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बड़े शहरों की तरह हजारीबाग में भी बच्चे सिख रहे हैं स्केटिंग, अंतरराष्ट्रीय फलक पर पहचान बनाने की कोशिश

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Published : Oct 29, 2020, 2:25 PM IST

Updated : Oct 29, 2020, 2:45 PM IST

आज के समय में बच्चे पढ़ाई के साथ-साथ खेल की दुनिया में भी परचम लहरा रहे हैं. कुछ ऐसा ही सपना संजो कर बच्चे हजारीबाग के डीटीओ ऑफिस के पास स्केटिंग सीख रहे हैं. बच्चे न केवल स्केटिंग का मजा ले रहे हैं बल्कि एक खेल की तरह इसे इस्तेमाल कर सीखते हुए आगे बढ़ रहे हैं.

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देखिए पूरी खबर

हजारीबाग: पढ़ोगे लिखोगे तो बनोगे नवाब खेलोगे कूदोगे तो होगे खराब. यह उन दिनों की कहावत है जो आज के समय में चरितार्थ नहीं होती. आज के समय में बच्चे पढ़ाई के साथ-साथ खेल की दुनिया में भी परचम लहरा रहे हैं. कुछ ऐसा ही सपना संजो कर बच्चे हजारीबाग के डीटीओ ऑफिस के पास स्केटिंग सीख रहे हैं. ताकि वे अपना कैरियर इस खेल में बना सके और अपने परिवार समेत राज्य का नाम रोशन कर सकें.

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स्केटिंग खेल का मजा ले रहे बच्चे

देश के बड़े शहरों की तर्ज पर हजारीबाग में भी बच्चे स्केटिंग खेल का मजा ले रहे हैं. बच्चे न केवल स्केटिंग का मजा ले रहे हैं बल्कि एक खेल की तरह इसे इस्तेमाल कर सीखते हुए आगे बढ़ रहे हैं. सादिक ने बताया कि यह खेल मानसिक रूप से लेकर शारीरिक रूप में भी हम लोगों को मदद करता है. हम खुद को कैसे बैलेंस करें यह सीखते हैं. वहीं, उनका यह भी कहना है कि हम लोगों के लिए खेलने के लिए वैसा कोई जगह भी नहीं है. अगर हम लोगों को जगह मिलेगा तो और हमलोग अच्छा से सीख पाएंगे. इस खेल के जरिए अपने जिला और राज्य का नाम रोशन कर सकते हैं.

इंडिया बुक ऑफ रिकॉर्ड में अपना नाम दर्ज कराने वाले छात्र कहते हैं कि मुझे स्केटिंग देखने में काफी मजा आ रहा है. पहले मैं सिर के बल चला करता था. मेरे पिता ने देखा कि मैं काफी अच्छा कर रहा हूं. मेरे पिता ने मुझे काफी सपोर्ट किया. मैं 1 मिनट में 134 स्टेप चल सकता हूं. अब मैं अपना बैलेंस स्केटिंग में बना रहा हूं ताकि और भी अच्छा कर सकूं.

खेल के माध्यम से बच्चों का मानसिक विकास

अभिभावक निशी मानती हैं कि खेल के माध्यम से बच्चों को मानसिक और शारीरिक संतुलन बनाने में मदद मिल रही है. बच्चों की प्रतिभा देखकर वे खुश हैं. उनका यह भी कहना है कि पहले हमलोग को कुछ सीखने का मन करता था, लेकिन वैसा माहौल नहीं था. अब हमारे बच्चे कुछ अलग सीख रहे हैं तो ऐसा लगता है कि मानो हमारा सपना साकार हो रहा है.

कोच अकरम का कहना है कि किसी भी खेल के लिए बड़े और छोटे शहरों का भेद नहीं है. बच्चे अच्छे कर रहे हैं और उन्हें उम्मीद है कि राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मेडल प्राप्त करने में सफल होंगे. उनका यह भी कहना है कि वर्तमान समय में स्कूल कॉलेज सभी बंद हैं. बच्चे घर में हैं. ऐसे में यह खेल उन्हें मानसिक रूप से मजबूत कर रहा है और वे मनोरंजन भी कर पा रहे हैं. यह खेल के साथ-साथ उनके व्यक्तित्व को भी निखार रहा है.

कुछ नया करने के लिए प्रयोग करना भी जरूरी होता है. कोच छात्रों में नया हुनर डालने के लिए प्रयास कर रहे हैं. छात्र भी बड़े ही शौक से खेल को सीख रहे हैं. जरूरत है माता-पिता समेत समाज को भी ऐसे बच्चों को प्रोत्साहित करने की ताकि वे अपना नाम खेल की दुनिया में बना सके.

हजारीबाग: पढ़ोगे लिखोगे तो बनोगे नवाब खेलोगे कूदोगे तो होगे खराब. यह उन दिनों की कहावत है जो आज के समय में चरितार्थ नहीं होती. आज के समय में बच्चे पढ़ाई के साथ-साथ खेल की दुनिया में भी परचम लहरा रहे हैं. कुछ ऐसा ही सपना संजो कर बच्चे हजारीबाग के डीटीओ ऑफिस के पास स्केटिंग सीख रहे हैं. ताकि वे अपना कैरियर इस खेल में बना सके और अपने परिवार समेत राज्य का नाम रोशन कर सकें.

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स्केटिंग खेल का मजा ले रहे बच्चे

देश के बड़े शहरों की तर्ज पर हजारीबाग में भी बच्चे स्केटिंग खेल का मजा ले रहे हैं. बच्चे न केवल स्केटिंग का मजा ले रहे हैं बल्कि एक खेल की तरह इसे इस्तेमाल कर सीखते हुए आगे बढ़ रहे हैं. सादिक ने बताया कि यह खेल मानसिक रूप से लेकर शारीरिक रूप में भी हम लोगों को मदद करता है. हम खुद को कैसे बैलेंस करें यह सीखते हैं. वहीं, उनका यह भी कहना है कि हम लोगों के लिए खेलने के लिए वैसा कोई जगह भी नहीं है. अगर हम लोगों को जगह मिलेगा तो और हमलोग अच्छा से सीख पाएंगे. इस खेल के जरिए अपने जिला और राज्य का नाम रोशन कर सकते हैं.

इंडिया बुक ऑफ रिकॉर्ड में अपना नाम दर्ज कराने वाले छात्र कहते हैं कि मुझे स्केटिंग देखने में काफी मजा आ रहा है. पहले मैं सिर के बल चला करता था. मेरे पिता ने देखा कि मैं काफी अच्छा कर रहा हूं. मेरे पिता ने मुझे काफी सपोर्ट किया. मैं 1 मिनट में 134 स्टेप चल सकता हूं. अब मैं अपना बैलेंस स्केटिंग में बना रहा हूं ताकि और भी अच्छा कर सकूं.

खेल के माध्यम से बच्चों का मानसिक विकास

अभिभावक निशी मानती हैं कि खेल के माध्यम से बच्चों को मानसिक और शारीरिक संतुलन बनाने में मदद मिल रही है. बच्चों की प्रतिभा देखकर वे खुश हैं. उनका यह भी कहना है कि पहले हमलोग को कुछ सीखने का मन करता था, लेकिन वैसा माहौल नहीं था. अब हमारे बच्चे कुछ अलग सीख रहे हैं तो ऐसा लगता है कि मानो हमारा सपना साकार हो रहा है.

कोच अकरम का कहना है कि किसी भी खेल के लिए बड़े और छोटे शहरों का भेद नहीं है. बच्चे अच्छे कर रहे हैं और उन्हें उम्मीद है कि राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मेडल प्राप्त करने में सफल होंगे. उनका यह भी कहना है कि वर्तमान समय में स्कूल कॉलेज सभी बंद हैं. बच्चे घर में हैं. ऐसे में यह खेल उन्हें मानसिक रूप से मजबूत कर रहा है और वे मनोरंजन भी कर पा रहे हैं. यह खेल के साथ-साथ उनके व्यक्तित्व को भी निखार रहा है.

कुछ नया करने के लिए प्रयोग करना भी जरूरी होता है. कोच छात्रों में नया हुनर डालने के लिए प्रयास कर रहे हैं. छात्र भी बड़े ही शौक से खेल को सीख रहे हैं. जरूरत है माता-पिता समेत समाज को भी ऐसे बच्चों को प्रोत्साहित करने की ताकि वे अपना नाम खेल की दुनिया में बना सके.

Last Updated : Oct 29, 2020, 2:45 PM IST
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