बोकारोः किचन से निकलने वाला कचरा अक्सर कूड़े में ही समा जाता है. इसका निस्तारण नहीं होने से काफी परेशानी होती है. लेकिन रसोई घर से निकलने वाले कचरे को सही तरीके से इस्तेमाल किया जा सके तो इससे काफी फायदेमंद चीजें बनाई जा सकती है. इस दिशा में बोकारो स्टील प्लान कैंटीन ने पहल की है.
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बोकारो स्टील प्लांट (Bokaro Steel Plant) अपने कैंटीन से निकलने वाले सब्जियों, चाय पत्ती समेत कई तरह के कूड़ों का इस्तेमाल कुकिंग गैस बनाने के लिए कर रहा है. एक महीने पहले तक बीएसएल प्लांट के कैंटीन में बचा हुआ खाद्य पदार्थ (kitchen waste of Bokaro Steel Plant Canteen) कचरा और बदबूदार ढेर के अलावा कुछ भी नहीं था. लेकिन अब इन बचे हुए खाद्य पदार्थों का उपयोग बायोगैस के उत्पादन के लिए किया जा रहा है.
32 लाख खर्च कर बोकारो स्टील प्लांट में बायोगैस का प्लांट (Biogas Plant at Bokaro Steel Plant) ईडी वर्क्स बिल्डिंग के पास लगाया है. यहां से उत्पादित बायोगैस को पाइप लाइन के माध्यम से ईडी वर्क्स बिल्डिंग में अवस्थित कैंटीन में ले जाया गया है. जहां इसी बायोगैस का इस्तेमाल कर खाना बनाया रहा है. इसके लिए बीएसएल के पर्यावरण नियंत्रण विभाग ने पुणे की एक अपशिष्ट प्रबंधन कंपनी के साथ भागीदारी की है. इस प्राइवेट कंपनी में एक डाइजेस्टर लगाया है जो जैविक कचरे को बायोगैस में बदल देता है.
बोकारो स्टील प्लांट के संचार प्रमुख मणिकांत धान ने बताया कि कैंटीन कचरे के सदुपयोग और ऊर्जा संरक्षण की दिशा में यह बोकारो स्टील प्लांट का एक अनूठा प्रयास है. इस प्रक्रिया के अंतर्गत प्लांट के अंदर बायोगैस जनरेटर स्थापित किया गया है. मणिकांत धान ने बताया कि बीएसएल ने पुणे स्थित कंपनी से इस प्लांट को चलाने के लिए 2 साल का अनुबंध किया है. बीएसएल प्लांट की कैंटीन से रोजाना 700 से 1000 किलोग्राम कचरा निकलता है. बीएसएल के बायोगैस प्लांट की क्षमता 500 किलोग्राम प्रति दिन है. रोजाना 40 क्यूबिक मीटर बायोगैस का उत्पादन यह प्लांट करती है जो एलपीजी के दो सिलेंडर के बराबर है.