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यहां राजा पदमा के लगवाए टाइगर ट्रैप आज भी है सुरक्षित, जानें कैसे फंस जाते थे बाघ

हजार बागों वाला शहर कहा जाने वाला हजारीबाग का ऐतिहासिक महत्व रहा है. यहां के टाइगर ट्रैप को देखने आज भी दूर दराज से लोग आते हैं. इस ट्रैप का निर्माण राजा पदमा ने कराया था.

Tiger Trap Hotspots for Tourists in hazaribag
टाइगर ट्रैप
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Published : Jan 11, 2020, 11:43 AM IST

Updated : Jan 11, 2020, 12:16 PM IST

हजारीबागः जिले में बाघों का शिकार आदि काल से लेकर 20वीं सदी तक लगातार चलता रहा है, लेकिन 21वीं सदी में बाघों को लेकर चलाए गए जागरूकता के बाद इस पर रोक लगाई जा चुकी है. पहले लोग अपने शौक के लिए बाघों का शिकार करते रहे थे. उनके शौक का जीता जागता उदाहरण हजारीबाग वाइल्ड लाइफ सेंचुरी परिसर का टाइगर ट्रैप है.

देखें पूरी खबर

इस टाइगर ट्रैप के बारे में कहा जाता है कि गुलामी के दौर में अंग्रेजों को खुश करने के लिए राजा इस तरह का शिकार करते थे. यह सम्मान का विषय माना जाता था. हजारीबाग आश्रणयी स्थल पर आज भी यह टाइगर ट्रैप मौजूद है.

टाइगर ट्रैप की कहानी

टाइगर ट्रैप के पीछे की कहानी यह है कि यहां के पदमा राजा ने इसे बनवाया था. वह बाघ या फिर तेंदुआ पकड़ कर दूसरे राजा को उपहार स्वरूप देते थे, ताकि दो राजाओं के बीच में संबंध अच्छा रहे. बताया जाता है कि पदमा राजा ने बाघों को फंसाने के लिए यह ट्रैप बनवाया जो 30 फीट की परिधि वाला और 40 फुट का गड्ढा था. यह 60 फुट लंबी सुरंग से जुड़ता था. इस आकृति के बारे में बताया जाता है कि बीच के खंभे में बकरी को बांध दिया जाता था. बकरी गड्ढे को देखकर भाग नहीं पाती. जैसे ही बाघ आता है और उस बकरी पर झपट्टा मारता था, तो वह गड्ढे में गिर जाता और बाघ इस ट्रप में फंस जाता था. सुरंग के दूसरी छोर से राजा के सैनिक पिंजरा डाल कर बाघ को निकालते थे और फिर राजा अपने मन मुताबिक उसे अन्य राजा को उपहार देते थे.

ये भी पढ़ें- धनबाद की कोलियरी में नहीं थम रही गोलीबारी, दो बदमाशों ने की अंधाधुंध फायरिंग

बते दें कि बाघों के बहुलता के कारण इस क्षेत्र का नाम हजारीबाग रखा गया है. आज इस क्षेत्र में बाघ नहीं है, लेकिन यह टाइगर ट्रैप पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र बन रहता है. हमारी गलती के कारण आज बाघों की संख्या कम हो गई है. जरूरत है इस गलती से सीख लेने की. इसके साथ ही जंगली जानवरों को संरक्षण देने की ताकि जैव विविधता कायम रह सके.

हजारीबागः जिले में बाघों का शिकार आदि काल से लेकर 20वीं सदी तक लगातार चलता रहा है, लेकिन 21वीं सदी में बाघों को लेकर चलाए गए जागरूकता के बाद इस पर रोक लगाई जा चुकी है. पहले लोग अपने शौक के लिए बाघों का शिकार करते रहे थे. उनके शौक का जीता जागता उदाहरण हजारीबाग वाइल्ड लाइफ सेंचुरी परिसर का टाइगर ट्रैप है.

देखें पूरी खबर

इस टाइगर ट्रैप के बारे में कहा जाता है कि गुलामी के दौर में अंग्रेजों को खुश करने के लिए राजा इस तरह का शिकार करते थे. यह सम्मान का विषय माना जाता था. हजारीबाग आश्रणयी स्थल पर आज भी यह टाइगर ट्रैप मौजूद है.

टाइगर ट्रैप की कहानी

टाइगर ट्रैप के पीछे की कहानी यह है कि यहां के पदमा राजा ने इसे बनवाया था. वह बाघ या फिर तेंदुआ पकड़ कर दूसरे राजा को उपहार स्वरूप देते थे, ताकि दो राजाओं के बीच में संबंध अच्छा रहे. बताया जाता है कि पदमा राजा ने बाघों को फंसाने के लिए यह ट्रैप बनवाया जो 30 फीट की परिधि वाला और 40 फुट का गड्ढा था. यह 60 फुट लंबी सुरंग से जुड़ता था. इस आकृति के बारे में बताया जाता है कि बीच के खंभे में बकरी को बांध दिया जाता था. बकरी गड्ढे को देखकर भाग नहीं पाती. जैसे ही बाघ आता है और उस बकरी पर झपट्टा मारता था, तो वह गड्ढे में गिर जाता और बाघ इस ट्रप में फंस जाता था. सुरंग के दूसरी छोर से राजा के सैनिक पिंजरा डाल कर बाघ को निकालते थे और फिर राजा अपने मन मुताबिक उसे अन्य राजा को उपहार देते थे.

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बते दें कि बाघों के बहुलता के कारण इस क्षेत्र का नाम हजारीबाग रखा गया है. आज इस क्षेत्र में बाघ नहीं है, लेकिन यह टाइगर ट्रैप पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र बन रहता है. हमारी गलती के कारण आज बाघों की संख्या कम हो गई है. जरूरत है इस गलती से सीख लेने की. इसके साथ ही जंगली जानवरों को संरक्षण देने की ताकि जैव विविधता कायम रह सके.

Intro:हजारों बागों का शहर हजारीबाग का ऐतिहासिक महत्व रहा है। इतिहास के कई पन्ने क्षेत्र को समृद्ध बनाते हैं। लेकिन हमारे पूर्वजों ने कुछ ऐसी भी गलतियां की हैं जिससे हमे आज की सीख लेने की जरूरत है। आज ऐतिहासिक धरोहर भी हमारे सामने विद्यमान हैं जिससे हमें सीख लेने की आवश्यकता है ।चलिए आपको दिखाते हैं हजारीबाग नेशनल पार्क का एकलौता टाइगर ट्रैप.....


Body:हजारीबाग जिला क्षेत्र में बाघों का शिकार आदि काल से लेकर 20वीं सदी तक लगातार चलता रहा है। लेकिन किसी भी 21वी सदी जागरूकता के कारण काफी हद तक इस पर रोक लगाया जा चुका है। हमारे पुर्वज अपने शौक के लिए बाघों का शिकार करते रहे थे। उनके शौक का जीता जागता उदाहरण हजारीबाग वाइल्ड लाइफ सेंचुरी परिसर में है टाइगर ट्रैप। इस टाइगर ट्रैप के बारे में कहा जाता है कि गुलामी के दौर में अंग्रेजों को खुश करने के लिए राजा इस तरह का शिकार करते थे ।यह सम्मान का विषय कहा जाता था। हजारीबाग आश्रणयी स्थल पर आज भी यह टाईगर ट्रैप मौजूद है।

टाइगर ट्रैप के पीछे की कहानी यह है कि यहां के पदमा राजा ने इसे बनवाया था। बाघ या फिर तेंदुआ पकड़ कर दूसरे राजा को उपहार स्वरूप देते थे ।ताकि दो राजाओं के बीच में संबंध अच्छा रहा है और यह उस समय की परंपरा भी थी ।ऐसे में पदमा राजा ने बाघों को फसाने के लिए यह ट्रैप बनवाया जो 30 फीट की परिधि वाला 40 फुट गड्ढा तथा 60 फुट लंबी सुरंग से जुड़ता था। इस आकृति के बारे में बताया जाता है कि बीच के खंभा में बकरी को बांध दिया जाता था । बकरी गड्ढे को देखकर भाग नहीं पाती। जैसे ही बाघ आता था और उस बकरी पर झपट्टा मारता था तो वह गड्ढे में गिर जाता था बाघ इस ट्रप में फस जाता था। सुरंग के दूसरे छोर से राजा के सैनिक पींजडा डाल कर बाघ को निकालते थे और फिर राजा अपने मन मुताबिक उसे अन्य राजा को उपहार देता था।

बाघों के बहुलता के कारण इस क्षेत्र का नाम हजारीबाग रखा गया है ।आज तो इस क्षेत्र में बाघ नहीं है लेकिन यह टाइगर ट्रैप पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र बिंदु है।

w k t ....Gaurav


Conclusion:हमारे पूर्वजों के गलती के कारण आज बाघों की संख्या कम हो गई है ।जरूरत है इस गलती से सीख लेने की। साथ ही साथ जंगली जानवरों को संरक्षण देने की ताकि जैव विविधता कायम रह सके।
Last Updated : Jan 11, 2020, 12:16 PM IST
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