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आजादी की लड़ाई में हजारीबाग का अहम योगदान, यूनियन क्लब से गूंजा था 'दिल्ली चलो' का नारा

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Published : Aug 13, 2021, 10:43 PM IST

भारत को अंग्रेजों से आजाद कराने में हजारीबाग के लोगों का भी अहम योगदान रहा है. आजादी के दीवानों के लिए हजारीबाग तीर्थ स्थल से कम नहीं था. हजारीबाग यूनियन क्लब (Hazaribagh Union Club) परिसर में ही महात्मा गांधी, सुभाष चंद्र बोस, जय प्रकाश नारायण जैसे आजादी के दीवानों ने अंग्रेजों के खिलाफ रणनीति तैयार की थी. दिल्ली चलो का नारा भी इस परिसर से पूरी दुनिया में गूंजा था.

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स्वतंत्रता संग्राम में हजारीबाग का योगदान

हजारीबाग: स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान आजादी के दीवानों के लिए हजारीबाग तीर्थ स्थल से कम नहीं था. यह जिला एक समृद्ध इतिहास के लिए जाना जाता रहा है. महात्मा गांधी, सुभाष चंद्र बोस, जय प्रकाश नारायण जैसे आजादी के दीवानों ने हजारीबाग के लोगों से संवाद स्थापित किया था. दिल्ली चलो का नारा भी हजारीबाग में ही गूंजा था. जिसका जीता जागता प्रमाण हजारीबाग यूनियन क्लब (Hazaribagh Union Club) परिसर है.

इसे भी पढ़ें: महात्मा गांधी का झारखंड से था विशेष लगाव, 1925 में आए थे हजारीबाग

यूनियन क्लब परिसर को आज भी संजोकर रखा गया है. सुभाष चंद्र बोस ने यहां आकर लोगों को आजादी का पाठ पढ़ाया था. इतना ही नहीं भारत के स्वतंत्रता संग्राम में पहली महिला आंदोलनकारी सरस्वती देवी भी हजारीबाग की ही थीं. जिन्हें भारत छोड़ो आंदोलन के कारण जेल भी जाना पड़ा था. इतिहासकार कहते हैं की सरस्वती देवी पहली महिला थी, जिन्हें अंग्रेजों ने जेल में बंद किया था.

देखें वीडियो

18 सितंबर 1925 को महात्मा गांधी ने स्वतंत्रता सेनानियों को किया था संबोधित

हजारीबाग एक पुराना जिला है, जहां आजादी की लड़ाई की जंग भी लड़ी गई थी. महात्मा गांधी ने 18 सितंबर 1925 को हजारीबाग के मटवारी मैदान में स्वतंत्रता सेनानियों को संबोधित किया था. महात्मा गांधी ने हजारीबाग में कल्लू चौक स्थित प्रतिष्ठित व्यवसायी सूरत बाबू के निवास में रात्रि विश्राम भी किया था. 20 मार्च 1940 को रामगढ़ में आयोजित अखिल भारतीय कांग्रेस अधिवेशन में भी महात्मा गांधी पहुंचे थे. उन्होंने 1925 में बिहार की पहली और भारत की दूसरी महिला स्वतंत्रता सेनानी सरस्वती देवी से मुलाकात की थी. सरस्वती देवी ने 26 जनवरी 1930 को पहली बार तिरंगा झंडा लेकर हजारीबाग में स्वतंत्रता आंदोलन को चिंगारी दी थी. भारत छोड़ो आंदोलन में उन्होंने अहम योगदान दिया था. वो बिहार की पहली महिला स्वतंत्रता आंदोलन कारी थीं. जिन्हें जेल जाना पड़ा था.

रामायणबाबू ने चतरा में किया था भारत छोड़ो आंदोलन का नेतृत्व

हजारीबाग के प्रथम सांसद स्वर्गीय रामनारायण बाबू से महात्मा गांधी के मधुर संबंध थे. दोनों एक दूसरे से चिट्ठी लिखकर भी हालचाल लिया करते थे. स्वर्गीय रामनारायण बाबू देश के महान स्वतंत्र सेनानियों में एक माने जाते थे जिन्होंने कृष्ण बल्लभ सहाय, राज बल्लभ सिंह, कोडरमा के बद्री सिंह जैसे अन्य युवा कांग्रेस नेताओं के साथ असहयोग आंदोलन का नेतृत्व किया था. 1920-21 में चतरा जिला से बाबू राम नारायण सिंह ने भारत छोड़ो आंदोलन का नेतृत्व किया था. उन्हें छोटानागपुर केसरी और छोटानागपुर का शेर के रूप में जाना जाता था. भारत आजाद होने के बाद उन्होंने संविधान निर्माण में भी अहम भूमिका निभाई.

यूनियन क्लब को माना जाता है देश का धरोहर

जिले का यूनियन क्लब सिर्फ शहर ही नहीं बल्कि देश के लिए धरोहर माना जाता है. इसकी स्थापना 1883 में की गई थी. यहां सुभाष चंद्र बोस, महात्मा गांधी, जयप्रकाश नारायण, राजेंद्र प्रसाद, बुद्धदेव गुहा, तारापद राय, वीरेंद्र कृष्ण भद्र आ चुके हैं. यूनियन क्लब परिसर में अत्यंत दुर्लभ लाइब्रेरी है. जहां 100 साल से अधिक पुरानी पुस्तकों को संजोकर रखा गया है. इस लाइब्रेरी में आज के समय में कई लोग आकर पढ़ाई करते हैं. यहां के लाइब्रेरियन बताते हैं कि यह पूरा परिसर ऐतिहासिक है. हमें गर्व होता है कि हम यूनियन क्लब के मेंबर हैं. जहां कई स्वतंत्रा सेनानियों ने आकर आजादी की लड़ाई को गति प्रदान की थी.

इसे भी पढ़ें: तिरंगा निर्माण कार्य में वर्षों से जुटा है यह परिवार, दे रहा मजहबी एकता का संदेश

सुभाष चंद्र बोस ने यूनियन क्लब परिसर में दिया था दिल्ली चलो का नारा

यूनियन क्लब परिसर में अभी भी उस पुराने हॉल को उसी अंदाज में रखा गया है जहां स्वतंत्रता सेनानी बैठक किया करते थे. सुभाष चंद्र बोस ने यहां पहुंचकर 'दिल्ली चलो' का नारा भी दिया था. उनकी जयंती पर यहां कार्यक्रम का आयोजन किया जाता है. महात्मा गांधी ने भी इसी हॉल में आकर बैठक की थी. बताया जाता है कि रामगढ़ अधिवेशन समाप्त होने के बाद कई स्वतंत्र सेनानियों ने आकर यहां अंग्रेजों के खिलाफ हुंकार भरी थी.

हजारीबाग में अंग्रेजों ने बनवाया था सेंट्रल जेल

हजारीबाग में लोकनायक जयप्रकाश नारायण केंद्रीय कारा है. इस कारा को अंग्रेजों ने बनवाया था. जहां वैसे स्वतंत्र सेनानी जो अंग्रेजों के लिए परेशानी का कारण थे उन्हें लाकर रखा जाता था. कहा जाता है कि उस वक्त हजारीबाग एक बीहड़ जंगल था. जहां बहुत कम ही लोगों का आना-जाना होता था. इस कारण से ही अंग्रेजों ने हजारीबाग में सेंट्रल जेल बनाया था. सेंट्रल जेल की दीवार बनाने के लिए पास से ही मिट्टी निकाली गयी थी. जहां झील बन गया है. इसी केंद्रीय कारा को लोकनायक जयप्रकाश नारायण फांद कर फरार हो गए थे और अंग्रेजों को खुली चुनौती दी थी.

हजारीबाग: स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान आजादी के दीवानों के लिए हजारीबाग तीर्थ स्थल से कम नहीं था. यह जिला एक समृद्ध इतिहास के लिए जाना जाता रहा है. महात्मा गांधी, सुभाष चंद्र बोस, जय प्रकाश नारायण जैसे आजादी के दीवानों ने हजारीबाग के लोगों से संवाद स्थापित किया था. दिल्ली चलो का नारा भी हजारीबाग में ही गूंजा था. जिसका जीता जागता प्रमाण हजारीबाग यूनियन क्लब (Hazaribagh Union Club) परिसर है.

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यूनियन क्लब परिसर को आज भी संजोकर रखा गया है. सुभाष चंद्र बोस ने यहां आकर लोगों को आजादी का पाठ पढ़ाया था. इतना ही नहीं भारत के स्वतंत्रता संग्राम में पहली महिला आंदोलनकारी सरस्वती देवी भी हजारीबाग की ही थीं. जिन्हें भारत छोड़ो आंदोलन के कारण जेल भी जाना पड़ा था. इतिहासकार कहते हैं की सरस्वती देवी पहली महिला थी, जिन्हें अंग्रेजों ने जेल में बंद किया था.

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18 सितंबर 1925 को महात्मा गांधी ने स्वतंत्रता सेनानियों को किया था संबोधित

हजारीबाग एक पुराना जिला है, जहां आजादी की लड़ाई की जंग भी लड़ी गई थी. महात्मा गांधी ने 18 सितंबर 1925 को हजारीबाग के मटवारी मैदान में स्वतंत्रता सेनानियों को संबोधित किया था. महात्मा गांधी ने हजारीबाग में कल्लू चौक स्थित प्रतिष्ठित व्यवसायी सूरत बाबू के निवास में रात्रि विश्राम भी किया था. 20 मार्च 1940 को रामगढ़ में आयोजित अखिल भारतीय कांग्रेस अधिवेशन में भी महात्मा गांधी पहुंचे थे. उन्होंने 1925 में बिहार की पहली और भारत की दूसरी महिला स्वतंत्रता सेनानी सरस्वती देवी से मुलाकात की थी. सरस्वती देवी ने 26 जनवरी 1930 को पहली बार तिरंगा झंडा लेकर हजारीबाग में स्वतंत्रता आंदोलन को चिंगारी दी थी. भारत छोड़ो आंदोलन में उन्होंने अहम योगदान दिया था. वो बिहार की पहली महिला स्वतंत्रता आंदोलन कारी थीं. जिन्हें जेल जाना पड़ा था.

रामायणबाबू ने चतरा में किया था भारत छोड़ो आंदोलन का नेतृत्व

हजारीबाग के प्रथम सांसद स्वर्गीय रामनारायण बाबू से महात्मा गांधी के मधुर संबंध थे. दोनों एक दूसरे से चिट्ठी लिखकर भी हालचाल लिया करते थे. स्वर्गीय रामनारायण बाबू देश के महान स्वतंत्र सेनानियों में एक माने जाते थे जिन्होंने कृष्ण बल्लभ सहाय, राज बल्लभ सिंह, कोडरमा के बद्री सिंह जैसे अन्य युवा कांग्रेस नेताओं के साथ असहयोग आंदोलन का नेतृत्व किया था. 1920-21 में चतरा जिला से बाबू राम नारायण सिंह ने भारत छोड़ो आंदोलन का नेतृत्व किया था. उन्हें छोटानागपुर केसरी और छोटानागपुर का शेर के रूप में जाना जाता था. भारत आजाद होने के बाद उन्होंने संविधान निर्माण में भी अहम भूमिका निभाई.

यूनियन क्लब को माना जाता है देश का धरोहर

जिले का यूनियन क्लब सिर्फ शहर ही नहीं बल्कि देश के लिए धरोहर माना जाता है. इसकी स्थापना 1883 में की गई थी. यहां सुभाष चंद्र बोस, महात्मा गांधी, जयप्रकाश नारायण, राजेंद्र प्रसाद, बुद्धदेव गुहा, तारापद राय, वीरेंद्र कृष्ण भद्र आ चुके हैं. यूनियन क्लब परिसर में अत्यंत दुर्लभ लाइब्रेरी है. जहां 100 साल से अधिक पुरानी पुस्तकों को संजोकर रखा गया है. इस लाइब्रेरी में आज के समय में कई लोग आकर पढ़ाई करते हैं. यहां के लाइब्रेरियन बताते हैं कि यह पूरा परिसर ऐतिहासिक है. हमें गर्व होता है कि हम यूनियन क्लब के मेंबर हैं. जहां कई स्वतंत्रा सेनानियों ने आकर आजादी की लड़ाई को गति प्रदान की थी.

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सुभाष चंद्र बोस ने यूनियन क्लब परिसर में दिया था दिल्ली चलो का नारा

यूनियन क्लब परिसर में अभी भी उस पुराने हॉल को उसी अंदाज में रखा गया है जहां स्वतंत्रता सेनानी बैठक किया करते थे. सुभाष चंद्र बोस ने यहां पहुंचकर 'दिल्ली चलो' का नारा भी दिया था. उनकी जयंती पर यहां कार्यक्रम का आयोजन किया जाता है. महात्मा गांधी ने भी इसी हॉल में आकर बैठक की थी. बताया जाता है कि रामगढ़ अधिवेशन समाप्त होने के बाद कई स्वतंत्र सेनानियों ने आकर यहां अंग्रेजों के खिलाफ हुंकार भरी थी.

हजारीबाग में अंग्रेजों ने बनवाया था सेंट्रल जेल

हजारीबाग में लोकनायक जयप्रकाश नारायण केंद्रीय कारा है. इस कारा को अंग्रेजों ने बनवाया था. जहां वैसे स्वतंत्र सेनानी जो अंग्रेजों के लिए परेशानी का कारण थे उन्हें लाकर रखा जाता था. कहा जाता है कि उस वक्त हजारीबाग एक बीहड़ जंगल था. जहां बहुत कम ही लोगों का आना-जाना होता था. इस कारण से ही अंग्रेजों ने हजारीबाग में सेंट्रल जेल बनाया था. सेंट्रल जेल की दीवार बनाने के लिए पास से ही मिट्टी निकाली गयी थी. जहां झील बन गया है. इसी केंद्रीय कारा को लोकनायक जयप्रकाश नारायण फांद कर फरार हो गए थे और अंग्रेजों को खुली चुनौती दी थी.

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