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निर्मला पुतुल ने कलम से बदली लोगों की तकदीर, साहित्य और जनसेवा से बनाया मुकाम - निर्मला पुतुल मुर्मू

दुमका की रहने वाली निर्मला पुतुल मुर्मू ने अपना एक अलग पहचान बनाई है. निर्मला पिछले दो दशक से साहित्य की सेवा कर रही है. वह लोगों के सामाजिक-आर्थिक उत्थान में जुटी है. उनका कहना है कि वो सेवा करके जब लौटती हैं, तो घर आने के बाद वो कविता लिखती थी, ऐसे ही उन्होंने कई किताबें भी लिखी है.

dumka ki nirmla putul
समाज सेवी से बनी कवि
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Published : Mar 11, 2020, 3:23 PM IST

दुमका: झारखंड राज्य का संथालपरगना प्रमंडल जिसे काफी पिछड़ा माना जाता है. यहां खासतौर पर आदिवासी समाज की स्थिति अभी भी दयनीय है. ऐसे में एक आदिवासी संथाल समाज की एक महिला जिसने अपने मेहनत, संघर्ष, जुझारूपन से अपना एक अलग पहचान बनाई वह है निर्मला पुतुल मुर्मू. निर्मला पिछले दो दशक से साहित्य की सेवा कर रही है. वह लोगों के सामाजिक-आर्थिक उत्थान में जुटी है. चार वर्ष पहले वह अपने पंचायत की मुखिया बनकर जनकल्याण का काम बखूबी कर रही है.

देखें स्पेशल स्टोरी

कौन हैं निर्मला पुतुल

दुमका के दुधानी गांव में एक आदिवासी संथाल परिवार में निर्मला का जन्म 1972 में हुआ. उनके पिता सिरिल मुर्मू पहले बच्चों को शिक्षा देते थे बाद में पूरी तरह से परम्परागत कृषि व्यवसाय से जुड़ गए. निर्मला पुतुल की शिक्षा दीक्षा दुमका में स्नातक तक हुई. पिछले दो दशकों से वह गांव-गांव जाकर लोगों को शिक्षा, स्वास्थ्य, स्वरोजगार, नशामुक्ति जैसे मुद्दे पर जागरूक करते आ रही है.

निर्मला बताती है कि गांव में जाकर लोगों को जागरूक करने में काफी दुश्वारियों का सामना करना पड़ा. लोगों की बुरी नजर हमेशा उसका पीछा करती थी, लेकिन हिम्मत नहीं हारी और गांव में महिलाओं को अपने अधिकारों के प्रति सजग रहने के लिए जागरूक किया. उन्होंने महिलाओं को हमेशा इस बात के लिए प्रेरित किया कि वह स्वालंबी बने ताकि पुरुषों के उत्पीड़न से बच सके. निर्मला कहती हैं कि दिन भर घर- घर, गांव-गांव घूमने के बाद शाम में जब वह घर लौटती थी तो दिन भर का जो अनुभव था इसे शब्दों में पिरोती हुई छंदबद्ध करती जो धीरे-धीरे कविता का रूप लेने लगी.

ये भी पढ़ें- PMCH में कोरोना मरीजों के लिए नहीं है कोई विशेष व्यवस्था, वायरस की जांच के लिए भेजना होगा रिम्स

साहित्य के क्षेत्र में निर्मला पुतुल मुर्मू का विशेष स्थान

झारखंड में निर्मला पुतुल मुर्मू का नाम साहित्य के क्षेत्र में बड़े ही सम्मान से लिया जाता है. उन्होंने सामाजिक कुरीतियों और महिलाओं के दर्द को लेकर कई कविताएं लिखी. उन्होंने अब तक तीन पुस्तकें भी लिखी है, जो कविता संग्रह है.

निर्मला की किताब जिनकी हुई तारीफ

  1. अपने घर की तलाश में
  2. नगाड़ों की तरह बजते हैं सब
  3. बेघर सपने

इसके साथ ही दर्जनों कविताएं लिखी जो देश के कई प्रतिष्ठित पत्रिकाओं और अखबारों में प्रकाशित हो चुके हैं. साहित्यिक क्षेत्र में अब तक कई सम्मान से वह नवाजी जा चुकी है. जिसमें झारखंड सरकार द्वारा उन्हें 2006 में साहित्य के क्षेत्र में राजकीय सम्मान दिया गया. इसके साथ ही निर्मला पुतुल को 2008 में नई दिल्ली में शिला सिद्धांतकर स्मृति सम्मान, महाराष्ट्र सरकार की ओर से राज्य हिंदी साहित्य अकादमी सम्मान, हिमाचल प्रदेश में हिंदी साहित्य अकादमी सम्मान, दिल्ली में विनोबा भावे सम्मान, मिजोरम में भारत आदिवासी सम्मान मिल चुका है. उन्हें एनएफआई मीडिया फैलोशिप, एग्रेरियन असिस्टेंट संस्था द्वारा महिला हिंसा को लेकर किए गए कार्य को लेकर भी उन्हें फैलोशिप प्रदान किया गया है. उनकी कई रचना का देश के अलग अलग हिस्सों में अंग्रेजी, नागपुरी, उर्दू भाषा मे अनुवाद भी हुआ है.

दुमका: झारखंड राज्य का संथालपरगना प्रमंडल जिसे काफी पिछड़ा माना जाता है. यहां खासतौर पर आदिवासी समाज की स्थिति अभी भी दयनीय है. ऐसे में एक आदिवासी संथाल समाज की एक महिला जिसने अपने मेहनत, संघर्ष, जुझारूपन से अपना एक अलग पहचान बनाई वह है निर्मला पुतुल मुर्मू. निर्मला पिछले दो दशक से साहित्य की सेवा कर रही है. वह लोगों के सामाजिक-आर्थिक उत्थान में जुटी है. चार वर्ष पहले वह अपने पंचायत की मुखिया बनकर जनकल्याण का काम बखूबी कर रही है.

देखें स्पेशल स्टोरी

कौन हैं निर्मला पुतुल

दुमका के दुधानी गांव में एक आदिवासी संथाल परिवार में निर्मला का जन्म 1972 में हुआ. उनके पिता सिरिल मुर्मू पहले बच्चों को शिक्षा देते थे बाद में पूरी तरह से परम्परागत कृषि व्यवसाय से जुड़ गए. निर्मला पुतुल की शिक्षा दीक्षा दुमका में स्नातक तक हुई. पिछले दो दशकों से वह गांव-गांव जाकर लोगों को शिक्षा, स्वास्थ्य, स्वरोजगार, नशामुक्ति जैसे मुद्दे पर जागरूक करते आ रही है.

निर्मला बताती है कि गांव में जाकर लोगों को जागरूक करने में काफी दुश्वारियों का सामना करना पड़ा. लोगों की बुरी नजर हमेशा उसका पीछा करती थी, लेकिन हिम्मत नहीं हारी और गांव में महिलाओं को अपने अधिकारों के प्रति सजग रहने के लिए जागरूक किया. उन्होंने महिलाओं को हमेशा इस बात के लिए प्रेरित किया कि वह स्वालंबी बने ताकि पुरुषों के उत्पीड़न से बच सके. निर्मला कहती हैं कि दिन भर घर- घर, गांव-गांव घूमने के बाद शाम में जब वह घर लौटती थी तो दिन भर का जो अनुभव था इसे शब्दों में पिरोती हुई छंदबद्ध करती जो धीरे-धीरे कविता का रूप लेने लगी.

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साहित्य के क्षेत्र में निर्मला पुतुल मुर्मू का विशेष स्थान

झारखंड में निर्मला पुतुल मुर्मू का नाम साहित्य के क्षेत्र में बड़े ही सम्मान से लिया जाता है. उन्होंने सामाजिक कुरीतियों और महिलाओं के दर्द को लेकर कई कविताएं लिखी. उन्होंने अब तक तीन पुस्तकें भी लिखी है, जो कविता संग्रह है.

निर्मला की किताब जिनकी हुई तारीफ

  1. अपने घर की तलाश में
  2. नगाड़ों की तरह बजते हैं सब
  3. बेघर सपने

इसके साथ ही दर्जनों कविताएं लिखी जो देश के कई प्रतिष्ठित पत्रिकाओं और अखबारों में प्रकाशित हो चुके हैं. साहित्यिक क्षेत्र में अब तक कई सम्मान से वह नवाजी जा चुकी है. जिसमें झारखंड सरकार द्वारा उन्हें 2006 में साहित्य के क्षेत्र में राजकीय सम्मान दिया गया. इसके साथ ही निर्मला पुतुल को 2008 में नई दिल्ली में शिला सिद्धांतकर स्मृति सम्मान, महाराष्ट्र सरकार की ओर से राज्य हिंदी साहित्य अकादमी सम्मान, हिमाचल प्रदेश में हिंदी साहित्य अकादमी सम्मान, दिल्ली में विनोबा भावे सम्मान, मिजोरम में भारत आदिवासी सम्मान मिल चुका है. उन्हें एनएफआई मीडिया फैलोशिप, एग्रेरियन असिस्टेंट संस्था द्वारा महिला हिंसा को लेकर किए गए कार्य को लेकर भी उन्हें फैलोशिप प्रदान किया गया है. उनकी कई रचना का देश के अलग अलग हिस्सों में अंग्रेजी, नागपुरी, उर्दू भाषा मे अनुवाद भी हुआ है.

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