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पद्मश्री जमुना टुडू के गांव की अनोखी प्रथा, बेटियों के जन्म और विवाह के वक्त लगाये जाते हैं पेड़

विश्व पर्यावरण दिवस के मौके पर लेडी टार्जन जमुना टुडू ने कहा कि उनकी वन प्रबंधन एवं संरक्षण समिति की अब पूर्वी सिंहभूम में 300 से ज्यादा शाखाएं बन चुकी हैं. एक समिति में कई महिलाएं सदस्य हैं. सभी जंगलों में गश्ती कर पेड़-पौधों को बचाने का प्रयास करती हैं. पौधरोपण के लिए ग्रामीणों को जागरूक भी करती हैं ताकि जंगल बढ़े.

पेड़ की आरती करती जमुना टुडू और अन्य महिलाएं.
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Published : Jun 5, 2019, 6:18 PM IST

Updated : Jun 5, 2019, 8:01 PM IST

पूर्वी सिंहभूम/घाटशिला: पूर्वी सिंहभूम जिले के चाकुलिया ब्लॉक स्थित भातकुंडा पंचायत के सुनसुनिया जंगल में पद्मश्री से सम्मानित लेडी टार्जन जमुना टुडू ने पर्यावरण दिवस मनाया. जमुना और गांव के अन्य महिलाओं ने सुनसुनिया जंगल में स्थित साल के पेड़ों की आरती उतारी. इस अवसर पर जमुना टुडू ने साल के वृक्षों को भाई मान कर पेड़ों की रक्षा करने की शपथ ली.

वीडियो में देखिए कैसे महिलाएं पेड़ों की पूजा करती हैं

बेटियों को जन्म लेने पर लगाये जाते हैं साल के 18 वृक्ष
जमुना टुडू 1998 में शादी कर ससुराल पहुंची, तो घर से 200 मीटर की दूरी पर वीरान पहाड़ था. 'साल' के कुछ पौधे तो थे पर उसे भी काटने के लिए लोग रोज जाया करते थे. बगल का जंगल बहुमूल्य 'साल' पेड़ों से भरा हुआ था, जिसकी अवैध कटाई की जा रही थी. जमुना हर दिन देखती थीं, कि कैसे सैकड़ों टन बहुमूल्य लकड़ियां वन माफिया चुराकर ले जा रहे हैं. वन विभाग तक इसकी सूचना भी नहीं पहुंच पाती थी और इक्का दुक्का मामले ही प्रकाश में आ पाते थे. जिसके बाद जमुना ने ठान लिया कि वे इस तरह से वनों को नष्ट नहीं होने देंगी.
इन सब को देखते हुए जमुना ने लोगों को इकट्ठा किया और वनों की उपयोगिता और उनके बचाव से होने वाले लाभों के बारे में बताया. जमुना ने लोगों से कहा कि सबको मिलकर जंगलों को कटने से रोकना होगा. लेकिन गांव के किसी भी पुरुष ने उनका साथ नहीं दिया, लेकिन औरतें आगे आईं.
जिसके बाद से गांव में एक नियम लागू किया गया जिसमें बेटियों के जन्म के समय 18 'साल' वृक्ष लगाने की बात कही गई. यही नहीं विवाह के वक्त पर कम से कम 10 साल के पेड़ लगाने पर सहमति बनी. साथ ही रक्षाबंधन पर सारे गांव के लोग सामूहिक रुप से जंगल के वृक्षों को राखी बांधते हुए उनकी रक्षा करने की शपथ लेते हैं.

पूर्वी सिंहभूम/घाटशिला: पूर्वी सिंहभूम जिले के चाकुलिया ब्लॉक स्थित भातकुंडा पंचायत के सुनसुनिया जंगल में पद्मश्री से सम्मानित लेडी टार्जन जमुना टुडू ने पर्यावरण दिवस मनाया. जमुना और गांव के अन्य महिलाओं ने सुनसुनिया जंगल में स्थित साल के पेड़ों की आरती उतारी. इस अवसर पर जमुना टुडू ने साल के वृक्षों को भाई मान कर पेड़ों की रक्षा करने की शपथ ली.

वीडियो में देखिए कैसे महिलाएं पेड़ों की पूजा करती हैं

बेटियों को जन्म लेने पर लगाये जाते हैं साल के 18 वृक्ष
जमुना टुडू 1998 में शादी कर ससुराल पहुंची, तो घर से 200 मीटर की दूरी पर वीरान पहाड़ था. 'साल' के कुछ पौधे तो थे पर उसे भी काटने के लिए लोग रोज जाया करते थे. बगल का जंगल बहुमूल्य 'साल' पेड़ों से भरा हुआ था, जिसकी अवैध कटाई की जा रही थी. जमुना हर दिन देखती थीं, कि कैसे सैकड़ों टन बहुमूल्य लकड़ियां वन माफिया चुराकर ले जा रहे हैं. वन विभाग तक इसकी सूचना भी नहीं पहुंच पाती थी और इक्का दुक्का मामले ही प्रकाश में आ पाते थे. जिसके बाद जमुना ने ठान लिया कि वे इस तरह से वनों को नष्ट नहीं होने देंगी.
इन सब को देखते हुए जमुना ने लोगों को इकट्ठा किया और वनों की उपयोगिता और उनके बचाव से होने वाले लाभों के बारे में बताया. जमुना ने लोगों से कहा कि सबको मिलकर जंगलों को कटने से रोकना होगा. लेकिन गांव के किसी भी पुरुष ने उनका साथ नहीं दिया, लेकिन औरतें आगे आईं.
जिसके बाद से गांव में एक नियम लागू किया गया जिसमें बेटियों के जन्म के समय 18 'साल' वृक्ष लगाने की बात कही गई. यही नहीं विवाह के वक्त पर कम से कम 10 साल के पेड़ लगाने पर सहमति बनी. साथ ही रक्षाबंधन पर सारे गांव के लोग सामूहिक रुप से जंगल के वृक्षों को राखी बांधते हुए उनकी रक्षा करने की शपथ लेते हैं.

Intro:पर्यावरण दिवस / पद्मश्री जमुना ने जंगल में पेड़ों को भाई मान उतारी आरती, रक्षा की शपथ ली


घाटशिला (पूर्वी सिंहभूम). पूर्वी सिंहभूम जिले के चाकुलिया ब्लॉक स्थित भातकुंडा पंचायत के सुनसुनिया जंगल में पद्मश्री से सम्मानित लेडी टार्जन जमुना टुडू ने पर्यावरण दिवस मनाया। जमुना ने अपनी सखियों संग सुनसुनिया जंगल में स्थित साल के पेड़ों की आरती उतारी। इस अवसर पर जमुना टुडू ने साल के वृक्षों को भाई मान का शपथ लिया कि हम पेड़ों की रक्षा करेंगे, उसे कटने नहीं देंगे।

गश्ती कर जंगल को बचाने का प्रयास करती है समिति
लेडी टार्जन जमुना टुडू ने कहा कि उनकी वन प्रबंधन एवं संरक्षण समिति की अब पूर्वी सिंहभूम में 300 से ज्यादा शाखाएं बन चुकी हैं। एक समिति में कई महिलाएं सदस्य हैं। सभी जंगलों में गश्ती कर पेड़-पौधों को बचाने का प्रयास करती हैं। पौधरोपण के लिए ग्रामीणों को जागरूक भी करती हैं ताकि जंगल बढ़े।Body:लोगों के बीच लड्डू भी बांटा
जमुना का मानना है कि धरती के लिए पेड़-पौधे बेहद जरूरी हैं। सभी को इसपर ध्यान देना चाहिए। ये हैं तो हम हैं। इस अवसर पर उन्होंने लोगों के बीच लड्डू भी बांटा। मौके पर बीस सूत्री प्रखंड अध्यक्ष शंभुनाथ मल्लिक, दुलारी हेंब्रम, राधिका महतो, लिलावती दास, पार्वती सोरेन, गिता महतो, सुफला महतो, कनक महतो, सलमा हेंब्रम, सुमित्रा महतो, दिपती महतो आदि उपस्थित थे।


जमुणा टुडू ने बताया- हम विकास की बात तो करते हैं लेकिन इंसान के निजी स्वार्थ के चलते जो प्राकृतिक विनाश हुआ है, उसका खमियाजा आज संपूर्ण मानव जाति को उठाना पड़ रहा है। उन्होंने बताया कि पेड़ लगाने के लिए हर वर्ष सरकार व सामाजिक संस्थाएं प्रयास कर रही है। लेकिन वास्तविकता कहीं पर नजर नहीं आती। विभिन्न प्रकार की योजनाएं लाकर लाखों-लाखों पेड़ लगाएं जाते हैं। लेकिन उनकी देखभाल के नाम पर कुछ नहीं किया जाता। उन्होंने बताया कि पेड़ों की कमी के कारण दुनिया का मौसम तेजी से बदल रहा है। जिस कारण मानव के सामने बहुत संकट पैदा हो रहे हैं, अगर अभी से नहीं जागे तो आगामी समय में परिणाम और भयंकर आएंगे। जमुणा टुडू ने कहा कि एक अनुमान के अनुसार दुनिया के 100 एकड़ वन हर दिन गायब हो रहे हैं। सारी दुनिया में प्रकृति के साथ खिलवाड़ किया जा रहा है। उन्होंने बताया कि आगामी समय में प्रखंड में लगने वाले पेड़ों की देखभाल के लिए वह भी लोगों के संपर्क में रहेंगे।
बाईट
पद्मश्री जमुना टुडूConclusion:जमुना के गांव में बेटी पैदा होने पर 18 'साल' वृक्षों का रोपण किया जाता है और बेटी के ब्याह के वक्त 10 'साल' वृक्ष परिवार को दिए जाते हैं। रक्षाबंधन पर सारे गांव के लोग सामूहिक रूप से जंगल के वृक्षों को राखी बांधते हुए वृक्षों की रक्षा करने की शपथ लेते हैं।"

जमुना ने वन विभाग को अपने गांव से जोड़ा और वन विभाग ने सारे गांव को हाथों-हाथ लिया। वन विभाग ने गांव में स्कूल खुलवाया और पक्की सड़कों का निर्माण करवाया। जमुना ने स्कूल व नलकूप के लिए अपनी ज़मीन भी दान में दे दी । 2013 में जमुना को 'फिलिप्स ब्रेवरी अवाॅर्ड' से सम्मानित किया गया। दिल्ली की एक टीम उन पर डॉक्यूमेंट्री बना चुकी है। 2014 में उनको स्त्री शक्ति अवाॅर्ड दिया गया। 2016 में उनको राष्ट्रपति द्वारा भारत की प्रथम 100 महिलाओं में चुना गया और राष्ट्रपति भवन में सम्मानित किया गया।
1998 में शादी कर जब जमुना ससुराल पहुंची, तो घर से 200 मीटर की दूरी पर वीरान पहाड़ देखा। 'साल' के कुछ पौधे तो थे पर उसे भी काटने के लिए लोग हर रोज जाया करते। बगल का जंगल बहुमूल्य 'साल' के पेड़ों से भरा हुआ था जिसकी अवैध कटाई जारी थी। जमुना हर दिन देखती थीं, कि कैसे सैकड़ों टन बहुमूल्य लकड़ियां वन माफिया चुराकर ले जा रहे हैं। वन विभाग तक इसकी सूचना भी नहीं पहुंच पाती थी और इक्का दुक्का मामले ही प्रकाश में आ पाते थे। जमुना ने मन में ठान लिया की वे इस तरह से वनों को नष्ट नहीं होने देंगी। जमुना एक बेहद गरीब गांव में रहती थीं, जहां बमुश्किल 20-25 घर ही थे। रहवासी बेहद गरीब और डरे हुए थे। जमुना ने लोगो को इकट्ठा किया और वनों की उपयोगिता और उनके बचाव से होने वाले लाभों से अवगत कराया। जमुना ने लोगो से कहा की उन सबको मिलकर जंगलों को कटने से रोकना होगा। हम इसकी रक्षा करेंगे। इससे हरियाली तो आएगी भविष्य में जलावन की लकड़ी में कोई कमी नहीं होगी। जमुना ने लोगों से कहा कि सबको मिलकर जंगलों को कटने से रोकना होगा। गांव के किसी भी पुरुष ने उनका साथ देने से इंकार कर दिया, लेकिन औरतें आगे आईं।

2004 में केवल 4 महिलाओं के साथ मिलकर जमुना ने जंगलों में पेट्रोलिंग का काम शुरू किया। धीरे-धीरे ये संख्या बढ़कर 60 तक जा पहुंची। उन्होंने 'महिला वन रक्षक समिति’ का गठन किया। ये समिति वनों को कटने से बचाने के साथ नए पौधे लगाकर वनों को सघन बनने में भी योगदान देने लगीं।"

आगे चलकर पुरुषों ने भी जमुना का साथ देना शुरू कर दिया। अवैध कटाई करने वालों से मुकाबले में कई बार जान पर बन आई, लेकिन आज जमुना के गांव में हर कोई जंगलों को बचाने में लगा है। अब ये समिति न सिर्फ वनों को कटने से बचाती है, बल्कि नए पौधों को लगाकर वनों को सघन बनने में भी योगदान देती है। जमुना और उनकी सखियों ने वनों में गश्त के दौरान सूखी लकड़ियां और पत्ते इकट्ठे करने शुरू कर दिए, जिसे वे ईंधन के रूप में आज भी इस्तेमाल करती हैं।
जमुना 20 साल पहले एक साधारण मजदूर हुआ करती थी। लेकिन, पिता से विरासत में मिले प्रकृति प्रेम ने न सिर्फ राष्ट्रपति पुरस्कार से नवाजा बल्कि उसकी पहचान पूरे देश में करा दी। जंगल को बचाने तथा बढ़ाने में जमुना ने जो योगदान दिया इससे उसे वनदेवी कहना अतिश्योक्ति नहीं होगा। जमुना के इस रौद्र रूप से उसकी पहचान लेडी टार्जन के रूप में विख्यात हो गई। उसके प्रयास का यह नतीजा निकला कि मुटुरखाम का बंजर पहाड़ साल के हरे-भरे पेड़ों से लहलहा उठा। अब वह देश की अन्य महिलाओं के लिए प्रेरणास्रोत बन गई हैं।
जमुना ने जब पेड़ बचाने की पहल की तो लकड़ी माफियाओं में खलबली मच गई। जमुना पर जानलेवा हमले हुए। घर में डकैती पड़वाई गई, लेकिन जमुना के कदम रुकने के लिए नहीं बढ़ने के लिए चले थे और कदम बढ़ते गए।"

अब जमुना वन प्रबंधन सह संरक्षण महासमिति बनाकर पूरे कोल्हान में जंगल बचाने के क्षेत्र में काम कर रही है। 2009-10 में तत्कालीन रेंजर एके सिंह ने उन्हें काफी सहयोग दिया। उनके गांव में न तो सड़क थी और न पीने का पानी। बच्चों की पढ़ाई के लिए स्कूल तक नहीं थे। जमुना ने अपनी जमीन दान में दी। फिर उस जमीन पर रेंजर एके सिंह ने विभाग द्वारा स्कूल बनवाया। गांव के लोग खाल का पानी पीते थे। उन्होंने पेयजल के लिए बोरिंग कराई। गांव तक पहुंचने के लिए पक्की सड़क भी बनवायी।
जंगल बचाने के क्षेत्र में योगदान के कारण जमुना टुडू को राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी ने राष्ट्रपति भवन में सम्मानित किया जा चुका है। इसके अलावा फिल्मी जगत की हस्तियों और राज्य के मुख्यमंत्री के हाथों भी जमुना सम्मानित की जा चुकी हैं। और इस बार पर्यावरण बचाओ की महानायिका जमुना टू डू को पद्मश्री अवार्ड से नवाजा गया राष्ट्रपति भवन में
जमुना आज भी अपने उसी छोटे से गांव में रहती हैं और वनों की जड़ी बूटियों और अन्य वन सम्पदा को
Last Updated : Jun 5, 2019, 8:01 PM IST
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