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दूधमटिया जंगल में बचे थे गिनती के पेड़, 1995 में की गई वृक्षाबंधन की शुरुआत, आज खडे हैं लाखों वृक्ष - Hazaribag News

हजारीबाग के दूधमटिया जंगल (Dudhmatia Forest) में हर साल वृक्षाबंधन कार्यक्रम का आयोजन किया जाता है. इस मौके पर पेड़ों की रक्षा करने का संकल्प लिया गया. इस जंगल में 26 वर्षों से हर साल 7 अक्टूबर के दिन वृक्षाबंधन कार्यक्रम किया जाता है. जहां काफी संख्या में लोग पहुंचते हैं.

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वृक्षाबंधन कार्यक्रम
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Published : Oct 7, 2021, 3:13 PM IST

Updated : Oct 7, 2021, 5:25 PM IST

हजारीबाग: जिले का दूधमटिया जंगल (Dudhmatia Forest) हजारीबाग की पहचान है. इसी जंगल से वृक्षों का बंधन यानी वृक्षाबंधन की शुरुआत की गई थी. रिटायर्ड शिक्षक महादेव महतो, सुरेंद्र सिंह समेत अन्य लोगों ने वृक्षों को बचाने के लिए संकल्प लिया था. 26 वर्षों से हर साल 7 अक्टूबर के दिन वृक्षाबंधन कार्यक्रम किया जाता है. लोग वृक्ष लगाने और उसे बचाने का संकल्प लेते हैं. जहां कभी लकड़ी माफियाओं का राज था. वहां आज लाखों वृक्ष खड़े हैं. जो अन्य लोगों को संदेश भी दे रहा है कि हमें बचाओ हम तुम्हें जीवन देंगे.

इसे भी पढे़ं: रजरप्पा मंदिर के पास पहुंचा जंगली हाथियों का झुंड, इलाके में दहशत

तेज गति से बढ़ती जनसंख्या और लोगों में अधिक से अधिक सुख-सुविधा की चाहत के कारण इन दिनों वृक्षों की कटाई जोर शोर से चल रही है. लेकिन हजारीबाग का दूधमटिया जंगल से एक पत्ता तोड़ना भी लोग गुनाह समझते हैं. दूधमटिया जंगल टाटीझरिया प्रखंड में पड़ता है. जहां आज से लगभग 30 वर्ष पहले लकड़ी माफिया और हाथी का आतंक था. आए दिन पेड़ काटे जाते थे. इसे देखकर स्थानीय शिक्षक महादेव महतो और सुरेंद्र सिंह समेत कई लोगों ने जंगल बचाने का बीड़ा उठाया. इसे लेकर लोगों को जागरूक किया गया. उस समय इन लोगों का भारी विरोध का भी सामना करना पड़े. लेकिन इन लोगों ने हार नहीं मानी और लोगों को समझाया और फिर वृक्षाबंधन कार्यक्रम की शुरुआत की.

देखें पूरी रिपोर्ट

1200 से अधिक गांव में वृक्षाबंधन कार्यक्रम

वृक्षाबंधन कार्यक्रम के तहत लोगों को बताया कि वृक्ष है तो हम हैं. वृक्षाबंधन को पूजा से जोड़ा गया. वनदेवी के बारे में लोगों को बताया गया. जिसके बाद लोगों के मन में भय उत्पन्न हुआ और लोग समझने लगे कि वृक्ष हमारे जीवन में कितना महत्वपूर्ण है. 26 साल से 7 अक्टूबर को वृक्षाबंधन कार्यक्रम धूमधाम से मनाया जाता है. इस मौके पर हजारीबाग के साथ-साथ आसपास के लोग भी पहुंचते हैं और वृक्षाबंधन करते हैं. इस मौके पर पेड़ न काटेंगे और न काटने देंगे का संकल्प लिया जाता है. कई लोग दूसरे राज्य से भी यहां पर पहुंचे और पेड़ कैसे बचाया जाए ये जानकारी लेते हैं. हजारीबाग के अलावा पूरे झारखंड की बात की जाए तो 1200 से अधिक गांवों में वृक्षाबंधन कार्यक्रम इन दिनों चल रहा है. जिसकी शुरुआत इसी दूधमटिया जंगल से हुई है.




इसे भी पढे़ं: जंगल की जमीन पर माफियाओं की निगाह, हरकत में आया डिपार्टमेंट



दूधमटिया में साल 7 अक्टूबर काे लगता है पर्यावरण मेला

दूधमटिया में हर साल बड़े पैमाने पर 7 अक्टूबर को पर्यावरण मेला लगता है. लेकिन कोरोना के कारण इन दिनों मेला लगना बंद है. हालांकि इस मौके पर पेड़ों की पूजा की गई. दूधमटिया के ही तर्ज पर हजारीबाग पूर्वी वन प्रमंडल क्षेत्र में विभिन्न 38 स्थानों होलंग, भेलवारा, रमुआ, कुसुम्भा, चलनिया, दिगवार, खुरंडीह, मंदरामो, सरौनी खुर्द, बभनवै, केसुरा, मयूरनचवा बन्हें, टुकटुको इत्यादि में भिन्न-भिन्न तारीखों को वृक्षाबंधन कर पेड बचाने का संकल्प लिया गया. इन जगहों पर भी पर्यावरण मेला लगता है.

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पेड़ों में राखी बांधते ग्रामीण

रंग लाई महादेव महतो का प्रयास

महादेव महतो के इस प्रयास को लेकर राष्ट्रपति भवन में भी उनकी प्रशंसा भी हुई और उन्हें प्रशस्ति पत्र देकर सम्मानित किया गया है. उन्होंने बताया कि रक्षाबंधन का अर्थ होता है रक्षा करना. जब कोई बहन भाई को राखी बांधती है तो भाई रक्षा करने का वादा करता है. कुछ इसी सोच से वृक्षाबंधन कार्यक्रम की शुरुआत की गई. महादेव महतो के सहयोगी सुरेंद्र सिंह को भी झारखंड सरकार ने सम्मानित किया है.

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पेड़ों की पूजा

इसे भी पढे़ं: विनोबा भावे विश्वविद्यालय के छात्र पहुंचे दूध मटिया जंगल, पेड़ों को बांधा रक्षासूत्र

कई इलाकों में चलाया जा रहा वृक्षाबंधन कार्यक्रम


वृक्षाबंधन कार्यक्रम से हजारीबाग पूर्वी वन प्रमंडल में 10 हजार हेक्टेयर से भी ज्यादा रकबा वन क्षेत्र को बचाया गया है. कोडरमा वन प्रमंडल, धनबाद वन प्रमंडल, रांची वन्य प्राणी प्रमंडल समेत अन्य के वन समितियों ने भी वृक्षाबंधन कार्यक्रम को अपनाकर अपने वनों को प्रभावी रूप से संरक्षित करने में सफलता हासिल की है.

हजारीबाग: जिले का दूधमटिया जंगल (Dudhmatia Forest) हजारीबाग की पहचान है. इसी जंगल से वृक्षों का बंधन यानी वृक्षाबंधन की शुरुआत की गई थी. रिटायर्ड शिक्षक महादेव महतो, सुरेंद्र सिंह समेत अन्य लोगों ने वृक्षों को बचाने के लिए संकल्प लिया था. 26 वर्षों से हर साल 7 अक्टूबर के दिन वृक्षाबंधन कार्यक्रम किया जाता है. लोग वृक्ष लगाने और उसे बचाने का संकल्प लेते हैं. जहां कभी लकड़ी माफियाओं का राज था. वहां आज लाखों वृक्ष खड़े हैं. जो अन्य लोगों को संदेश भी दे रहा है कि हमें बचाओ हम तुम्हें जीवन देंगे.

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तेज गति से बढ़ती जनसंख्या और लोगों में अधिक से अधिक सुख-सुविधा की चाहत के कारण इन दिनों वृक्षों की कटाई जोर शोर से चल रही है. लेकिन हजारीबाग का दूधमटिया जंगल से एक पत्ता तोड़ना भी लोग गुनाह समझते हैं. दूधमटिया जंगल टाटीझरिया प्रखंड में पड़ता है. जहां आज से लगभग 30 वर्ष पहले लकड़ी माफिया और हाथी का आतंक था. आए दिन पेड़ काटे जाते थे. इसे देखकर स्थानीय शिक्षक महादेव महतो और सुरेंद्र सिंह समेत कई लोगों ने जंगल बचाने का बीड़ा उठाया. इसे लेकर लोगों को जागरूक किया गया. उस समय इन लोगों का भारी विरोध का भी सामना करना पड़े. लेकिन इन लोगों ने हार नहीं मानी और लोगों को समझाया और फिर वृक्षाबंधन कार्यक्रम की शुरुआत की.

देखें पूरी रिपोर्ट

1200 से अधिक गांव में वृक्षाबंधन कार्यक्रम

वृक्षाबंधन कार्यक्रम के तहत लोगों को बताया कि वृक्ष है तो हम हैं. वृक्षाबंधन को पूजा से जोड़ा गया. वनदेवी के बारे में लोगों को बताया गया. जिसके बाद लोगों के मन में भय उत्पन्न हुआ और लोग समझने लगे कि वृक्ष हमारे जीवन में कितना महत्वपूर्ण है. 26 साल से 7 अक्टूबर को वृक्षाबंधन कार्यक्रम धूमधाम से मनाया जाता है. इस मौके पर हजारीबाग के साथ-साथ आसपास के लोग भी पहुंचते हैं और वृक्षाबंधन करते हैं. इस मौके पर पेड़ न काटेंगे और न काटने देंगे का संकल्प लिया जाता है. कई लोग दूसरे राज्य से भी यहां पर पहुंचे और पेड़ कैसे बचाया जाए ये जानकारी लेते हैं. हजारीबाग के अलावा पूरे झारखंड की बात की जाए तो 1200 से अधिक गांवों में वृक्षाबंधन कार्यक्रम इन दिनों चल रहा है. जिसकी शुरुआत इसी दूधमटिया जंगल से हुई है.




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दूधमटिया में साल 7 अक्टूबर काे लगता है पर्यावरण मेला

दूधमटिया में हर साल बड़े पैमाने पर 7 अक्टूबर को पर्यावरण मेला लगता है. लेकिन कोरोना के कारण इन दिनों मेला लगना बंद है. हालांकि इस मौके पर पेड़ों की पूजा की गई. दूधमटिया के ही तर्ज पर हजारीबाग पूर्वी वन प्रमंडल क्षेत्र में विभिन्न 38 स्थानों होलंग, भेलवारा, रमुआ, कुसुम्भा, चलनिया, दिगवार, खुरंडीह, मंदरामो, सरौनी खुर्द, बभनवै, केसुरा, मयूरनचवा बन्हें, टुकटुको इत्यादि में भिन्न-भिन्न तारीखों को वृक्षाबंधन कर पेड बचाने का संकल्प लिया गया. इन जगहों पर भी पर्यावरण मेला लगता है.

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पेड़ों में राखी बांधते ग्रामीण

रंग लाई महादेव महतो का प्रयास

महादेव महतो के इस प्रयास को लेकर राष्ट्रपति भवन में भी उनकी प्रशंसा भी हुई और उन्हें प्रशस्ति पत्र देकर सम्मानित किया गया है. उन्होंने बताया कि रक्षाबंधन का अर्थ होता है रक्षा करना. जब कोई बहन भाई को राखी बांधती है तो भाई रक्षा करने का वादा करता है. कुछ इसी सोच से वृक्षाबंधन कार्यक्रम की शुरुआत की गई. महादेव महतो के सहयोगी सुरेंद्र सिंह को भी झारखंड सरकार ने सम्मानित किया है.

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पेड़ों की पूजा

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कई इलाकों में चलाया जा रहा वृक्षाबंधन कार्यक्रम


वृक्षाबंधन कार्यक्रम से हजारीबाग पूर्वी वन प्रमंडल में 10 हजार हेक्टेयर से भी ज्यादा रकबा वन क्षेत्र को बचाया गया है. कोडरमा वन प्रमंडल, धनबाद वन प्रमंडल, रांची वन्य प्राणी प्रमंडल समेत अन्य के वन समितियों ने भी वृक्षाबंधन कार्यक्रम को अपनाकर अपने वनों को प्रभावी रूप से संरक्षित करने में सफलता हासिल की है.

Last Updated : Oct 7, 2021, 5:25 PM IST
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