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इंटरनेशनल फुटबॉल खिलाड़ी सब्जी बेचने को मजबूर, आशा को सरकार से 'आस' - फुटबॉल खिलाड़ी आशा को सरकार से नहीं मिल रही मदद

धनबाद की रहनेवाली आशा कुमारी ने नेशनल से लेकर इंटरनेशनल स्तर पर अपनी पहचान बनाई है, लेकिन अब वह मजबूर हो चुकी है. सरकार की ओर से कोई सहायता नहीं मिलने के कारण वो अपनी मां के साथ खेतों में सब्जी उगाती है. ऐसे में खिलाड़ी आशा कुमारी ने सरकार से नौकरी की मांग की है.

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Published : Jun 14, 2020, 6:15 PM IST

धनबादः बेटियां आज बेटों से कम नहीं है. हर क्षेत्र में बेटियां बढ़-चढ़कर हिस्सा ले रही है. पढ़ाई हो या फिर खेल का मैदान, कोई भी ऐसा क्षेत्र नहीं है जहां बेटियों ने अपना परचम न लहराया हो. यह कहानी भी एक ऐसी ही बेटियों की है. जिसने नेशनल से लेकर इंटरनेशनल स्तर पर अपनी पहचान बनाई है, लेकिन अब वह मजबूर हो चुकी है. उनकी यह मजबूरी है लॉकडाउन, उनके पिता इस दुनिया में नहीं है. मां सब्जी बेचती है, नतीजा बेटियों को घर की माली हालात में सुधार लाने के लिए सब्जियां उपजानी पड़ रही है.

देखें स्पेशल स्टोरी

खेत में सब्जी उपजा रही है तीनों लड़कियां आपस में बहन है, लेकिन ये तीनों मजबूरी में खेतों में काम रही है, ताकि इनके घर का भरण पोषण हो सके. दरअसल, गोमो के लक्ष्मीपुर गांव में एक ही घर में तीन बहने फुटबाल खिलाड़ी है. आशा कुमारी जो कि इंडियन टीम से भूटान जाकर फुटबाल खेल चुकी है. इसके साथ ही पूरे भारतवर्ष में कई फुटबाल मैच झारखंड की तरफ से खेल चुकी है. आशा की दो बहनें है ये दोनों बहनें भी महिला फुटबाल इंटर स्टेट नेशनल गेम खेल चुकी हैं. आशा की घर की माली हालत ऐसी है कि वो दोनों बहनों के साथ खेती कर अपने परिवार का गुजारा करने को मजबूर है. आशा की मां गोमो के सब्जी बाजार में रोजाना सब्जी बेचती है. आशा और उसकी दोनों बहनें खेतों में काम करती है. सब्जियां उगाती है और घर के कामों में अपनी बीमार मां की हाथ बंटाती है. आशा बहुत ही दुखी मन से कहती है कि पूरा मोहल्ला उन्हें ताना मारते है.

ये भी पढे़ं- कोरोना संक्रमण के कारण नगर निगम चुनाव स्थगित, 18 जून से निकायों में नियुक्त किए जायेंगे प्रशासक

वहीं, आशा कहती है कि 2012 से ही उसने फुटबाल खेलना शुरू कर दिया था. 2018 में उसने भूटान में इंडिया के लिए फुटबाल खेला. 2019 में महिला फुटबाल अंडर-19 टीम में सेलेक्शन हो गया. जिसमें उसे महिला फुटबाल टीम के साथ थाईलैंड खेलने जाना था, लेकिन थाईलैंड जाने के महज दो दिन पहले आशा को प्रैक्टिस के दौरान चोट लग गई. जिसके कारण वो थाईलैंड नही जा पाई. यही नहीं आशा 7 बार झारखंड फुटबाल महिला टीम की कैप्टन रही है. आशा ने झारखंड की तरफ से देश और विदेश में झारखंड का नाम रौशन किया है. आशा कहती है कि उसे आज तक कहीं से भी कोई सरकारी मदद का एक रुपया भी नहीं मिला है. आशा ने कहा कि फुटबाल खेल में सिर्फ दो बार उसे एलडब्लू सीरीज फुटबाल मैच में खेलने पर दो बार तीस तीस हजार रूपए मिले यानी सिर्फ 60 हजार रुपए इन 10 सालों में उसे मिले हैं. आशा का कहना है कि यदि अच्छे खेल के प्रदर्शन के बावजूद सरकार की तरफ से अगर नौकरी नहीं मिलेगी तो आखिर भविष्य में बेटियां खेल के प्रति आगे कैसे बढ़ सकेगी. आशा ने सरकार से नौकरी देने की मांग की है.

धनबादः बेटियां आज बेटों से कम नहीं है. हर क्षेत्र में बेटियां बढ़-चढ़कर हिस्सा ले रही है. पढ़ाई हो या फिर खेल का मैदान, कोई भी ऐसा क्षेत्र नहीं है जहां बेटियों ने अपना परचम न लहराया हो. यह कहानी भी एक ऐसी ही बेटियों की है. जिसने नेशनल से लेकर इंटरनेशनल स्तर पर अपनी पहचान बनाई है, लेकिन अब वह मजबूर हो चुकी है. उनकी यह मजबूरी है लॉकडाउन, उनके पिता इस दुनिया में नहीं है. मां सब्जी बेचती है, नतीजा बेटियों को घर की माली हालात में सुधार लाने के लिए सब्जियां उपजानी पड़ रही है.

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खेत में सब्जी उपजा रही है तीनों लड़कियां आपस में बहन है, लेकिन ये तीनों मजबूरी में खेतों में काम रही है, ताकि इनके घर का भरण पोषण हो सके. दरअसल, गोमो के लक्ष्मीपुर गांव में एक ही घर में तीन बहने फुटबाल खिलाड़ी है. आशा कुमारी जो कि इंडियन टीम से भूटान जाकर फुटबाल खेल चुकी है. इसके साथ ही पूरे भारतवर्ष में कई फुटबाल मैच झारखंड की तरफ से खेल चुकी है. आशा की दो बहनें है ये दोनों बहनें भी महिला फुटबाल इंटर स्टेट नेशनल गेम खेल चुकी हैं. आशा की घर की माली हालत ऐसी है कि वो दोनों बहनों के साथ खेती कर अपने परिवार का गुजारा करने को मजबूर है. आशा की मां गोमो के सब्जी बाजार में रोजाना सब्जी बेचती है. आशा और उसकी दोनों बहनें खेतों में काम करती है. सब्जियां उगाती है और घर के कामों में अपनी बीमार मां की हाथ बंटाती है. आशा बहुत ही दुखी मन से कहती है कि पूरा मोहल्ला उन्हें ताना मारते है.

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वहीं, आशा कहती है कि 2012 से ही उसने फुटबाल खेलना शुरू कर दिया था. 2018 में उसने भूटान में इंडिया के लिए फुटबाल खेला. 2019 में महिला फुटबाल अंडर-19 टीम में सेलेक्शन हो गया. जिसमें उसे महिला फुटबाल टीम के साथ थाईलैंड खेलने जाना था, लेकिन थाईलैंड जाने के महज दो दिन पहले आशा को प्रैक्टिस के दौरान चोट लग गई. जिसके कारण वो थाईलैंड नही जा पाई. यही नहीं आशा 7 बार झारखंड फुटबाल महिला टीम की कैप्टन रही है. आशा ने झारखंड की तरफ से देश और विदेश में झारखंड का नाम रौशन किया है. आशा कहती है कि उसे आज तक कहीं से भी कोई सरकारी मदद का एक रुपया भी नहीं मिला है. आशा ने कहा कि फुटबाल खेल में सिर्फ दो बार उसे एलडब्लू सीरीज फुटबाल मैच में खेलने पर दो बार तीस तीस हजार रूपए मिले यानी सिर्फ 60 हजार रुपए इन 10 सालों में उसे मिले हैं. आशा का कहना है कि यदि अच्छे खेल के प्रदर्शन के बावजूद सरकार की तरफ से अगर नौकरी नहीं मिलेगी तो आखिर भविष्य में बेटियां खेल के प्रति आगे कैसे बढ़ सकेगी. आशा ने सरकार से नौकरी देने की मांग की है.

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