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सरकार के पास अनाज की कमी नहीं, इस परिवार के पेट में दाना नहीं

गोमिया प्रखंड के ललपनिया पंचायत अंतर्गत अय्यर गांव में सोहराय मांझी और उसकी पत्नी बसंती देवी के घर पिछले 4 दिनों से चुल्हा नहीं जला है. भूख से सोहराय मांझी का पेट सूख गया है, पसली की हड्डियों को गिनी जा सकती हैं, जबकि उसकी पत्नी का हाल बेहाल है.

This family of Gomiya is not getting food
अनाज नहीं
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Published : Apr 7, 2020, 12:26 PM IST

बोकारो: आपदा हमेशा गरीबों के लिए अभिशाप बन कर आती है और कोरोना बीमारी तो वैश्विक महामारी है, जिसके बाद पूरी दुनिया कोरोना से लगातार जंग कर रही है. कोरोना से लड़ने वाले फाइटर्स के समर्थन में दिए जलाकर, थाली बजाकर.

इधर, सरकार दावे कर रही है कि उनके पास पर्याप्त आनाज है. कोई भूखा नहीं रहेगा, लेकिन आज भी कई गरीब के घरों में चूल्हा तक नहीं जल पा रहा है. ऐसा ही एक मामला गोमिया प्रखंड के ललपनिया पंचायत अंतर्गत अय्यर गांव का है. सोहराय मांझी और उसकी पत्नी बसंती देवी के घर पिछले 4 दिनों से चुल्हा नहीं जला है. भूख से सोहराय मांझी का पेट सुख गया है, पसली की हड्डियों को गिना जा सकता है, जबकि उसकी पत्नी का हाल बेहाल है.

ये भी पढे़ं: सांसद फंड निलंबित: राज्यसभा सांसद महेश पोद्दार ने किया स्वागत, कहा- राज्य सरकार भी लें प्रेरणा

अगर कल होके भूख से उसकी मौत हो जाए तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी. सोहराय मांझी के पास किसी भी तरह का राशन कार्ड नहीं है, न उसे पेंशन ही मिलता है. उसके दो बेटे हैं सुगन हांसदा और जितेंद हांसदा. गरीबी के कारण दोनों बाहर काम करते हैं. लॉकडाउन के कारण वे वापस घर नहीं लौट पाए. घर पर दोनों वृद्ध पति-पत्नी रहते हैं. इस महामारी में सम्पन्न लोग दीपोत्सव मना रहे हैं और गरीब जिंदगी और मौत से लड़ रहे हैं.

बोकारो: आपदा हमेशा गरीबों के लिए अभिशाप बन कर आती है और कोरोना बीमारी तो वैश्विक महामारी है, जिसके बाद पूरी दुनिया कोरोना से लगातार जंग कर रही है. कोरोना से लड़ने वाले फाइटर्स के समर्थन में दिए जलाकर, थाली बजाकर.

इधर, सरकार दावे कर रही है कि उनके पास पर्याप्त आनाज है. कोई भूखा नहीं रहेगा, लेकिन आज भी कई गरीब के घरों में चूल्हा तक नहीं जल पा रहा है. ऐसा ही एक मामला गोमिया प्रखंड के ललपनिया पंचायत अंतर्गत अय्यर गांव का है. सोहराय मांझी और उसकी पत्नी बसंती देवी के घर पिछले 4 दिनों से चुल्हा नहीं जला है. भूख से सोहराय मांझी का पेट सुख गया है, पसली की हड्डियों को गिना जा सकता है, जबकि उसकी पत्नी का हाल बेहाल है.

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अगर कल होके भूख से उसकी मौत हो जाए तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी. सोहराय मांझी के पास किसी भी तरह का राशन कार्ड नहीं है, न उसे पेंशन ही मिलता है. उसके दो बेटे हैं सुगन हांसदा और जितेंद हांसदा. गरीबी के कारण दोनों बाहर काम करते हैं. लॉकडाउन के कारण वे वापस घर नहीं लौट पाए. घर पर दोनों वृद्ध पति-पत्नी रहते हैं. इस महामारी में सम्पन्न लोग दीपोत्सव मना रहे हैं और गरीब जिंदगी और मौत से लड़ रहे हैं.

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