दुमका: संथाल परगना में जनजातीय समाज की आबादी काफी है. इसको लेकर झारखंड सरकार ने 2008 में आदिवासी शोध संस्थान की स्थापना की. इस संस्थान में जनजातीय समुदाय से जुड़े सभी पहलुओं पर शोध करना था या फिर शोध करनेवालों को तमाम सामग्री, आंकड़ें, शोध कॉपी, संबंधित किताबें उपलब्ध कराना था, लेकिन इस संस्थान के प्रति सरकार की उदासीनता और उपेक्षा इससे ही समझी जा सकती है कि विभाग में सिर्फ एक चतुर्थवर्गीय कर्मचारी है. जो भी लोग यहां आदिवासी समाज से जुड़े तथ्यों की जानकारी प्राप्त करने यहां पहुंचते हैं उन्हें मायूसी हाथ लगती है.
संस्थान में बिजली कनेक्शन नहीं
यहां की स्थिति अत्यंत बदहाल है. सरकारी लापरवाही का इसी से पता चलता है कि इतने बड़े संस्थान में बिजली कनेक्शन तक नहीं है. कंप्यूटर धूल फांक रहे हैं. आदिवासी जीवन से जुड़ी हजारों पुस्तकें यहां हैं पर उसे दीमक खा रहे हैं. इसे लेकर आदिवासी समाज में नाराजगी है. वे इसे दुरुस्त करने की मांग कर रहे हैं. इस मामले में जब ईटीवी भारत की टीम इस संस्थान में पहुंची तो आदिवासी समुदाय के कुछ लोग यहां मौजूद थे.
आदिवासी समाज निराश
संस्थान की बदहाली से आदिवासी समाज के लोग काफी निराश नजर आए. कई लोग तो ऐसे भी थे जिनका कहना था कि इस संस्थान का प्रचार-प्रसार ही नहीं हुआ. लोगों को इसके बारे में मालूम ही नहीं है. उन्होंने कहा कि वो पहली बार यहां आए हैं. वहीं, कुछ ऐसे लोग जो पहले से यहां आते रहे हैं उनका कहना है कि इसकी दिनों-दिन हालत बिगड़ती जा रही है. लोग सरकार से इस पर ध्यान देने की मांग कर रहे हैं.
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'कोरोना काल के बाद किया जाएगा काम'
जनजातीय शोध संस्थान की बदहाली पर दुमका की उपायुक्त राजेश्वरी बी ने कहा कि कोरोना से उबरते हुए धीरे-धीरे सामान्य स्थिति की ओर हम बढ़ रहे हैं. इस जनजातीय शोध संस्थान में मेन पावर की जो कमी है उसे कैसे पूरा किया जाए. इसके साथ ही साथ इसे कैसे सुचारू रूप से चलाया जाए इसके लिए प्रयास किया जाएगा. इस शोध की यह स्थिति पिछली रघुवर दास सरकार के समय से ही है. अभी हेमंत सरकार है. उनका भी कार्यकाल लगभग 10 महीने का हो गया, लेकिन किसी सरकार की सुधार इस शोध संस्थान में नहीं आई. एक बड़ा सवाल है अगर इसे ऐसे ही उपेक्षित छोड़ना था तो इसकी स्थापना ही क्यों की गई.