भागलपुर/देवघर/दुमका: संथाल की अर्थव्यवस्था सावन मेले पर आधारित है. बाबा धाम में सावन के दौरान हर दिन करीब एक लाख श्रद्धालु आते हैं और सावन सोमवारी को करीब 3 से 4 लाख शिवभक्त जल चढ़ाते हैं. इस लिहाज से सिर्फ एक महीने के दौरान 40 से 50 लाख लोगों का आवागमन होता है. इसी तरह बासुकीनाथ में भी हर दिन 50 से 60 हजार शिवभक्त आते हैं. अर्थव्यवस्था के जानकारों के अनुसार देवघर और दुमका सहित पूरे झारखंडे के करीब 4 लाख लोग प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से इस मेले पर निर्भर हैं.
एक महीने की कमाई से सालभर का इंतजाम
इस साल सावन मेला नहीं लगने पर शिवभक्तों के अलावा पंडे-पुजारी और दुकानदार भी मायूस हैं. पुजारियों के अनुसार उनका पुश्तैनी काम पूजा-पाठ ही है. इस एक महीने की कमाई से उनके सालभर का इंतजाम हो जाता है. यजमान नहीं आए तो घर चलाना मुश्किल हो जाएगा. मेले के दौरान होटल-ढाबा, धागा-बद्धी की दुकान लगाने वालों को भी चिंता सता रही है कि आखिर उनका क्या होगा. संताल परगना चैंबर ऑफ कॉमर्स के उपाध्यक्ष जितेश राजपाल के अनुसार एक महीने के मेले में 6 से 7 सौ करोड़ रुपए का कारोबार होता है. इस पर 3 से 4 लाख परिवार निर्भर हैं जो एक महीने के कारोबार से सालोंभर अपनी जीविका चलाते हैं. उन्होंने बताया कि सिर्फ झारखंड के मेला क्षेत्र में 150 से ज्यादा होटल और लॉज, 300 से ज्यादा भोजनालय, पेड़ों की दुकान और 200 के करीब चूड़ी-बिंदी जैसी दुकानें यहां इससे प्रभावित होगी. इसके अलावा 25 हजार से ज्यादा लोग मेले के दौरान रास्तों में अपनी अस्थाई दुकान लगाते हैं. स्थानीय पत्रकार जेम्स कुमार नवाब ने बताया कि सिर्फ स्थानीय दुकानदारों को ही नहीं बल्कि सरकार को भी इसका नुकसान उठाना पड़ेगा. एक अनुमान के अनुसार सरकार को मेले से करीब 100 करोड़ रुपए का राजस्व मिलता है.
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नुकसान का गणित
बाबा धाम में सावन मेले के दौरान हर दिन करीब एक लाख श्रद्धालु आते हैं. सावन सोमवारी को इनकी संख्या 3 से 4 लाख तक पहुंच जाती है. इस आंकड़े के अनुसार एक महीने के दौरान 42 लाख से ज्यादा लोग बाबा धाम पहुंचते हैं. एक अनुमान के अनुसार इतने लोगों की यात्रा के दौरान गेरुआ कपड़े खरीदना, खाना-पानी, ठहरना, यातायात, प्रसाद आदि पर प्रति व्यक्ति औसत करीब दो हजार रुपए का खर्च आता है. इस तरह 42 लाख लोगों का कुल खर्च करीब 840 करोड़ रुपए होगा. सरकार और निजी संस्थाओं की ओर से की जा रही व्यवस्था को इसमें जोड़ ले तो ये आंकड़ा हजार करोड़ के पार चला जाएगा.
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कैसे मिलेगी राहत
प्रशासन को भी इस परेशानी की खबर है लिहाजा शिवभक्तों के लिए बाबा के दर्शन की ऑनलाइन व्यवस्था की जा रही है. मंदिर की बेवसाइट के जरिए वे दक्षिणा भी दे सकते हैं. दुमका उपायुक्त राजेश्वरी बी ने ईटीवी भारत को बताया कि बासुकीनाथ मंदिर के भरोसे गुजर-बसर करने वालों को सहायता उपलब्ध कराई जाएगी.
सावन मेले में कैसी होती है प्रशासनिक व्यवस्था
सावन मेला की तैयारी करीब दो महीने पहले शुरू हो जाती है. इसके तहत रास्तेभर में शिविर, बैरिकेटिंग और अधिकारियों की तैनाती की जाती है. सावन मेला में सुरक्षा व्यवस्था संभालने के लिए इस बार 1340 अधिकारी और 9585 पुलिसकर्मियों को तैनात करने की योजना बनाई गई थी. इसमें एक पुलिस उपमहानिरीक्षक स्तर के अधिकारी, तीन पुलिस अधीक्षक स्तर के अधिकारी, 70 पुलिस उपाधीक्षक के अलावा रैपिड एक्शन फोर्स की दो, सीआरपीएफ की दो, सीआरपीएफ महिला बटालियन एक और एनडीआरएफ की दो कंपनियां शामिल है. इसके अलावा एटीएस और विशेष शाखा की टीम भी मुस्तैद रहती है. राज्य पुलिस ने पड़ोसी राज्य बिहार के साथ समन्वय बनाते हुए एक टीम सुल्तानगंज भी भेजने की योजना बना रखी है, जो वहां से चलनेवाले कांवरियों पर नजर रखेगी. मेला में एंटी टेररिस्ट स्क्वॉड, बम डिस्पोजल टीम, डॉग स्क्वॉड की सेवाएं भी ली जाती हैं. मंदिर परिसर की सुरक्षा के लिए सभी प्रवेश द्वार पर मेटल डिटेक्टर लगाए जाते हैं. मंदिर परिसर में किसी तरह का बैग या अन्य सामान ले जाने की अनुमति नहीं होती है. इंट्रीगेटेड पुलिस कंट्रोल रूम से चौबीस घंटे चप्पे-चप्पे पर कड़ी नजर रखी जाती है.
मेले में शिवभक्तों की सेवा के लिए स्वयंसेवी संस्थाएं भी बढ़चढ़ कर हिस्सा लेती हैं. श्रद्धालुओं की सुविधा के लिए कांवरिया पथ में बालू बिछाया जाता है ताकि पथरीले रास्तों की वजह से पैर में पड़े छालों को थोड़ी राहत मिल सके. कांवरिया पथ पर जगह-जगह शौचालय स्नानागार और इंद्र वर्षा की व्यवस्था की जाती है. शिविरों में ठहरने वाले भक्तों के मनोरंजन के लिए सांस्कृतिक कार्यक्रम की व्यवस्था भी की जाती है. समय के अनुसार यहां की व्यवस्थाएं भी बदल रही हैं और अब एलईडी स्क्रीन के जरिए कांवरियों को अपडेट दिया जाता है. सावन मेले में करीब दो हजार मोबाइल बायो टॉयलेट की व्यवस्था की जाती है.