गिरिडीह: देश के इतिहास में कई बड़े नक्सली मारे गए तो कई दुर्दांत नक्सली पकड़े भी गए हैं. हर अभियान में गोलियां चली तो खून भी बहा लेकिन इन सबों के बीच गिरिडीह पुलिस ने आज से दो साल पहले जो कर दिखाया वह खुद ही इतिहास बन गया. यह ऐतिहासिक सफलता दिलाने वाले उस वक्त के गिरिडीह एसपी और वर्तमान में रांची के सीनियर एसपी सुरेंद्र कुमार झा और गिरिडीह के एएसपी रहे दीपक कुमार को पुलिस मेडल फॉर गैलेंट्री अवार्ड से सम्मानित किया गया है. इस पुरस्कार को पानेवाले एएसपी दीपक कुमार से ईटीवी भारत ने खास बातचीत की.
बता दें कि गिरिडीह पुलिस ने 4-5 मार्च 2018 को एक साथ 15 नक्सली पकड़े थे. इनमें 25 लाख के इनामी नक्सली सुनील मांझी (स्पेशल एरिया कमिटी सदस्य, भाकपा माओवादी), पांच-पांच लाख का इनामी भाकपा माओवादी संगठन का सब जोनल कमांडर सोहन भुइयां और चार्ली उर्फ शेखर मुख्य रूप से शामिल था. इन 15 नक्सलियों में तीन महिला नक्सली भी शामिल थी. इनके पास से एके 47 समेत 12 राइफल, नगद, 300 आधार कार्ड, 50 एटीएम और पासबुक के साथ-कई सामान की बरामदगी हुई थी. इतनी बड़ी सफलता मिली और न तो एक गोली चली न ही खून का एक कतरा भी बहा था.
गांव में छिपे थे नक्सली, हर वक्त फायरिंग का खतरा
एएसपी दीपक ने बताया कि उस वक्त के एसपी सुरेंद्र कुमार झा को यह पुख्ता सूचना मिली थी कि अकबकीटांड गांव में नक्सली संगठन भाकपा माओवादी का दस्ता छिपा है. दस्ते में 25 लाख का इनामी सुनील मांझी के अलावा 15 से अधिक नक्सली शामिल हैं. जिनके पास हथियार भी है. पूरी जानकारी मिलने के बाद एसपी सुरेंद्र के नेतृत्व में वे दल-बल के साथ गांव पहुंचे. यहां झारखंड जगुआर की टीम कमाडेंट विभाष तिर्की के साथ गिरिडीह पुलिस और कोबरा की टीम ने पूरे गांव की घेराबंदी की. घेराबंदी इस तरह की गयी की एक नक्सली भी भाग नहीं सके. घिर चुके सुनील ने एक बार भागने का प्रयास किया लेकिन उसे पकड़ लिया गया. उन्होंने कहा कि अभियान को फूलप्रूफ प्लानिंग देने में एसपी सुरेंद्र की सबसे बड़ी भूमिका रही.
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गोली चलती तो नुकसान होता
एएसपी ने बताया कि चूंकि नक्सली गांव में ठिकाना बनाये हुए थे. ऐसे में फायरिंग होती तो ग्रामीणों को भी नुकसान होता. ऐसे में सबसे पहले ग्रामीणों को सुरक्षित निकाला गया था ताकि नक्सलियों की एक नहीं चल सके.
मुख्यधारा में लौटना विकल्प
एएसपी दीपक ने कहा कि अब नक्सलियों से आम लोगों का मोह भंग हो गया है. नक्सलियों की करतूत भी लोग जान चुके हैं. जगह-जगह विकास हो रहा है. जल्द ही पारसनाथ का इलाका पूरी तरह नक्सलियों से मुक्त हो जाएगा. ऐसे में भटके हुए लोग मुख्यधारा में जुड़कर नई जिंदगी जी सकते हैं.