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श्रवणी माह में भी त्रिकुट पर्वत है वीरान, भुखमरी की कगार पर आश्रित परिवार - लॉकडाउन के दौरान श्रावणी मेला

श्रवणी माह में गुलजार रहने वाला देवघर का त्रिकुट पर्वत इस कोरोना काल में वीरान पड़ा है. जहां सावन महीने में करोड़ों का कारोबार होता था वहां आज सभी दुकाने बंद पड़ी हैं. हालत ये है कि त्रिकुट पर्वत पर आश्रित भुखमरी की कगार पर आ गए हैं.

Trikut Mountain in Shravani month in deoghar
त्रिकुट पर्वत देवघर
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Published : Jul 18, 2020, 9:02 PM IST

देवघर: श्रवणी माह में त्रिकुट पर्वत पर श्रद्धालुओं की भीड़ से केसरियामय रहता था. लेकिन इस बार यहां बिल्कुल वीरानी छाई है. रावण की तपोभूमि कहे जाने वाला त्रिकुट पर्वत से अपनी आजीविका चला रहे सैकड़ों परिवार आज भुखमरी की कगार पर हैं. त्रिकुट पर्वत शहर से लगभग 17 किलोमीटर दूर जहां झारखंड का सबसे ऊंचा और एकलौता रोपवे है. ऐसी मान्यता है कि यहां रावण ने शिव की तपस्या की थी, जिसका जीता प्रमाण आज भी है. उसे देख सैलानी या श्रद्धालु बड़ी संख्या में पहुंचते थे.

त्रिकुट पर्वत से संवाददाता संतोष रमानी की रिपोर्ट

कोरोना संक्रमण के कारण श्रवणी मेला नहीं लगा जिससे स्थानीय लोगों में काफी निराशा है. श्रद्धालुओं से गुलजार रहने वाला त्रिकुट पर्वत आज बिल्कुल वीरान है. त्रिकुट पर्वत पर आश्रित सैकड़ों दुकानदार और पहाड़ की हर चोटी पर सैर करने वाले गाइड आज भुखमरी की कगार पर हैं. एक उम्मीद श्रवणी मेला थी जिससे साल भर की रोजी-रोटी की व्यवस्था करते थे, लेकिन इस बार उनकी उम्मीद पर भी पानी फिर गया है. अब बस सरकार उम्मीद रह गई है.

ये भी पढ़ें- कोल डंप में वर्चस्व को लेकर विधायक और पूर्व विधायक समर्थकों के बीच खूनी संघर्ष

बहरहाल, त्रिकुट पर्वत पर श्रद्धालु रोपवे के साथ-साथ प्राकृतिक छटाओं का आनंद लेते थे. चहलकदमी करते बंदरों की अटखेलिया देख काफी रोमांचित हो उठते थे. मगर कोरोना वायरस ने सभी पर पानी फेर दिया है. जिससे पूरा त्रिकुट पर्वत में सन्नाटा पसरा हुआ है.

देवघर: श्रवणी माह में त्रिकुट पर्वत पर श्रद्धालुओं की भीड़ से केसरियामय रहता था. लेकिन इस बार यहां बिल्कुल वीरानी छाई है. रावण की तपोभूमि कहे जाने वाला त्रिकुट पर्वत से अपनी आजीविका चला रहे सैकड़ों परिवार आज भुखमरी की कगार पर हैं. त्रिकुट पर्वत शहर से लगभग 17 किलोमीटर दूर जहां झारखंड का सबसे ऊंचा और एकलौता रोपवे है. ऐसी मान्यता है कि यहां रावण ने शिव की तपस्या की थी, जिसका जीता प्रमाण आज भी है. उसे देख सैलानी या श्रद्धालु बड़ी संख्या में पहुंचते थे.

त्रिकुट पर्वत से संवाददाता संतोष रमानी की रिपोर्ट

कोरोना संक्रमण के कारण श्रवणी मेला नहीं लगा जिससे स्थानीय लोगों में काफी निराशा है. श्रद्धालुओं से गुलजार रहने वाला त्रिकुट पर्वत आज बिल्कुल वीरान है. त्रिकुट पर्वत पर आश्रित सैकड़ों दुकानदार और पहाड़ की हर चोटी पर सैर करने वाले गाइड आज भुखमरी की कगार पर हैं. एक उम्मीद श्रवणी मेला थी जिससे साल भर की रोजी-रोटी की व्यवस्था करते थे, लेकिन इस बार उनकी उम्मीद पर भी पानी फिर गया है. अब बस सरकार उम्मीद रह गई है.

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बहरहाल, त्रिकुट पर्वत पर श्रद्धालु रोपवे के साथ-साथ प्राकृतिक छटाओं का आनंद लेते थे. चहलकदमी करते बंदरों की अटखेलिया देख काफी रोमांचित हो उठते थे. मगर कोरोना वायरस ने सभी पर पानी फेर दिया है. जिससे पूरा त्रिकुट पर्वत में सन्नाटा पसरा हुआ है.

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