हजारीबाग: जिला मुख्यालय से लगभग 8 किलोमीटर दूर बड़कागांव रोड में खपरियावां गांव स्थित है. इसी गांव में भगवान नरसिंह की मूर्ति स्थापित है. कार्तिक पूर्णिमा के दिन यहां विशेष रूप से पूजा अर्चना की जाती है. इस अवसर पर मेला का आयोजन होता है. इस मेले का आकर्षण बिंदु ईख और गेंदा फूल होता है. इसे स्थानीय स्तर पर केतारी मेला के नाम से भी जाना जाता है.
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हजारीबाग एक ऐतिहासिक जिला है. ऐसे में यहां कई स्थान हैं. जो पर्यटन के दृष्टिकोण से बेहद महत्वपूर्ण है. उनमें एक है नरसिंह मंदिर. जहां भगवान विष्णु के दशावतार नरसिंह भगवान विराजते हैं. इसे धार्मिक दृष्टिकोण से भी बेहद महत्वपूर्ण माना जाता है. कहा जाता है कि शांत स्वरूप के भगवान नरसिंह हैं. पूरे झारखंड में यह इकलौता मंदिर है. इस मंदिर की स्थापना 1632 में पंडित दामोदर मिश्रा द्वारा की गई थी. तब से यहां भगवान नरसिंह के दर्शन और पूजन का अलग महत्व रहा है. ऐसी मान्यता है कि यहां जलाया गया अखंड दीप और मंदिर की परिक्रमा कभी व्यर्थ नहीं जाती. दर्शन-पूजन के साथ मनोवांक्षित फलों की कामना को लेकर सालों भर श्रद्धालुओं का आना-जाना लगा रहता है. कार्तिक पूर्णिमा के दिन इस मंदिर परिसर में मेला का आयोजन होता है. जहां राज्य के कोने-कोने से भक्त पहुंच कर पूजा करते हैं और मुरादें मांगते हैं.
यहां मांगी मनोकामनाएं होती है पूरी
दशावतार नरसिंह भगवान की मूर्ति 3.50 फीट की है. जो ग्रेफाइट से बनी है. बाबा का प्रतिदिन नित्य नए-नए ढंग से श्रृंगार किया जाता है. इसी गर्भ गृह में प्राचीन शिवलिंग भी है. जो तांत्रिक विधि द्वारा स्थापित है. भगवान विष्णु के गर्भ गृह में विष्णु की प्रतिमा के साथ शिवलिंग का अद्भुत दर्शन और पूजन किया जाता है. गर्भगृह में ही भगवान शिव, पंचमुखी महादेव, नारद देव, गौरी और नवग्रह की प्रतिमा है. गर्भगृह के बाहर संकट मोचन भगवान महावीर की प्रतिमा है. आंगन में नारायण के साथ दशावतार का मंदिर दर्शनीय है. भक्त भी कहते हैं कि अगर यहां मनोकामना मांगा जाए तो भगवान उसे पूरा भी करते हैं.
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सभी भक्त मेला में खरीदते हैं ईख और गेंदा फूल
नरसिंह मंदिर में ईख और गेंदा फूल मेला के दिन आकर्षक का केन्द्र बिंदू है. हजारीबाग समेत पूरे राज्य भर से किसान अपना ईख लेकर इस मेला में व्यापार करने के लिए पहुंचते हैं. इस कारण इसे केतारी मेला के नाम से भी जाना जाता है. जहां तरह-तरह के ईख देखने को मिलता है. जो भी व्यक्ति मेले में आते हैं वो अपने साथ ईख और गेंदा फूल का अवश्य ले जाते हैं. यही इस मेले की पहचान है.