पलामूः फरवरी 2018 में अचानक पलामू जिले के तीन गांव चर्चा में आए, जिसमें पाल्हे, तुरकुन और गोरहो गांव शामिल थे. साल 2018 में एंटी नक्सल अभियान के दौरान सुरक्षाबलों और माओवादियों के बीच दो मुठभेड़ हुई थी. इस मुठभेड़ में दो महिला नक्सली मारी गई और चार महिला नक्सली गिरफ्तार हुईं थीं. ये सभी महिला नक्सली पाल्हे और तुरकुन गांव की थी. इस गांव की एक महिला नक्सली आज भी जेल में है. हालांकि, अब गांव की स्थिति बदल गई है. जिस गांव ने माओवादियों को महिला दस्ता दिया, उस गांव के लोग पंचायत चुनाव में बढ़ चढ़कर हिस्सा ले रहे हैं. नक्सल प्रभावित गांवों के लोग सात किलोमीटर पैदल चलकर अपना मताधिकार का प्रयोग कर रहे हैं.
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पाल्हे, तुरकुन और गोरहो गांव पलामू प्रमंडलीय मुख्यालय मेदिनीनगर से करीब 70 किलोमीटर दूर है, जो चारों तरफ से पहाड़ों से घिरा है. पाल्हे और तुरकुन गांव जाने के लिए आज भी कोई सड़क नहीं है. सिर्फ पैदल आ-जा सकते हैं. गांव में साइकिल से भी नहीं जा सकती है. गांव की सरकार चुनने के लिए इन तीनों गांवों के लोग करीब 7-8 किलोमीटर पैदल चलकर मतदान केंद्र पहुंचे और मताधिकार का प्रयोग किया. गांव तक पहुंचने के लिए सड़क नहीं होने की वजह से नौडीहा बाजार के गम्हरियाडीह में मतदान केंद्र बनाया गया है. पूर्व माओवादी मंजू और इनरमिला के पिता ने बताया कि वोट डालकर अच्छा लग रहा है. उन्होंने गांव की सरकार से उम्मीद जताते हुए कहा कि गांव में सड़क, पानी और बिजली की व्यवस्था कर दें.
नक्सल प्रभावित पाल्हे, तुरकुन और गोरहो में दोपहर के एक बजे तक 70 प्रतिशत मतदान हो चुका था. पाल्हे में 261 मतदाता हैं, जिसमें 160 मतदाताओं ने अपना मताधिकार का प्रयोग कर चुके हैं. पूर्व माओवादी सेकवम, गीता, मंजू और इनरमिला के परिजनों ने भी मताधिकार का प्रयोग किया है. सीआरपीएफ 134 बटालियन के द्वितीय कमान अधिकारी राजीव कुमार झा ने बताया कि सुरक्षाबलों की बदौलत इलाके में माहौल बदला है. यही वजह है कि लोग कई किलोमीटर का सफर तय कर मतदान केंद्र पहुंच रहे हैं.