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नाले के पानी से कट रही जिंदगी, यहां न पढ़ेगा कोई न बढ़ेगा कोई! - हेमंत सरकार

गिरिडीह जिले के तिसरी प्रखंड के असुरहड्डी गांव में परेशानियों का अंबार है. यहां आज भी लोग नाले का गंदा पानी पीने को मजबूर हैं. गर्मी और बरसात के दिनों में तो जीना मुहाल हो जाता है.

Water problem in Giridih, water problem, Hemant government, drinking water problem, गिरिडीह में पानी की समस्या, पानी की समस्या, हेमंत सरकार, पेयजल की समस्या
पेयजल की समस्या
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Published : Jan 21, 2020, 12:48 PM IST

गिरिडीह: झारखंड-बिहार की सीमा पर स्थित है तिसरी प्रखंड का असुरहड्डी गांव. आदिवासी और दलित बहुल्य वाला यह गांव कीमती पत्थरों के लिए मशहूर है. जिला मुख्यालय से लगभग 90-95 किमी दूरी पर स्थित इस गांव के लोगों की अलग ही व्यथा है. इस गांव में बिजली तो पहुंच गई लेकिन पानी, सड़क और शिक्षा जैसी सुविधाओं के लिए यहां के लोगों को तरसना पड़ रहा है.

देखें पूरी खबर

पहाड़ी से उतरकर नाले में पहुंचते हैं ग्रामीण
इस गांव की सबसे बड़ी समस्या पेयजल है. गांव में सालोंभर पानी की परेशानी रहती है. गांव में लगे सभी चापानल खराब है. ऐसे में लोगों को पहाड़ियों से उतरकर गांव के पास से गुजर रहे नाले के पास पहुंचना पड़ता है और इस नाले में चुवां (छोटा गड्ढा) खोदकर पानी निकालना पड़ता है. फिर इसी पानी को लोग बर्तन में भरकर वापस काफी ऊंचाई चढ़ते हुए गांव जाते हैं. बड़ी बात है कि इसी नाले में मवेशी भी पानी पीते हैं. ग्रामीण बताते हैं कि सर्दियों और बसंत ऋतु में तो नाले का पानी से काम चल जाता है, लेकिन बारिश और गर्मी में काफी परेशानी होती है. बारिश में नाले का जलस्तर बढ़ जाता है तो लोग चुवां भी नहीं खोद पाते हैं. जबकि गर्मियों में नाला सुख जाता है. परिणामस्वरूप पानी के लिए चार-पांच किमी की दूरी तय करनी पड़ती है.

ये भी पढ़ें- नौवीं की वार्षिक परीक्षा आज से शुरू, 4.22 परीक्षार्थी दे रहे हैं एग्जाम

बदहाल सड़क
गांव की सड़क भी बदहाल है. कच्ची सड़क पर चलना दूभर भरा है. बरसात में तो सड़क और भी खराब हो जाती है. कीचड़मय सड़क पर चलना काफी मुश्किल हो जाता है. ग्रामीण बताते हैं कि बारिश में जब किसी की तबीयत ज्यादा खराब हो जाती है तो उसे खाट पर टांगकर ले जाना पड़ता है.

स्कूल में नहीं हैं शिक्षक
असुरहड्डी गांव में एक स्कूल भी है, लेकिन पिछले तीन माह से स्कूल बंद पड़ा हुआ. स्कूल बंद हैं तो बच्चे भी दिनभर घर में खेलते हैं या घर के काम में अभिभावकों का हाथ बंटाते हैं. ग्रामीण बताते हैं कि स्कूल में 80-90 बच्चे पढ़ते थे, लेकिन जब मास्टरजी नहीं आयेंगे तो बच्चों को पढ़ायेगा कौन. गांव की समस्या पर सामाजिक कार्यकर्ता सुरेश साव का कहना है कि सरकार या अधिकारी प्रखंड मुख्यलाल की जगह ऐसे गांवों में दरबार लगाएं तभी यहां की समस्याओं पर कुछ पहल हो सकेगी.

ये भी पढ़ें- पति की प्रताड़ना से तंग पत्नी ने दे दी जान, विरोध में घंटों रहा सड़क जाम

जल्द होगा समाधान: बीडीओ
तिसरी के बीडीओ सुनील प्रकाश ने कहा कि असुरहड्डी की समस्या की जानकारी मिली है. यहां की समस्या का हल निकाला जाएगा. पानी, सड़क और शिक्षा व्यवस्था को दुरुस्त किया जाएगा.

गिरिडीह: झारखंड-बिहार की सीमा पर स्थित है तिसरी प्रखंड का असुरहड्डी गांव. आदिवासी और दलित बहुल्य वाला यह गांव कीमती पत्थरों के लिए मशहूर है. जिला मुख्यालय से लगभग 90-95 किमी दूरी पर स्थित इस गांव के लोगों की अलग ही व्यथा है. इस गांव में बिजली तो पहुंच गई लेकिन पानी, सड़क और शिक्षा जैसी सुविधाओं के लिए यहां के लोगों को तरसना पड़ रहा है.

देखें पूरी खबर

पहाड़ी से उतरकर नाले में पहुंचते हैं ग्रामीण
इस गांव की सबसे बड़ी समस्या पेयजल है. गांव में सालोंभर पानी की परेशानी रहती है. गांव में लगे सभी चापानल खराब है. ऐसे में लोगों को पहाड़ियों से उतरकर गांव के पास से गुजर रहे नाले के पास पहुंचना पड़ता है और इस नाले में चुवां (छोटा गड्ढा) खोदकर पानी निकालना पड़ता है. फिर इसी पानी को लोग बर्तन में भरकर वापस काफी ऊंचाई चढ़ते हुए गांव जाते हैं. बड़ी बात है कि इसी नाले में मवेशी भी पानी पीते हैं. ग्रामीण बताते हैं कि सर्दियों और बसंत ऋतु में तो नाले का पानी से काम चल जाता है, लेकिन बारिश और गर्मी में काफी परेशानी होती है. बारिश में नाले का जलस्तर बढ़ जाता है तो लोग चुवां भी नहीं खोद पाते हैं. जबकि गर्मियों में नाला सुख जाता है. परिणामस्वरूप पानी के लिए चार-पांच किमी की दूरी तय करनी पड़ती है.

ये भी पढ़ें- नौवीं की वार्षिक परीक्षा आज से शुरू, 4.22 परीक्षार्थी दे रहे हैं एग्जाम

बदहाल सड़क
गांव की सड़क भी बदहाल है. कच्ची सड़क पर चलना दूभर भरा है. बरसात में तो सड़क और भी खराब हो जाती है. कीचड़मय सड़क पर चलना काफी मुश्किल हो जाता है. ग्रामीण बताते हैं कि बारिश में जब किसी की तबीयत ज्यादा खराब हो जाती है तो उसे खाट पर टांगकर ले जाना पड़ता है.

स्कूल में नहीं हैं शिक्षक
असुरहड्डी गांव में एक स्कूल भी है, लेकिन पिछले तीन माह से स्कूल बंद पड़ा हुआ. स्कूल बंद हैं तो बच्चे भी दिनभर घर में खेलते हैं या घर के काम में अभिभावकों का हाथ बंटाते हैं. ग्रामीण बताते हैं कि स्कूल में 80-90 बच्चे पढ़ते थे, लेकिन जब मास्टरजी नहीं आयेंगे तो बच्चों को पढ़ायेगा कौन. गांव की समस्या पर सामाजिक कार्यकर्ता सुरेश साव का कहना है कि सरकार या अधिकारी प्रखंड मुख्यलाल की जगह ऐसे गांवों में दरबार लगाएं तभी यहां की समस्याओं पर कुछ पहल हो सकेगी.

ये भी पढ़ें- पति की प्रताड़ना से तंग पत्नी ने दे दी जान, विरोध में घंटों रहा सड़क जाम

जल्द होगा समाधान: बीडीओ
तिसरी के बीडीओ सुनील प्रकाश ने कहा कि असुरहड्डी की समस्या की जानकारी मिली है. यहां की समस्या का हल निकाला जाएगा. पानी, सड़क और शिक्षा व्यवस्था को दुरुस्त किया जाएगा.

Intro:सुदूरवर्ती इलाके खासकर उग्रवाद प्रभावित क्षेत्र के समुचित विकास का दम्भ सरकारें भरती रही है लेकिन इसकी जमीनी हकीकत गिरिडीह जिले के तिसरी प्रखण्ड के असुरहड्डी गांव में देखने को मिलती है. यहां आज भी लोग नाले का गंदा पानी पीने को विवश हैं.

गिरिडीह। झारखंड-बिहार की सीमा पर स्थित है तिसरी प्रखण्ड का असुरहड्डी गांव. आदिवासी व दलित बाहुल्य वाला यह गांव कीमती पत्थरों के लिए मशहूर है. जिला मुख्यालय से लगभग 90-95 किमी दूरी पर स्थित इस गांव के लोगों की अलग ही व्यथा है. इस गांव में बिजली तो पहुंच गयी लेकिन पानी, सड़क व शिक्षा जैसी सुविधाओं के लिए यहां के लोगों को तरसना पड़ रहा है.

पहाड़ी से उतरकर नाले में पहुंचते हैं ग्रामीण, नाले को खोदकर लाते हैं गन्दा पानी
इस गांव की सबसे बड़ी समस्या पेयजल है. गांव में सालोंभर पानी की परेशानी रहती है. गांव में लगा सभी चापाकल खराब है. ऐसे में लोगों को पहाड़ियों से उतरकर गांव के बगल से गुजरा नाला पहुंचना पड़ता है और इस नाले में चुवां खोदकर पानी निकालना पड़ता है. फिर इसी पानी को लोग बर्तन में भरकर वापस काफी ऊंचाई चढ़ते हुवे गांव आना पड़ता है. बड़ी बात है कि इसी नाले में मवेशी भी पानी पीते हैं. ग्रामीण बताते हैं कि सर्दियों व बसंत ऋतु में तो नाले का पानी से काम चल जाता है लेकिन बारिश व गर्मी में काफी परेशानी होती है. बारिश में नाले का जलस्तर बढ़ जाता है तो लोग चुवां भी नहीं खोद पाते हैं जबकि गर्मियों में नाला सुख जाता है परिणामस्वरूप पानी के लिए चार-पांच किमी की दूरी तय करनी पड़ती है.

बदहाल सड़क पर चलना मुश्किल भरा
गांव की सड़क भी बदहाल है कच्ची सड़क पर चलना दूभर भरा है. बरसात में तो सड़क और भी खराब हो जाती है. कीचड़मय सड़क पर चलना काफी मुश्किल हो जाता है. ग्रामीण बताते हैं कि बारिश में जब किसी की तबियत ज्यादा खराब हो जाती है तो उसे खाट पर टांगकर ले जाना पड़ता है.

स्कूल में नहीं है शिक्षक
असुरहड्डी गांव में एक स्कूल भी है लेकिन पिछले तीन माह से स्कूल बंद पड़ा हुआ. स्कूल बंद हैं तो बच्चे भी दिनभर घर मे खेलते हैं या घर के काम में अभिभावकों का हाथ बंटाते हैं. ग्रामीण बताते हैं कि स्कूल 80-90 बच्चे पढ़ते थे लेकिन जब मास्टरजी नहीं आयेंगे तो बच्चों को पढ़ायेगा कौन. गांव की समस्या पर सामाजिक कार्यकर्ता सुरेश साव का कहना है कि सरकार या अधिकारी प्रखण्ड मुख्यलाल की जगह ऐसे गांवों में दरबार लगावे तभी यहाँ की समस्याओं पर कुछ पहल हो सकेगी.

जल्द होगा समाधान : बीडीओ
तिसरी के बीडीओ सुनील प्रकाश ने कहा कि असुरहड्डी में व्याप्त समस्या की जानकारी मिली है. यहां की समस्या का हल निकाला जाएगा. पानी, सड़क व शिक्षा व्यवस्था को दुरुस्त किया जाएगा.

बाईट 1: गांव की महिला
बाईट 2: गांव की महिला
बाइट 3: टुसु तुरी, ग्रामीण ( पीला रंग का टीशर्ट व जैकेट पहने हुवे)
बाइट 4: सोमर कमर, ग्रामीण ( गुलाबी टीशर्ट पहने हुए)
बाइट 5: ग्रामीण
बाइट 6: सुरेश साव, सामाजिक कार्यकर्ता ( पेड़ के पास जैकेट पहने हुवे व सिर पर बाल कम है)
बाइट 7: सुनील प्रकाश, बीडीओ ( कोर्ट पहने हुवे)


Body:गिरिडीह। झारखंड-बिहार की सीमा पर स्थित है तिसरी प्रखण्ड का असुरहड्डी गांव. आदिवासी व दलित बाहुल्य वाला यह गांव कीमती पत्थरों के लिए मशहूर है. जिला मुख्यालय से लगभग 90-95 किमी दूरी पर स्थित इस गांव के लोगों की अलग ही व्यथा है. इस गांव में बिजली तो पहुंच गयी लेकिन पानी, सड़क व शिक्षा जैसी सुविधाओं के लिए यहां के लोगों को तरसना पड़ रहा है.

पहाड़ी से उतरकर नाले में पहुंचते हैं ग्रामीण, नाले को खोदकर लाते हैं गन्दा पानी
इस गांव की सबसे बड़ी समस्या पेयजल है. गांव में सालोंभर पानी की परेशानी रहती है. गांव में लगा सभी चापाकल खराब है. ऐसे में लोगों को पहाड़ियों से उतरकर गांव के बगल से गुजरा नाला पहुंचना पड़ता है और इस नाले में चुवां खोदकर पानी निकालना पड़ता है. फिर इसी पानी को लोग बर्तन में भरकर वापस काफी ऊंचाई चढ़ते हुवे गांव आना पड़ता है. बड़ी बात है कि इसी नाले में मवेशी भी पानी पीते हैं. ग्रामीण बताते हैं कि सर्दियों व बसंत ऋतु में तो नाले का पानी से काम चल जाता है लेकिन बारिश व गर्मी में काफी परेशानी होती है. बारिश में नाले का जलस्तर बढ़ जाता है तो लोग चुवां भी नहीं खोद पाते हैं जबकि गर्मियों में नाला सुख जाता है परिणामस्वरूप पानी के लिए चार-पांच किमी की दूरी तय करनी पड़ती है.

बदहाल सड़क पर चलना मुश्किल भरा
गांव की सड़क भी बदहाल है कच्ची सड़क पर चलना दूभर भरा है. बरसात में तो सड़क और भी खराब हो जाती है. कीचड़मय सड़क पर चलना काफी मुश्किल हो जाता है. ग्रामीण बताते हैं कि बारिश में जब किसी की तबियत ज्यादा खराब हो जाती है तो उसे खाट पर टांगकर ले जाना पड़ता है.

स्कूल में नहीं है शिक्षक
असुरहड्डी गांव में एक स्कूल भी है लेकिन पिछले तीन माह से स्कूल बंद पड़ा हुआ. स्कूल बंद हैं तो बच्चे भी दिनभर घर मे खेलते हैं या घर के काम में अभिभावकों का हाथ बंटाते हैं. ग्रामीण बताते हैं कि स्कूल 80-90 बच्चे पढ़ते थे लेकिन जब मास्टरजी नहीं आयेंगे तो बच्चों को पढ़ायेगा कौन. गांव की समस्या पर सामाजिक कार्यकर्ता सुरेश साव का कहना है कि सरकार या अधिकारी प्रखण्ड मुख्यलाल की जगह ऐसे गांवों में दरबार लगावे तभी यहाँ की समस्याओं पर कुछ पहल हो सकेगी.




Conclusion:जल्द होगा समाधान : बीडीओ
तिसरी के बीडीओ सुनील प्रकाश ने कहा कि असुरहड्डी में व्याप्त समस्या की जानकारी मिली है. यहां की समस्या का हल निकाला जाएगा. पानी, सड़क व शिक्षा व्यवस्था को दुरुस्त किया जाएगा.

बाईट 1: गांव की महिला
बाईट 2: गांव की महिला
बाइट 3: टुसु तुरी, ग्रामीण ( पीला रंग का टीशर्ट व जैकेट पहने हुवे)
बाइट 4: सोमर कमर, ग्रामीण ( गुलाबी टीशर्ट पहने हुए)
बाइट 5: ग्रामीण
बाइट 6: सुरेश साव, सामाजिक कार्यकर्ता ( पेड़ के पास जैकेट पहने हुवे व सिर पर बाल कम है)
बाइट 7: सुनील प्रकाश, बीडीओ ( कोर्ट पहने हुवे)
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