक्रम बुलाया गया. इस कार्यक्रम में लोकसभा के अध्यक्ष सुमित्रा महाजन ने विधायकों को चरित्र और संसदीय मर्यादा का पाठ पढ़ाया लेकिन सबसे ज्यादा इसी दौरान संसदीय मर्यादा तार-तार हुईं. झारखंड के संसदीय इतिहास में पहली बार विधानसभा अध्यक्ष के ऊपर जूते फेंके गए और सदन के मुखिया ने कथित तौर पर अपशब्द का प्रयोग किया गया.

मिला अपना विधानसभा भवन
19 साल के झारखंड में कुछ ऐसी भी चीजें देखने को मिली जिसकी वजह से पूरे देश में इसका नाम पॉजिटिव सेंस में लिया जाएगा. उनमें सबसे पहला झारखंड विधानसभा का भवन है जो अपने आप में अनूठा है. मौजूदा 81 सदस्य विधानसभा भवन में डेढ़ सौ से अधिक विधायकों को एकोमोडेट किया जा सकता है. इसके साथ ही यहां बैठने के लिए मंत्रियों, सभापति, नेता प्रतिपक्ष और मुख्यमंत्री के लिए अलग-अलग बकायदा चेंबर बने हुए. इसके अलावा विधानसभा के पास ही सचिवालय का भी शिलान्यास किया गया. इसके पूरा होने से सरकारी कार्यालय एक ही इलाके में स्थापित हो जा सकेंगे.

क्या कहते हैं राजनेता ?
इस बारे में बीजेपी के प्रदेश प्रवक्ता प्रतुल शाहदेव कहते हैं कि झारखंड के झारखंड में 19 साल में काफी लंबा सफर तय किया है. गठबंधन सरकार की मजबूरी रही कि सरकारी योजनाएं बनी लेकिन धरातल पर नहीं उतर सकी. अब स्थितियां बदली है वहीं झारखंड प्रदेश कांग्रेस कमिटी के कार्यकारी अध्यक्ष केशव महतो कमलेश ने कहा कि झारखंड पिछले 19 सालों में काफी आगे जा सकता था लेकिन राजनीतिक अस्थिरता सबसे बड़ी रुकावट रही. उन्होंने कहा कि सबसे अधिक समय तक राज्य में बीजेपी ने शासन किया बावजूद इसके अभी तक अपनी असफलता का ठीकरा दूसरे दलों के ऊपर फोड़ते आये हैं.

Intro:जेपीसीसी के कार्यकारी अध्यक्ष केशव महतो कमलेश की बाइट है। इससे जुड़ी प्रतुल शाहदेव की बाइट काल मोजो से गयी थी।

रांची। किशोरावस्था की दहलीज पार कर युवावस्था में प्रवेश करने वाले झारखंड ने पिछले 19 सालों में कई राजनीतिक उतार-चढ़ाव देखें। एकीकृत बिहार से नवंबर 2000 में अलग हुए इस प्रदेश ने पिछले 19 साल में 10 मुख्यमंत्रियों का शासनकाल देखा। साथ ही इतने विधानसभा अध्यक्षों को भी देखा।

उन मुख्यमंत्रियों में अर्जुन मुंडाऔर शिबू सोरेन दो ऐसे चेहरे है जिन्होंने अलग-अलग तीन तीन बार राज्य के मुखिया की कमान संभाली।

बीजेपी के नेता और राज्य के तत्कालीन मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा तीन बार सीएम बने जबकि प्रदेश में प्रमुख विपक्षी दल की सबसे लंबी पारी खेलने वाले झारखंड मुक्ति मोर्चा सुप्रीमो शिबू सोरेन के माथे 10 दिन के मुख्यमंत्री बनने का रिकॉर्ड है। इसमे अलावे निर्दलीय मुख्यमंत्री बनने वाले मधु कोड़ा देश में तीसरे ऐसे शख्स के रूप में जाने जाते हैं जिन्होंने बिना किसी दाल से जुड़े दो साल से अधिक शासन किया।

राज्य में 2014 में हुए विधानसभा चुनावों के बाद बीजेपी को पहली बार कथित तौर पर पूर्ण बहुमत वाली सरकार चलाने का मौका मिला।

जमकर चला दलबदल का खेल
अपने स्थापना के बाद से ही झारखंड में राजनीतिक अस्थिरता का दौर देखने को मिला। इस दौरान सरकारें आई और गई। उनमें सबसे ज्यादा चांदी दलबदलू विधायकों ने काटी। एक तरफ जहां निर्दलीय विधायकों ने तत्कालीन बीजेपी सरकार का समर्थन कर अपना लोहा मनवाया। वहीं दूसरी तरफ अलग-अलग दलों से जीतकर विधानसभा पहुंचे विधायकों ने बीजेपी का दामन थाम कर पूरे देश में चर्चा का माहौल पैदा कर दिया। इसका सबसे ज्यादा असर झारखंड विकास मोर्चा में देखने को मिला जहां 2009 विधानसभा चुनाव के बाद और फिर 2014 के विधानसभा चुनाव के बाद बड़ी संख्या में विधायकों ने पाला बदला। 2014 में झाविमो के 7 विधायकों ने बीजेपी का दामन थाम लिया।

मिला प्रशिक्षण फिर भी टूटी संसदीय मर्यादा
हालांकि 19 साल में पहली बार 2014 में बनी बीजेपी सरकार ने नए विधायकों के लिए बाकायदा प्रशिक्षण कार्यक्रम बुलाया गया। इस कार्यक्रम में लोकसभा के अध्यक्ष सुमित्रा महाजन ने विधायकों को चरित्र और संसदीय मर्यादा का पाठ पढ़ाया लेकिन सबसे ज्यादा इसी दौरान संसदीय मर्यादा तार-तार हुईं।झारखंड के संसदीय इतिहास में पहली बार विधानसभा अध्यक्ष के ऊपर जूते फेंके गए और सदन के मुखिया के द्वारा कथित तौर पर अपशब्द का प्रयोग किया गया।

Body:मिला अपना विधानसभा भवन
19 साल के झारखंड में कुछ ऐसी भी चीजें देखने को मिली जिसकी वजह से पूरे देश में इसका नाम पॉजिटिव सेंस में लिया जाएगा। उनमें सबसे पहला झारखंड विधानसभा का भवन है जो अपने आप में अनूठा है। मौजूदा 81 सदस्य विधानसभा भवन में डेढ़ सौ से अधिक विधायकों को एकोमोडेट किया जा सकता है। साथ ही यहां बैठने के लिए मंत्रियों, सभापति, नेता प्रतिपक्ष और मुख्यमंत्री के लिए अलग-अलग बकायदा चेंबर बने हुए। इसके अलावा विधानसभा के पास ही सचिवालय का भी शिलान्यास किया गया। इसके पूरा होने से सरकारी कार्यालय एक ही इलाके में स्थापित हो जा सकेंगे।

Conclusion:क्या कहते हैं राजनेता
इस बाबत बीजेपी के प्रदेश प्रवक्ता प्रतुल शाहदेव कहते हैं कि झारखंड के झारखंड में 19 साल में काफी लंबा सफर तय किया है। गठबंधन सरकार की मजबूरी रही कि सरकारी योजनाएं बनी लेकिन धरातल पर नहीं उतर सकी। अब स्थितियां बदली है वहीं झारखण्ड प्रदेश कांग्रेस कमिटी के कार्यकारी अध्यक्ष केशव महतो कमलेश ने कहा कि झारखण्ड पिछले 19 सालों में काफी आगे जा सकता था लेकिन राजनीतिक अस्थिरता सबसे बड़ी रुकावट रही। उन्होंने कहा कि सबसे अधिक समय तक राज्य में बीजेपी ने शासन किया बावजूद इसके अभी तक अपनी असफलता का ठीकरा दूसरे दलों के ऊपर फोड़ते आये हैं।
Last Updated : Nov 15, 2019, 8:59 AM IST
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