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नक्सलियों के सॉफ्ट टारगेट पर युवा प्रवासी मजदूर, दे रहे तरह-तरह के ऑफर - जमशेदपुर में नक्सलियों के सॉफ्ट टारगेट पर प्रवासी मजदूर

नक्सल इन दिनों युवा प्रवासी मजदूरों को निशाना बनाने में जुटे हैं. बता दें कि कोरोना काल में दूसरे राज्यों से घर लौट रहे युवा मजदूरों को नक्सली संगठन में जोड़ने की फिराक में हैं. पैसे का लालच देकर वे इन्हें अपने साथ जोड़कर संगठन का विस्तार करने की तैयारी में जुटे हैं.

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Published : Jun 27, 2020, 8:29 PM IST

Updated : Jun 27, 2020, 8:55 PM IST

जमशेदपुर: पूर्वी सिंहभूम के सुदूरवर्ती गांव में फिर से पनप रहा नक्सलवाद. लॉकडाउन में प्रवासी मजदूरों की घर वापसी के बाद नक्सली संगठन अपना फायदा तलाशने की कोशिश में लगे हैं. नक्सली बेरोजगार युवाओं को निशाना बनाकर नक्सलवाद की ओर खींच कर रहे हैं. इन्हीं के जरिए नक्सली अपने संगठन का विस्तार करने की तैयारी में जुटे हैं.

देखें पूरी खबर

25 मई 1967 को पश्चिम बंगाल के नक्सलबाड़ी से पूरे देश में पनपा नक्सल
नक्सलबाड़ी गांव से चारु मजुमदार, कानू सान्याल के नेतृत्व में बंदूक के दम पर सत्ता पर आधिपत्य जमाना ही नक्सलवाद था. इन नेताओं के शुरुआती उद्देश्य के मुताबिक, बंदूक के दम पर उग्रपंथी आंदोलन को नक्सलवाद कहा गया. चारु मजूमदार और कानू सान्याल का मानना था कि देश के कोने-कोने में बड़े जमींदारों की ओर से किसानों पर किए जा रहे उत्पीड़न पर लगाम लगाने के लिए भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीआई) की शुरुआत की गई. जिसके बाद किसानों को एकत्रित करके जनता अदालत का आह्वान किया जाता था. किसानों और छोटे जातियों पर हो रहे अन्याय को न्याय दिया जाने लगा. किसान और छोटे जाती के लोग बड़े तबके में सीपीआई पार्टी में शामिल होने लगे. छोटे तौर पर शुरुआत किया गया यह आंदोलन देश के अन्य हिस्सों में आग की तरह फैलने लगा. पश्चिम बंगाल के बाद केरल तो वहीं बिहार में जमींदारों के शोषण से मुक्त होने के लिए बड़े तबके में लोग सीपीआई में शामिल होने लगे.

ये भी पढ़ें- आरा-केरम गांव है पूरी तरह से 'आत्मनिर्भर', जानिए यहां की पूरी कहानी


इस आंदोलन की रूप रेखा चीन के कॉम्युनिस्ट नेता माओ की नीतियों से मिलती जुलती थी. जिसे बाद में माओवादी नाम दिया गया. आंध्र प्रदेश में सितारमैय्या कोंडापल्ली के नेतृत्व में पीपल्स वार हथियारबंद की शुरुआत होने लगी. जहां इसे दो वर्गों में विभाजित किया गया. गुरिल्ला आर्मी जिनका प्रमुख उद्देश्य बंदूक के दम पर लड़ना था, तो दूसरी और पोलित ब्यूरो जिसे थिंक टैंक कहा गया है. 1967 में शुरू हुई चीन में पीजेंट क्रांति की आग भारत में भी फैलनी लगी. देश के आंध्र प्रदेश में मुपल्ला लक्ष्मण राव और बिहार में बिनोद मिश्रा की अगुवाई में सामंती प्रथा और भूमि-सुधार के लिए इसकी शुरुआत की गई.


नक्सलियों की गिरफ्त में पूर्वी सिंहभूम के प्रावसी मजदूर

माओवादी की आग धीरे-धीरे बिहार (वर्तमान में झारखंड) के कई जिलों में फैलने लगी. जिसमें कोल्हान, पलामू, गुमला, लातेहार, सिमडेगा, खूंटी के किसानों को भी इसकी भनक लगने लगी. झारखंड के पूर्वी सिंहभूम में नक्सली वर्तमान में रणनीति बनाने में जुट चुके हैं. वैश्विक महामारी कोरोना के कहर के कारण देश की अर्थव्यवस्था बेपटरी पर है. ऐसे में मजदूरों की घर वापसी होने लगी है. पूर्वी सिंहभूम में दूसरे राज्यों से आने वाले प्रवासी मजदूरों की संख्या 8 हजार 645 दर्ज की गई है. जिनमें से 1 हजार 622 स्किलड श्रमिक, 1 हजार 486 सेमी स्किलड श्रमिक और 5 हजार 390 अनस्किल्ड प्रवासी मजदूर शामिल हैं.

ये भी पढ़ें- झारखंड की अर्थव्यवस्था की रीढ़ है आदित्यपुर औद्योगिक क्षेत्र, कोविड-19 ने औद्योगिक रफ्तार की तोड़ी कमर

प्रखंड के मुताबिक प्रवासी श्रमिकों का आंकड़ा इस प्रकार है

  • बहरागोड़ा-1 हजार 268, बोड़ाम- 966, चाकुलिया-1 हजार 537, धालभूमगढ़ 616, डुमरिया 761
  • घाटशिला- 499, गोलमुरी और जुगसलाई- 182, गुड़ाबांधा- 345
  • पोटका- 747, पटमदा- 1 हजार 138 और मुसाबनी प्रखंड के 596 प्रवासी मजदूर शामिल हैं.


इन मजदूरों के घर वापसी के बाद से रोजी-रोटी का संकट गहराने लगा है. ऐसे में पूर्वी सिंहभूम के पटमदा, बोड़ाम, घाटशिला, झुंझका के गांव में नक्सलियों ने पैर पसारना शुरू कर दिया है. जमशेदपुर के अभियान पुलिस अधीक्षक के समक्ष कई ऐसे मामले सामने आ रहे हैं. जहां नक्सली कम उम्र के युवा को अपने साथ जोड़ने की फिराक में हैं. नक्सली ऐसे युवा को जोड़ना चाहते हैं जिनकी समझ स्थानीय भाषा, बंगाली, ओड़िया में अच्छी पकड़ होती है, जो लंबे समय से बिहार, बंगाल, ओडिशा में रहे हों.

ये भी पढ़ें- रामेश्वर उरांव ने राहुल गांधी के बयान का किया समर्थन, कहा- जनतंत्र में विपक्ष की भूमिका अहम, बेखौफ होकर रखें अपनी बात


युवाओं से फायदा

पूर्वी सिंहभूम के सुदूरवर्ती ग्रामीण क्षेत्रों में नक्सलियों के कदम आए दिन बढ़ रहे हैं. 15 फरवरी 2017 को पूर्वी सिंहभूम के नक्सली कान्हू मुंडा ने अपने दस्ते के साथ आत्मसमर्पण कर दिया था. 18 जनवरी 2015 को नक्सली कुंवर मुर्मू मारा गया था. इन सबके पीछे ग्रामीण इलाकों के युवाओं की भागीदारी विशेषकर बताई जाती है. युवाओं को टीम में शामिल करने से इनके बारे में पुलिस जांच पड़ताल नहीं कर पाती है.


नक्सलवाद की विचारधारा से दूर हो चुके नक्सल

नक्सलवाद का पूर्व के समय में मानना था पूंजीपति वर्ग किसानों, आम नागरिकों से जातिगत भेदभाव, छुआछूत किया जाता था. जिसके कारण नक्सलवाद की शुरुआत पश्चिम बंगाल से की गई थी, लेकिन वर्तमान में नक्सली लेवी, टेंडर, उगाही में शामिल हो चुके हैं. इतना ही नहीं सूबे के कई बड़े नेताओं की हत्या में भी इनका नाम आ चुका है. जमशेदपुर के सांसद और झारखंड मुक्ति मोर्चा के नेता सुनील कुमार महतो की हत्या, धनबाद से निरसा के विधायक चटर्जी, बगोदर विधायक महेंद्र सिंह, बाबूलाल मरांडी के बेटे अनूप मरांडी की हत्या में नक्सली संगठन ने ही जिम्मेदारी ली थी.

ये भी पढ़ें- 31 जुलाई तक झारखंड सरकार ने बढ़ाया लॉकडाउन, धार्मिक स्थलों और बस सेवा को भी छूट नहीं


कौन है नक्सल

नक्सलवाद में मुख्य तौर पर सीपीआई, सीपीआई, माले, एमसीसी शामिल है. इनमें पोलित ब्यूरो के सदस्यों के साथ गुरिल्ला संगठन भी शामिल है. वहीं, टीपीसी, जेजेएमपी, नक्सली संगठन ये सभी पैसों की उगाही करते हैं. पूर्वी सिंहभूम में मुख्य तौर पर नक्सलियों की गतिविधियां होती हैं. पश्चिम बंगाल, ओडिशा, सीमावर्ती जिलों के लिए सिरदर्द बने एक करोड़ के इनामी नक्सली आकाश और दस्ते के खूंखार इनामी नक्सली महतो और सचिन महतो उर्फ रामप्रकाश मार्डी समेत कई अन्य नक्सली पुलिस के लिए हमेशा से सिरदर्द बने हुए हैं.

जमशेदपुर: पूर्वी सिंहभूम के सुदूरवर्ती गांव में फिर से पनप रहा नक्सलवाद. लॉकडाउन में प्रवासी मजदूरों की घर वापसी के बाद नक्सली संगठन अपना फायदा तलाशने की कोशिश में लगे हैं. नक्सली बेरोजगार युवाओं को निशाना बनाकर नक्सलवाद की ओर खींच कर रहे हैं. इन्हीं के जरिए नक्सली अपने संगठन का विस्तार करने की तैयारी में जुटे हैं.

देखें पूरी खबर

25 मई 1967 को पश्चिम बंगाल के नक्सलबाड़ी से पूरे देश में पनपा नक्सल
नक्सलबाड़ी गांव से चारु मजुमदार, कानू सान्याल के नेतृत्व में बंदूक के दम पर सत्ता पर आधिपत्य जमाना ही नक्सलवाद था. इन नेताओं के शुरुआती उद्देश्य के मुताबिक, बंदूक के दम पर उग्रपंथी आंदोलन को नक्सलवाद कहा गया. चारु मजूमदार और कानू सान्याल का मानना था कि देश के कोने-कोने में बड़े जमींदारों की ओर से किसानों पर किए जा रहे उत्पीड़न पर लगाम लगाने के लिए भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीआई) की शुरुआत की गई. जिसके बाद किसानों को एकत्रित करके जनता अदालत का आह्वान किया जाता था. किसानों और छोटे जातियों पर हो रहे अन्याय को न्याय दिया जाने लगा. किसान और छोटे जाती के लोग बड़े तबके में सीपीआई पार्टी में शामिल होने लगे. छोटे तौर पर शुरुआत किया गया यह आंदोलन देश के अन्य हिस्सों में आग की तरह फैलने लगा. पश्चिम बंगाल के बाद केरल तो वहीं बिहार में जमींदारों के शोषण से मुक्त होने के लिए बड़े तबके में लोग सीपीआई में शामिल होने लगे.

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इस आंदोलन की रूप रेखा चीन के कॉम्युनिस्ट नेता माओ की नीतियों से मिलती जुलती थी. जिसे बाद में माओवादी नाम दिया गया. आंध्र प्रदेश में सितारमैय्या कोंडापल्ली के नेतृत्व में पीपल्स वार हथियारबंद की शुरुआत होने लगी. जहां इसे दो वर्गों में विभाजित किया गया. गुरिल्ला आर्मी जिनका प्रमुख उद्देश्य बंदूक के दम पर लड़ना था, तो दूसरी और पोलित ब्यूरो जिसे थिंक टैंक कहा गया है. 1967 में शुरू हुई चीन में पीजेंट क्रांति की आग भारत में भी फैलनी लगी. देश के आंध्र प्रदेश में मुपल्ला लक्ष्मण राव और बिहार में बिनोद मिश्रा की अगुवाई में सामंती प्रथा और भूमि-सुधार के लिए इसकी शुरुआत की गई.


नक्सलियों की गिरफ्त में पूर्वी सिंहभूम के प्रावसी मजदूर

माओवादी की आग धीरे-धीरे बिहार (वर्तमान में झारखंड) के कई जिलों में फैलने लगी. जिसमें कोल्हान, पलामू, गुमला, लातेहार, सिमडेगा, खूंटी के किसानों को भी इसकी भनक लगने लगी. झारखंड के पूर्वी सिंहभूम में नक्सली वर्तमान में रणनीति बनाने में जुट चुके हैं. वैश्विक महामारी कोरोना के कहर के कारण देश की अर्थव्यवस्था बेपटरी पर है. ऐसे में मजदूरों की घर वापसी होने लगी है. पूर्वी सिंहभूम में दूसरे राज्यों से आने वाले प्रवासी मजदूरों की संख्या 8 हजार 645 दर्ज की गई है. जिनमें से 1 हजार 622 स्किलड श्रमिक, 1 हजार 486 सेमी स्किलड श्रमिक और 5 हजार 390 अनस्किल्ड प्रवासी मजदूर शामिल हैं.

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प्रखंड के मुताबिक प्रवासी श्रमिकों का आंकड़ा इस प्रकार है

  • बहरागोड़ा-1 हजार 268, बोड़ाम- 966, चाकुलिया-1 हजार 537, धालभूमगढ़ 616, डुमरिया 761
  • घाटशिला- 499, गोलमुरी और जुगसलाई- 182, गुड़ाबांधा- 345
  • पोटका- 747, पटमदा- 1 हजार 138 और मुसाबनी प्रखंड के 596 प्रवासी मजदूर शामिल हैं.


इन मजदूरों के घर वापसी के बाद से रोजी-रोटी का संकट गहराने लगा है. ऐसे में पूर्वी सिंहभूम के पटमदा, बोड़ाम, घाटशिला, झुंझका के गांव में नक्सलियों ने पैर पसारना शुरू कर दिया है. जमशेदपुर के अभियान पुलिस अधीक्षक के समक्ष कई ऐसे मामले सामने आ रहे हैं. जहां नक्सली कम उम्र के युवा को अपने साथ जोड़ने की फिराक में हैं. नक्सली ऐसे युवा को जोड़ना चाहते हैं जिनकी समझ स्थानीय भाषा, बंगाली, ओड़िया में अच्छी पकड़ होती है, जो लंबे समय से बिहार, बंगाल, ओडिशा में रहे हों.

ये भी पढ़ें- रामेश्वर उरांव ने राहुल गांधी के बयान का किया समर्थन, कहा- जनतंत्र में विपक्ष की भूमिका अहम, बेखौफ होकर रखें अपनी बात


युवाओं से फायदा

पूर्वी सिंहभूम के सुदूरवर्ती ग्रामीण क्षेत्रों में नक्सलियों के कदम आए दिन बढ़ रहे हैं. 15 फरवरी 2017 को पूर्वी सिंहभूम के नक्सली कान्हू मुंडा ने अपने दस्ते के साथ आत्मसमर्पण कर दिया था. 18 जनवरी 2015 को नक्सली कुंवर मुर्मू मारा गया था. इन सबके पीछे ग्रामीण इलाकों के युवाओं की भागीदारी विशेषकर बताई जाती है. युवाओं को टीम में शामिल करने से इनके बारे में पुलिस जांच पड़ताल नहीं कर पाती है.


नक्सलवाद की विचारधारा से दूर हो चुके नक्सल

नक्सलवाद का पूर्व के समय में मानना था पूंजीपति वर्ग किसानों, आम नागरिकों से जातिगत भेदभाव, छुआछूत किया जाता था. जिसके कारण नक्सलवाद की शुरुआत पश्चिम बंगाल से की गई थी, लेकिन वर्तमान में नक्सली लेवी, टेंडर, उगाही में शामिल हो चुके हैं. इतना ही नहीं सूबे के कई बड़े नेताओं की हत्या में भी इनका नाम आ चुका है. जमशेदपुर के सांसद और झारखंड मुक्ति मोर्चा के नेता सुनील कुमार महतो की हत्या, धनबाद से निरसा के विधायक चटर्जी, बगोदर विधायक महेंद्र सिंह, बाबूलाल मरांडी के बेटे अनूप मरांडी की हत्या में नक्सली संगठन ने ही जिम्मेदारी ली थी.

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कौन है नक्सल

नक्सलवाद में मुख्य तौर पर सीपीआई, सीपीआई, माले, एमसीसी शामिल है. इनमें पोलित ब्यूरो के सदस्यों के साथ गुरिल्ला संगठन भी शामिल है. वहीं, टीपीसी, जेजेएमपी, नक्सली संगठन ये सभी पैसों की उगाही करते हैं. पूर्वी सिंहभूम में मुख्य तौर पर नक्सलियों की गतिविधियां होती हैं. पश्चिम बंगाल, ओडिशा, सीमावर्ती जिलों के लिए सिरदर्द बने एक करोड़ के इनामी नक्सली आकाश और दस्ते के खूंखार इनामी नक्सली महतो और सचिन महतो उर्फ रामप्रकाश मार्डी समेत कई अन्य नक्सली पुलिस के लिए हमेशा से सिरदर्द बने हुए हैं.

Last Updated : Jun 27, 2020, 8:55 PM IST
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