धनबाद: बिहार और झारखंड में काफी धूमधाम से छठ महापर्व मनाया जाता है. मान्यता के मुताबिक छठ में बांस से बनने वाले सूप और दौरा में प्रसाद ले जाकर भगवान सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है. ऐसे में इस समय सूप और टोकरी की काफी बिक्री होती है. इन सबके बावजूद धनबाद के निरसा में सूप बनाने वाले कारीगारों की स्थिति बदहाल है.
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नहीं मिलती है वाजिब कीमत
कलियासोल प्रखंड के पाथरकुआं पंचायत के बरबाड़ी गांव में शहर के सड़क किनारे और जगह-जगह बसे इन परिवारों की जिदगी बांस से बने सूप, डंगरा और टोकरी पर टिकी हुई है. लेकिन आधुनिकता के इस दौर में इनकी मेहनत का वाजिब मूल्य नहीं मिलता है. हस्तशिल्प में लगे ज्यादातर पुरुष और महिलाओं की माने तो इस काम में जितनी मेहनत होती है, उसके मुताबिक पैसा नहीं मिलता है. मजबूरन आजीविका चलाने के लिए इन्हें सस्ते दामों पर ही बांस से बने सूप और टोकरी को बेचना पड़ता है.
बढ़ गए हैं बांस के दाम
इन लोगों के मुताबिक पहले की तुलना में अब बांस के दाम में काफी वृद्धि हो गई है. इनके मुताबिक पहले जो बांस 20-25 रुपये में मिल रहा था अब उसकी कीमत 30 से 40 रुपये हो गई है. इसके बाद दिन भर पूरा परिवार इस काम में लगा रहता है, तब जाकर एक टोकरी या सूप बनती है. इस काम में लगे साधन मोहली की माने तो सूप बनाने के लिए सबसे पहले बांस को बारीक छिलना पड़ता है. फिर उसे तीन से चार दिन तक धूप में सूखाना पड़ता है. उसके बाद ही बांस को मनचाहे रूप में मोड़ा जाता है. एक बार सूप या टोकरी बनने के बाद उसकी बिक्री के लिए भी काफी जद्दोजहद करनी पड़ती है. तब जाकर 30 से 40 रुपये में एक सूप की बिक्री होती है.
सरकार से मदद की मांग
गरीबी और मुफलिसी में जीवन जी रहे बांस के ये कारीगरों ने सरकार से मदद की मांग की है. इनके मुताबिक इनके पास पूंजी का आभाव है. अगर सरकार इनकी मदद करती है तो ये अपने हाथ से बनाए गए सामानों को वैसे जगहों पर बेचेंगे जहां इसकी उचित कीमत मिलती हो. इनके मुताबिक सरकार इन हस्त शिल्पकार पर विशेष ध्यान दे तो अपने कामों को तीव्र गति देने में पूरा गांव कामयाब होगा. जिससे झारखंड में रोजगार का सृजन भी बढ़ेगा और इन शिल्पकरों को मान सम्मान भी मिलेगा.