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SPECIAL: सोहराय और कोहबर कला पर कोरोना इफेक्ट, काम नहीं मिलने पर कलाकारों को हो रही परेशानी - हजारीबाग कला सोहराय और कोहबर पर कोरोना इफेक्ट

राष्ट्रीय पहचान से नवाजी जा चुकी सोहराय और कोहबर कला पर भी कोरोना की मार का असर नजर आ रहा है. इस कोरोना कोल में कलाकारों को कोई काम नहीं मिल रहा है, न ही वो अपनी कला उकेर पा रहे हैं. देखें खास रिपोर्ट.

corona effect on sohrai and kohvar art in hazaribag
सोहराय और कोहबर कला
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Published : Jun 13, 2020, 12:03 PM IST

हजारीबागः झारखंड की सोहराय और कोहबर कला ने पूरे विश्व में अपनी पहचान बना ली है. सोहराय और कोहबर पेंटिंग को ज्योग्राफिकल इंडिकेशन रजिस्ट्री की तरफ से जीआई टैग दिया गया है. लेकिन इस कला से जुड़े कलाकार का लॉकडाउन में बुरा हाल है. कलाकार कलाकृति के जरिए जीवन यापन करते हैं. अब वे इस महामारी में घरों में बंद हैं. ऐसे में ना उन्हें कोई आर्डर दे रहा है और ना ही वे किसी भवन में कला को उकेर पा रहे हैं.

देखें पूरी खबर

विदेश में भी बढ़ाया मान

जिले के कई ग्रामीण महिलाएं-पुरुष इस कला के जरिए अपना जीवन यापन कर रहे हैं. सोहराय-कोहबर कला की धूम सिर्फ झारखंड और देश में ही नहीं बल्कि विदेशों में भी है. हजारीबाग की रहने वाली 60 वर्षीय रुकमणी देवी ने इस कला को विदेश में भी पहचान दिलायी है. बूढ़े हाथों की उंगली में वह जौहर है कि ऑस्ट्रेलिया में जाकर उन्होंने हजारीबाग की सभ्यता और संस्कृति को दर्शाया और वहां के लोगों को वाह कहने के लिए मजबूर कर दिया. लेकिन आज यह महिला लॉकडाउन के कारण परेशान है. उनका कहना है कि उन्होंने दिल्ली, मुंबई, मद्रास, रांची, पटना समेत कई जगह पर पेंटिंग किया है.

यही नहीं हजारीबाग के विभिन्न चौक-चौराहों पर अगर आपको सोहराय कला कि झलक दिखेगी तो उसमें इनके ब्रश का ही कमाल है. लेकिन आज कोरोना वायरस के संक्रमण के कारण घरों में सभी कलाकाल कैद हैं. उनकी रोजी-रोटी पर आफत आ गयी है. उनका कहना है कि यही एकमात्र साधन था जिसके जरिए हम दो वक्त की रोटी कमा पाते थे.

ये भी पढ़ें-जानिए क्या है कोरोना का गुड इफेक्ट और बैड इफेक्ट

मन की बात में पीएम भी कर चुके हैं तारीफ

रुकमणी की तरह ही सोहराय-कोहबर के कलाकार हैं अशोक. उनकी कला की प्रशंसा देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी मन की बात में की है. अशोक ने हजारीबाग के रेलवे स्टेशन में सोहराय और कोहबर कला को उकेरा है. यही नहीं अशोक ने हरियाणा सूर्यकुंड में भी हजारीबाग समेत पूरे झारखंड की कला को पहचान दिलाने का काम किया है. सूर्य कुंड अपने हस्तशिल्प मेला के लिए विश्व विख्यात है.

ऑनलाइन मार्केटिंग को बनाएंगे जरिया

दिल्ली स्थित जयंत सिन्हा के आवास में भी अशोक ने सोहराय-कोहबर को दर्शाया है, लेकिन अब अशोक बताते हैं कि कोरोना वायरस ने उनकी कला को भी प्रभावित किया है. वह दूरदराज इलाके में जाकर काम किया करते थे लेकिन अब घर में हैं. अशोक का कहना हैं कि अब उन्हें अपनी सोच बदलनी होगी और ऑनलाइन मार्केटिंग की ओर जाना होगा तभी कोई गुजारा भत्ता होगा.

3 महीने से नहीं मिला कोई काम

इस कला से जुड़े संतोष भी काफी परेशान हैं. उनका कहना है कि पहले महीने में एक दो काम मिल जाता था. जिससे गुजर-बसर होता था. लेकिन बीते 3 महीने से एक भी काम नहीं मिला है. जिसके कारण उनकी आर्थिक स्थिति नाजुक होती जा रही है. अब वे सभी सरकार से उम्मीद लगा रहे हैं कि सरकार उनके लिए सोचे ताकि प्राचीन कला जिसे उन्होंने जीवित रखा है वह आगे की पीढ़ियों तक जाए.

सोहराई कला महिला विकास सहयोग समिति लिमिटेड की अध्यक्ष अलका इमाम कहती हैं कि जीआई टैग मिलने के बाद हमारी और इस कला से जुड़े कलाकारों की भूमिका और जिम्मेवारी भी बढ़ी है. सरकार से उनको उम्मीद है कि इस कला को जीवित रखने के लिए मदद मिलेगी तभी जाकर इस कला से जुड़े कलाकारों को सम्मान मिलेगा और झारखंड की इस अनमोल सभ्यता संस्कृति की पहचान विश्व के हर एक कोने तक पहुंचेगी.

बहरहाल, यह कहना गलत नहीं होगा कि कोरोना संक्रमण के काल में हर एक व्यक्ति प्रभावित हुआ है. ऐसे में ये कलाकार भी इसकी चपेट में आए हैं. जरूरत है सरकार को कलाकारों के बारे में विशेष रूप से ध्यान देने की ताकि इस प्राचीन कला का अस्तित्व खोए नहीं और हमारी सभ्यता संस्कृति को उचित सम्मान मिले.

हजारीबागः झारखंड की सोहराय और कोहबर कला ने पूरे विश्व में अपनी पहचान बना ली है. सोहराय और कोहबर पेंटिंग को ज्योग्राफिकल इंडिकेशन रजिस्ट्री की तरफ से जीआई टैग दिया गया है. लेकिन इस कला से जुड़े कलाकार का लॉकडाउन में बुरा हाल है. कलाकार कलाकृति के जरिए जीवन यापन करते हैं. अब वे इस महामारी में घरों में बंद हैं. ऐसे में ना उन्हें कोई आर्डर दे रहा है और ना ही वे किसी भवन में कला को उकेर पा रहे हैं.

देखें पूरी खबर

विदेश में भी बढ़ाया मान

जिले के कई ग्रामीण महिलाएं-पुरुष इस कला के जरिए अपना जीवन यापन कर रहे हैं. सोहराय-कोहबर कला की धूम सिर्फ झारखंड और देश में ही नहीं बल्कि विदेशों में भी है. हजारीबाग की रहने वाली 60 वर्षीय रुकमणी देवी ने इस कला को विदेश में भी पहचान दिलायी है. बूढ़े हाथों की उंगली में वह जौहर है कि ऑस्ट्रेलिया में जाकर उन्होंने हजारीबाग की सभ्यता और संस्कृति को दर्शाया और वहां के लोगों को वाह कहने के लिए मजबूर कर दिया. लेकिन आज यह महिला लॉकडाउन के कारण परेशान है. उनका कहना है कि उन्होंने दिल्ली, मुंबई, मद्रास, रांची, पटना समेत कई जगह पर पेंटिंग किया है.

यही नहीं हजारीबाग के विभिन्न चौक-चौराहों पर अगर आपको सोहराय कला कि झलक दिखेगी तो उसमें इनके ब्रश का ही कमाल है. लेकिन आज कोरोना वायरस के संक्रमण के कारण घरों में सभी कलाकाल कैद हैं. उनकी रोजी-रोटी पर आफत आ गयी है. उनका कहना है कि यही एकमात्र साधन था जिसके जरिए हम दो वक्त की रोटी कमा पाते थे.

ये भी पढ़ें-जानिए क्या है कोरोना का गुड इफेक्ट और बैड इफेक्ट

मन की बात में पीएम भी कर चुके हैं तारीफ

रुकमणी की तरह ही सोहराय-कोहबर के कलाकार हैं अशोक. उनकी कला की प्रशंसा देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी मन की बात में की है. अशोक ने हजारीबाग के रेलवे स्टेशन में सोहराय और कोहबर कला को उकेरा है. यही नहीं अशोक ने हरियाणा सूर्यकुंड में भी हजारीबाग समेत पूरे झारखंड की कला को पहचान दिलाने का काम किया है. सूर्य कुंड अपने हस्तशिल्प मेला के लिए विश्व विख्यात है.

ऑनलाइन मार्केटिंग को बनाएंगे जरिया

दिल्ली स्थित जयंत सिन्हा के आवास में भी अशोक ने सोहराय-कोहबर को दर्शाया है, लेकिन अब अशोक बताते हैं कि कोरोना वायरस ने उनकी कला को भी प्रभावित किया है. वह दूरदराज इलाके में जाकर काम किया करते थे लेकिन अब घर में हैं. अशोक का कहना हैं कि अब उन्हें अपनी सोच बदलनी होगी और ऑनलाइन मार्केटिंग की ओर जाना होगा तभी कोई गुजारा भत्ता होगा.

3 महीने से नहीं मिला कोई काम

इस कला से जुड़े संतोष भी काफी परेशान हैं. उनका कहना है कि पहले महीने में एक दो काम मिल जाता था. जिससे गुजर-बसर होता था. लेकिन बीते 3 महीने से एक भी काम नहीं मिला है. जिसके कारण उनकी आर्थिक स्थिति नाजुक होती जा रही है. अब वे सभी सरकार से उम्मीद लगा रहे हैं कि सरकार उनके लिए सोचे ताकि प्राचीन कला जिसे उन्होंने जीवित रखा है वह आगे की पीढ़ियों तक जाए.

सोहराई कला महिला विकास सहयोग समिति लिमिटेड की अध्यक्ष अलका इमाम कहती हैं कि जीआई टैग मिलने के बाद हमारी और इस कला से जुड़े कलाकारों की भूमिका और जिम्मेवारी भी बढ़ी है. सरकार से उनको उम्मीद है कि इस कला को जीवित रखने के लिए मदद मिलेगी तभी जाकर इस कला से जुड़े कलाकारों को सम्मान मिलेगा और झारखंड की इस अनमोल सभ्यता संस्कृति की पहचान विश्व के हर एक कोने तक पहुंचेगी.

बहरहाल, यह कहना गलत नहीं होगा कि कोरोना संक्रमण के काल में हर एक व्यक्ति प्रभावित हुआ है. ऐसे में ये कलाकार भी इसकी चपेट में आए हैं. जरूरत है सरकार को कलाकारों के बारे में विशेष रूप से ध्यान देने की ताकि इस प्राचीन कला का अस्तित्व खोए नहीं और हमारी सभ्यता संस्कृति को उचित सम्मान मिले.

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