लातेहार: भारत सरकार ने प्राधिकार अधिनियम बनाकर वन भूमि के सहारे जीवन यापन करने वाले लोगों को जीने की नई उम्मीद दी है. लेकिन प्रशासनिक झमेले में फंसकर कई गरीबों को इस योजना का लाभ नहीं मिल पा रहा. इस कानून का लाभ सभी लाभुकों को दिलवाने को लेकर बुधवार को ग्रामीणों ने धरना दिया.
दरअसल, भारत सरकार ने वन अधिकार अधिनियम 2006 को लागू कर वैसे आदिवासी परिवार जो वन भूमि पर 2005 से पहले कब्जा कर अपना जीवन यापन कर रहे थे, उन्हें उक्त वन भूमि का अधिकार देने का नियम बना दिया था. इस योजना के लाभ के लिए ग्राम स्तर पर ग्रामसभा कर उचित लाभुकों का नाम वनाधिकार समिति के पास भेजना था. लेकिन नाम भेजने के बाद कई लाभुकों के दावे को वन अधिकार समिति ने निरस्त कर दिया.
सरकार ने आदेश जारी किया है कि जिन लाभुकों के दावों को समिति ने रद्द किया है उनसे वन भूमि मुक्त कराई जाए और वहां वृक्षारोपण किया जाए. इस संबंध में धरना का नेतृत्व कर रहे वनाधिकार विशेषज्ञ फादर मनी पल्ली ने कहा कि वन अधिकार अधिनियम स्पष्ट है कि ग्रामसभा ही किसी के दावे को स्वीकृत और निरस्त कर सकती है. ऐसे में जिला स्तरीय समिति के द्वारा बिना ग्राम सभा के अनुमति के किसी के दावे को रद्द कर देना सरासर गलत है. इसी मामले को लेकर धरना दिया जा रहा है और जरूरत पड़ने पर आंदोलन तेज किया जाएगा.