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देवघरः अभिशाप नहीं है 'महिलाओं की माहवारी', ग्रामीण बच्चियों ने छेड़ा जागरूकता अभियान

देवघर में स्थानीय लड़कियों ने एक एनजीओ के सहयोग से महिलाओं को माहवारी के दौरान चली आ रही दकियानूसी प्रथाओं को लेकर जागरुक करने का बीड़ा उठाया है. शिक्षा के लिहाज से बेहद पिछड़े ग्रामीण इलाकों में किशोरियां सड़क किनारे बनी दीवारों पर पेंटिग्स के जरिए महिलाओं को जागरुक कर रही है.

माहवारी को लेकर लड़कियों ने लोगों को किया जागरुक
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Published : Jul 31, 2019, 11:45 PM IST

Updated : Aug 2, 2019, 2:05 PM IST

देवघरः माहवारी से महिलाओं और लड़कियों को गुजरना होता है. हालांकि देश के ग्रामीण इलाकों में इसे लेकर अब भी तमाम तरह की भ्रांतियां या यूं कहें कि एक अंधविश्वास है. जिसे लेकर महिलाएं माहवारी के दौरान खुद को असहज महसूस करती हैं. मसलन, पीरियड्स के दौरान लड़कियों और महिलाओं को कुछ सामानों को छूने से लेकर पूजा-पाठ तक पर बंदिश का दंश झेलना पड़ता है, लेकिन देवघर जिले में एक ऐसा गांव है, जहां किशोरियों ने इस कुप्रथा को जड़ से उखाड़ फेंकने का बीड़ा उठाया है. लड़कियों के इस काम में सहयोग एक एनजीओ कर रही है.

वीडियो में देखें ये स्पेशल स्टोरी

स्थानीय लड़कियां गांव-गांव और घर-घर जाकर किशोरियों और महिलाओं को माहवारी को लेकर जागरूक कर रही हैं. इस काम के लिए एनजीओ की तरफ तमाम तरह की सुविधाएं भी मुहैया करा रही है. शिक्षा के लिहाज से बेहद पिछड़े ग्रामीण इलाकों में किशोरियां सड़क किनारे बनी दीवारों पर पेंटिग्स के जरिए महिलाओं को जागरुक कर रही है. दरअसल, लड़कियों की कोशिश है कि माहवारी के चक्र के अलावा तमाम दकियानूसी परंपराओं से मुक्ति मिले, जो 21वीं सदी में भी ग्रामीण महिलाओं के विकास में बाधक बनी हुई हैं.

लड़कियों के मुताबिक, शुरुआती दौर में इन्हें घर और गांव में विरोध का सामना करना पड़ा. हालांकि इन बच्चियों का आत्मविश्वास नहीं डगमगाया और नतीजा आज सबके सामने है. आलम यह है कि, जिन लोगों ने पहले विरोध जताया, वही लोग आज इनके जज्बे को सलाम कर रहे हैं.

देवघरः माहवारी से महिलाओं और लड़कियों को गुजरना होता है. हालांकि देश के ग्रामीण इलाकों में इसे लेकर अब भी तमाम तरह की भ्रांतियां या यूं कहें कि एक अंधविश्वास है. जिसे लेकर महिलाएं माहवारी के दौरान खुद को असहज महसूस करती हैं. मसलन, पीरियड्स के दौरान लड़कियों और महिलाओं को कुछ सामानों को छूने से लेकर पूजा-पाठ तक पर बंदिश का दंश झेलना पड़ता है, लेकिन देवघर जिले में एक ऐसा गांव है, जहां किशोरियों ने इस कुप्रथा को जड़ से उखाड़ फेंकने का बीड़ा उठाया है. लड़कियों के इस काम में सहयोग एक एनजीओ कर रही है.

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स्थानीय लड़कियां गांव-गांव और घर-घर जाकर किशोरियों और महिलाओं को माहवारी को लेकर जागरूक कर रही हैं. इस काम के लिए एनजीओ की तरफ तमाम तरह की सुविधाएं भी मुहैया करा रही है. शिक्षा के लिहाज से बेहद पिछड़े ग्रामीण इलाकों में किशोरियां सड़क किनारे बनी दीवारों पर पेंटिग्स के जरिए महिलाओं को जागरुक कर रही है. दरअसल, लड़कियों की कोशिश है कि माहवारी के चक्र के अलावा तमाम दकियानूसी परंपराओं से मुक्ति मिले, जो 21वीं सदी में भी ग्रामीण महिलाओं के विकास में बाधक बनी हुई हैं.

लड़कियों के मुताबिक, शुरुआती दौर में इन्हें घर और गांव में विरोध का सामना करना पड़ा. हालांकि इन बच्चियों का आत्मविश्वास नहीं डगमगाया और नतीजा आज सबके सामने है. आलम यह है कि, जिन लोगों ने पहले विरोध जताया, वही लोग आज इनके जज्बे को सलाम कर रहे हैं.

Intro:देवघर अभिशाप नहीं है 'महिलाओं की माहवारी', ग्रामीण बच्चियों ने छेड़ा जागरूकता अभियान।


Body:एंकर देवघर मोनोपोज़ यानी माहवारी। यह एक ऐसी प्राकृतिक प्रक्रिया है जिससे सभी महिलाओं को गुजरना होता है लेकिन, देश के ग्रामीण इलाकों में इसे लेकर अब भी तमाम तरह की भ्रांतियां या यूं कहें कि, एक अंधविश्वास है जिसे लेकर महिलाएं माहवारी के दौरान खुद को असहज महसूस करती हैं। मसलन, पीरियड्स के दौरान किशोरियो और महिलाओं को कुछ सामानों को छूने से लेकर पूजा-पाठ तक पर बंदिश का दंश झेलना पड़ता है। लेकिन, देवघर जिले का एक गांव है जहां की किशोरियों ने इस कुप्रथा को जड़ से उखाड़ फेंकने का बीड़ा उठाया है और उनके इस काम मे सहयोग कर रही है एक स्वयं सेवी संस्था यानी, नीड्स नाम की एक एनजीओ। जी हां, नीड्स के माद्यम से आज यह बच्चियां गांव-गांव में घर घर जाकर ग्रामीण किशोरियों और महिलाओं को माहवारी के प्रति जानकारी देकर उन्हें जागरूक कर रही हैं। इस काम के लिए नीड्स इन तमाम तरह की सुविधाएं भी मुहैया करा रही है। उनमें से प्रमुख है वैसे ग्रामीण इलाके जो आज भी शिक्षा के लिहाज से पिछड़े हैं वहां, दीवारों पर पेंटिग्स बनना। संस्था और इससे जुड़ी लड़कियों की कोशिश है कि, रंग और कूचों के माध्यम से माहवारी के उस चक्र और उसके नफा नुकसान के अलावा उन तमाम दकियानूसी परम्पराओं से मुक्ति दिलाने जो, 21वीं सदी में भी ग्रामीण महिलाओं के विकास में बाधक बनी हुई हैं। इस काम मे जुटी बालिकाओं के मुताबिक, शुरुआती दौर में इन्हें घर और गांव में विरोध का सामना करना पड़ा लेकिन, इन बच्चियों के आत्मविश्वास नहीं डगमगाया और नतीजा आज सबके सामने हैं। आलम यह है कि, जिन लोगों पहले विरोध जताया था वही लोग आज इनके ज़ज्बे को सलाम करते नहीं तक रहे। इन तमाम कवायदों में नीड्स भी बच्चियों के साथ कदम से कदम मिलाकर आगे बढ़ती रही जिसका परिणाम यह है कि, आज संस्था के लोग आस पास के कई गांव में इस तरह के अभियान का सफलता पूर्वक संचालन कर रही है।


Conclusion:बहरहाल, सरकार के तमाम दावों को धता बताते हुए गांव की बच्चियों ने जो जिस अभियान का बीड़ा उठाया है और नीड्स जिस तरह का सपोर्ट कर रही है वह निश्चित ही काबिले तारीफ है।

बाइट विक्की कुमार,एएसएम नीड्स।
बाइट अंजनी कुमारी dlo ट्रेनर ग्रामीण किशोरी।
बाइट श्रीति कुमारी ग्रामीण किशोरी।
बाइट ग्रामीण महिला,मीना देवी।
Last Updated : Aug 2, 2019, 2:05 PM IST
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