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MLA अरूप चटर्जी के कार्यकाल में कितना हुआ विकास, जाने क्या है आगे की रणनीति - निरसा विधानसभा सीट,

निरसा विधानसभा सीट लाल झंडे का गढ़ माना जाता है. इस सीट पर बीजेपी अबतक अपना कब्जा नहीं कर पाई है. निरसा सीट से मासस विधायक अरूप चटर्जी लगातार दो बार विधायक रहे है. पिछले 5 साल के कार्यकाल में उन्होंने क्या कुछ किया इस बारे में उन्होंने खुद बताया.

विधायक अरूप चटर्जी
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Published : Sep 28, 2019, 1:08 PM IST

धनबादः कोयलांचल में चुनावी सरगर्मी अब तेज होने लगी है. जैसे-जैसे झारखंड विधानसभा का चुनाव का समय नजदीक आ रहा है सभी नेता चुनावी समर में कूद रहे हैं. जनता भी चुनाव का इंतजार कर रही है. इसी कड़ी हम आपको धनबाद जिले के निरसा विधानसभा सीट का हाल बताते हैं. फिलहाल निरसा विधानसभा सीट पर मासस (मार्क्सवादी समन्वय समिति) का कब्जा है और अरूप चटर्जी यहां से विधायक हैं.

विधायक से बातचीत करते संवाददाता

धनबाद जिले की 6 विधानसभा सीट में से 4 पर बीजेपी का कब्जा है. 1 पर बीजेपी के सहयोगी आजसू का कब्जा है. अगर निरसा विधानसभा की बात करें तो यहां एक ऐसी सीट है जहां पर आज तक बीजेपी का कमल नहीं खिल पाया है. निरसा विधानसभा को लाल झंडे का गढ़ माना जाता है.1989 में यहां से गुरदास चटर्जी जो वर्तमान विधायक अरूप चटर्जी के पिता थे. वह पहली बार चुनाव जीते थे और तब से लेकर एक विधानसभा चुनाव को छोड़कर अभी तक गुरदास चटर्जी और अरूप चटर्जी का ही कब्जा यहां पर रहा है. अरूप चटर्जी तीसरी बार निरसा की जनता का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं.

लगातार तीन बार अरूप चटर्जी रहे विधायक
1989 से लगातार तीसरी बार गुरदास चटर्जी निरसा से विधायक रहे हैं. विधायक रहते ही सन 2000 में उनकी हत्या कर दी गई थी. जिसके बाद हुए विधानसभा उपचुनाव में उनके बेटे अरूप चटर्जी पहली बार विधायक बने. फिर ऑल इंडिया फारवर्ड ब्लाक नेता सुशांतो सेन गुप्ता की हत्या के बाद 2005 में उनकी पत्नी अपर्णा सेनगुप्ता यहां से विधायक बनी और वह राज्य सरकार में मंत्री भी रही. लेकिन उसके बाद हुए 2009 और 2014 विधानसभा चुनाव में अरूप चटर्जी चुनाव जीतने में कामयाब रहे.

बीजेपी के लिए बड़ी उपलब्धि
बता दें कि बीजेपी का कमल अबतक निरसा विधानसभा में नहीं खिल पाया है. हालांकि, 2014 विधानसभा चुनाव में बाजेपी ने मासस को यहां पर कड़ी टक्कर दी थी और बीजेपी लगभग 1200 वोटों से ही चुनाव हार गई थी. जो बीजेपी के लिए बहुत बड़ी उपलब्धि थी, क्योंकि बीजेपी पहली बार दूसरे स्थान पर भी आने पर सफल रही.

ये भी पढ़ें- विधानसभा चुनाव 2019: निरसा सीट से मासस विधायक अरूप चटर्जी का रिपोर्ट कार्ड

अपर्णा सेनगुप्ता ने कसा तंज
वहीं, दूसरी तरफ अपर्णा सेनगुप्ता जो 2005 के चुनाव में निरसा से ऑल इंडिया फारवर्ड ब्लाक से विधायक बनी थी और राज्य में मंत्री भी रही वह अब बीजेपी में शामिल हो गई है. उन्होंने वर्तमान विधायक अरूप चटर्जी पर तंज कसते हुए कहा कि इस परिवार ने निरसा विधानसभा क्षेत्र में 30 सालों तक राज किया है और इनके कार्यकाल में कोई विकास नहीं देखने को मिला. सिर्फ विनाश ही देखने को मिला है. इनके कार्यकाल में उद्योग धंधे और कल कारखाने बंद ही हुए हैं. जनता आने वाले चुनाव में इस बार इन्हें जरूर सबक सिखाएगी.

अब झारखंड विधानसभा चुनाव में ज्यादा समय नहीं रह गए हैं. ऐसे में अब जनता जनार्दन निरसा विधानसभा से किसे अपना बहुमूल्य वोट देकर विधानसभा भेजने का काम करती है यह तो चुनाव के बाद ही देखने को मिलेगा.

धनबादः कोयलांचल में चुनावी सरगर्मी अब तेज होने लगी है. जैसे-जैसे झारखंड विधानसभा का चुनाव का समय नजदीक आ रहा है सभी नेता चुनावी समर में कूद रहे हैं. जनता भी चुनाव का इंतजार कर रही है. इसी कड़ी हम आपको धनबाद जिले के निरसा विधानसभा सीट का हाल बताते हैं. फिलहाल निरसा विधानसभा सीट पर मासस (मार्क्सवादी समन्वय समिति) का कब्जा है और अरूप चटर्जी यहां से विधायक हैं.

विधायक से बातचीत करते संवाददाता

धनबाद जिले की 6 विधानसभा सीट में से 4 पर बीजेपी का कब्जा है. 1 पर बीजेपी के सहयोगी आजसू का कब्जा है. अगर निरसा विधानसभा की बात करें तो यहां एक ऐसी सीट है जहां पर आज तक बीजेपी का कमल नहीं खिल पाया है. निरसा विधानसभा को लाल झंडे का गढ़ माना जाता है.1989 में यहां से गुरदास चटर्जी जो वर्तमान विधायक अरूप चटर्जी के पिता थे. वह पहली बार चुनाव जीते थे और तब से लेकर एक विधानसभा चुनाव को छोड़कर अभी तक गुरदास चटर्जी और अरूप चटर्जी का ही कब्जा यहां पर रहा है. अरूप चटर्जी तीसरी बार निरसा की जनता का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं.

लगातार तीन बार अरूप चटर्जी रहे विधायक
1989 से लगातार तीसरी बार गुरदास चटर्जी निरसा से विधायक रहे हैं. विधायक रहते ही सन 2000 में उनकी हत्या कर दी गई थी. जिसके बाद हुए विधानसभा उपचुनाव में उनके बेटे अरूप चटर्जी पहली बार विधायक बने. फिर ऑल इंडिया फारवर्ड ब्लाक नेता सुशांतो सेन गुप्ता की हत्या के बाद 2005 में उनकी पत्नी अपर्णा सेनगुप्ता यहां से विधायक बनी और वह राज्य सरकार में मंत्री भी रही. लेकिन उसके बाद हुए 2009 और 2014 विधानसभा चुनाव में अरूप चटर्जी चुनाव जीतने में कामयाब रहे.

बीजेपी के लिए बड़ी उपलब्धि
बता दें कि बीजेपी का कमल अबतक निरसा विधानसभा में नहीं खिल पाया है. हालांकि, 2014 विधानसभा चुनाव में बाजेपी ने मासस को यहां पर कड़ी टक्कर दी थी और बीजेपी लगभग 1200 वोटों से ही चुनाव हार गई थी. जो बीजेपी के लिए बहुत बड़ी उपलब्धि थी, क्योंकि बीजेपी पहली बार दूसरे स्थान पर भी आने पर सफल रही.

ये भी पढ़ें- विधानसभा चुनाव 2019: निरसा सीट से मासस विधायक अरूप चटर्जी का रिपोर्ट कार्ड

अपर्णा सेनगुप्ता ने कसा तंज
वहीं, दूसरी तरफ अपर्णा सेनगुप्ता जो 2005 के चुनाव में निरसा से ऑल इंडिया फारवर्ड ब्लाक से विधायक बनी थी और राज्य में मंत्री भी रही वह अब बीजेपी में शामिल हो गई है. उन्होंने वर्तमान विधायक अरूप चटर्जी पर तंज कसते हुए कहा कि इस परिवार ने निरसा विधानसभा क्षेत्र में 30 सालों तक राज किया है और इनके कार्यकाल में कोई विकास नहीं देखने को मिला. सिर्फ विनाश ही देखने को मिला है. इनके कार्यकाल में उद्योग धंधे और कल कारखाने बंद ही हुए हैं. जनता आने वाले चुनाव में इस बार इन्हें जरूर सबक सिखाएगी.

अब झारखंड विधानसभा चुनाव में ज्यादा समय नहीं रह गए हैं. ऐसे में अब जनता जनार्दन निरसा विधानसभा से किसे अपना बहुमूल्य वोट देकर विधानसभा भेजने का काम करती है यह तो चुनाव के बाद ही देखने को मिलेगा.

Intro:मैडम ने निरसा विधानसभा में पैकेज के लिए मांगा था।




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