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हजारीबागः पिता की विरासत को बचाने 'पारा शिक्षक बेटी' ने चलायी चाक, निपुणता से गढ़ती है माटी का आकार - महिला कुम्हार रुकमणी

हजारीबाग की रहने वाली रुकमणी देवी अपने पिता की विरासत को बचाने के लिए चाक चला रही हैं. रुकमणी पेशे से पारा शिक्षक हैं. उनके परिवार वाले भी इसमें उनका पूरा सहयोग देते हैं. अपनी धरोहर को बचाने की रुकमणी की यह चाहत प्रेरणादायक है. देखें स्पेशल रिपोर्ट.

Rukmani potter of hazaribag
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Published : Nov 7, 2020, 8:22 AM IST

हजारीबागः आधुनिक जीवन में हर एक व्यक्ति की यह चाहत होती है कि वह कम मेहनत करे और अधिक से अधिक मुनाफा हो. इस मुनाफे के लिए वह अपने विरासत को भी भूलता जाता है, लेकिन हजारीबाग की रहने वाली रुकमणी देवी जो पेशे से पारा शिक्षिका हैं, अपने पिता की विरासत को बचाने के लिए इन दिनों चाक चला रही हैं.

देखें पूरी खबर

दीपावली होने के कारण दिन-रात चाक चलाकर दिया और दीपावली से जुड़े सामान खुद ही गढ़ रही हैं. रुकमणी देवी कहती हैं कि यह चाक नहीं बल्कि उनकी धरोहर है. इस धरोहर को वे आगे बढ़ा रही हैं. रुकमणी के पिता जाने-माने मूर्तिकार थे. उन्होंने रुकमणी को मिट्टी गढ़ना सिखाया. रुकमणी कहती हैं कि पिता की मृत्यु के बाद उस विरासत को वे आगे बढ़ा रही हैं और अपने बच्चे को भी सिखा रही हैं.

ये भी पढ़ें-प्री-मैट्रिक स्कॉलरशिप स्कैम की एसीबी करेगी जांच, मुख्यमंत्री ने दी मंजूरी

रूढ़िवादी सोच से आगे

रुकमणी कुमारी के देवर कहते हैं कि हजारीबाग में कोई भी महिला नहीं है जो चाक चलाती है. चाक चलाने का काम पुरुष का होता है. क्योंकि इसमें ताकत बहुत लगती है. महिलाएं-पुरुष की मदद करती हैं, लेकिन उनकी भाभी ने यह दिखा दिया कि महिला भी चाक चला सकती है. जिस तरह से चाक धुरी पर घूमती है. ठीक उसी प्रकार हमारा जीवन भी घूमता है. यह दिखाता है कि महिला पुरुष से किसी भी क्षेत्र में कम नहीं है. हमारे घर के बने हुए मिट्टी के सामान दीपावली में कई घरों की खूबसूरती भी बढ़ाएगी.

परंपरा आगे बढ़ाने की नई पीढ़ी की सोच

रुकमणी कुमारी की बेटी जो झारखंड की एक प्रतिष्ठित स्कूल में पढ़ाई करती है. उनका कहना है कि 'मेरी तमन्ना है कि मैं लोक सेवा आयोग की परीक्षा में सफल हूं और देश की सेवा करूं, लेकिन वे इसके साथ-साथ चाक चलाना चाहती हूं क्योंकि मेरे नाना ने मेरी मां को सिखाया और मेरी मां ने मुझे सिखाया.' राजनंदनी चाहती है कि उनकी परंपरा इसी तरह आगे बढ़ती जाए. उनका यह भी कहना है कि सरकार बहुत मदद कई क्षेत्रों में नहीं कर पाती है, लेकिन मदद नहीं मिलने के बावजूद लोग अच्छा कर रहे हैं. इसलिए राजनंदनी को उम्मीद है कि वह भी अच्छा करेगी और इस परंपरा को उद्योग के रूप में ले जाएगी.

सरकार से मदद की आस

वहीं, रुकमणी देवी के मददगार कहते हैं कि वे लोग बहुत ही मेहनत करके मिट्टी का बर्तन बना रहे हैं, लेकिन जिस तरह से चाइनीज सामान बाजार में हावी है. ऐसे में उन्हें काफी परेशानियों का सामना करना पड़ता है. उनका कहना है कि वे जितना मेहनत करते हैं उसका चौथाई हिस्सा भी नहीं कमा पाते. ऐसे में सरकार को उन लोगों की मदद करनी चाहिए तभी रुकमणी देवी जैसी महिलाएं सामने आकर अपने हुनर को दिखला पाएंगी.

बहरहाल, यह कहना गलत नहीं होगा कि हर एक व्यक्ति की यह नैतिक जिम्मेदारी है कि वह अपनी परंपरा को आगे बढ़ाए. ऐसे में रुकमणी देवी एक मिसाल है अन्य महिलाओं के लिए जो खुद को चहारदीवारी में बंद कर रखती हैं.

हजारीबागः आधुनिक जीवन में हर एक व्यक्ति की यह चाहत होती है कि वह कम मेहनत करे और अधिक से अधिक मुनाफा हो. इस मुनाफे के लिए वह अपने विरासत को भी भूलता जाता है, लेकिन हजारीबाग की रहने वाली रुकमणी देवी जो पेशे से पारा शिक्षिका हैं, अपने पिता की विरासत को बचाने के लिए इन दिनों चाक चला रही हैं.

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दीपावली होने के कारण दिन-रात चाक चलाकर दिया और दीपावली से जुड़े सामान खुद ही गढ़ रही हैं. रुकमणी देवी कहती हैं कि यह चाक नहीं बल्कि उनकी धरोहर है. इस धरोहर को वे आगे बढ़ा रही हैं. रुकमणी के पिता जाने-माने मूर्तिकार थे. उन्होंने रुकमणी को मिट्टी गढ़ना सिखाया. रुकमणी कहती हैं कि पिता की मृत्यु के बाद उस विरासत को वे आगे बढ़ा रही हैं और अपने बच्चे को भी सिखा रही हैं.

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रूढ़िवादी सोच से आगे

रुकमणी कुमारी के देवर कहते हैं कि हजारीबाग में कोई भी महिला नहीं है जो चाक चलाती है. चाक चलाने का काम पुरुष का होता है. क्योंकि इसमें ताकत बहुत लगती है. महिलाएं-पुरुष की मदद करती हैं, लेकिन उनकी भाभी ने यह दिखा दिया कि महिला भी चाक चला सकती है. जिस तरह से चाक धुरी पर घूमती है. ठीक उसी प्रकार हमारा जीवन भी घूमता है. यह दिखाता है कि महिला पुरुष से किसी भी क्षेत्र में कम नहीं है. हमारे घर के बने हुए मिट्टी के सामान दीपावली में कई घरों की खूबसूरती भी बढ़ाएगी.

परंपरा आगे बढ़ाने की नई पीढ़ी की सोच

रुकमणी कुमारी की बेटी जो झारखंड की एक प्रतिष्ठित स्कूल में पढ़ाई करती है. उनका कहना है कि 'मेरी तमन्ना है कि मैं लोक सेवा आयोग की परीक्षा में सफल हूं और देश की सेवा करूं, लेकिन वे इसके साथ-साथ चाक चलाना चाहती हूं क्योंकि मेरे नाना ने मेरी मां को सिखाया और मेरी मां ने मुझे सिखाया.' राजनंदनी चाहती है कि उनकी परंपरा इसी तरह आगे बढ़ती जाए. उनका यह भी कहना है कि सरकार बहुत मदद कई क्षेत्रों में नहीं कर पाती है, लेकिन मदद नहीं मिलने के बावजूद लोग अच्छा कर रहे हैं. इसलिए राजनंदनी को उम्मीद है कि वह भी अच्छा करेगी और इस परंपरा को उद्योग के रूप में ले जाएगी.

सरकार से मदद की आस

वहीं, रुकमणी देवी के मददगार कहते हैं कि वे लोग बहुत ही मेहनत करके मिट्टी का बर्तन बना रहे हैं, लेकिन जिस तरह से चाइनीज सामान बाजार में हावी है. ऐसे में उन्हें काफी परेशानियों का सामना करना पड़ता है. उनका कहना है कि वे जितना मेहनत करते हैं उसका चौथाई हिस्सा भी नहीं कमा पाते. ऐसे में सरकार को उन लोगों की मदद करनी चाहिए तभी रुकमणी देवी जैसी महिलाएं सामने आकर अपने हुनर को दिखला पाएंगी.

बहरहाल, यह कहना गलत नहीं होगा कि हर एक व्यक्ति की यह नैतिक जिम्मेदारी है कि वह अपनी परंपरा को आगे बढ़ाए. ऐसे में रुकमणी देवी एक मिसाल है अन्य महिलाओं के लिए जो खुद को चहारदीवारी में बंद कर रखती हैं.

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