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IG सुमन गुप्ता की रिपोर्ट में खुलासा, झूठी वाहवाही के लिए चार निर्दोष को भेजा गया जेल

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Published : Mar 15, 2019, 8:10 AM IST

सीआईडी और रेल पुलिस ने अपनी झूठी वाहवाही को बटोरने के लिए मानव तस्करी के केस में चार निर्दोष लोगों को फंसा कर सलाखों के पीछे पहुंचा दिया, जबकि चारों का मानव तस्करों से कोई संबंध तक नहीं था. इन चारों को 6 माह तक बेकसूर होते हुए भी जेल मे रहना पड़ा. रेल आईजी सुमन गुप्ता की समीक्षा रिपोर्ट में इस मामले का खुलासा हुआ है.

फाइल फोटो आईजी सुमन गुप्ता

रांची: सीआईडी और रेल पुलिस ने अपनी झूठी वाहवाही को बटोरने के लिए मानव तस्करी के केस में चार निर्दोष लोगों को फंसा कर सलाखों के पीछे पहुंचा दिया, जबकि चारों का मानव तस्करों से कोई संबंध तक नहीं था. इन चारों को 6 माह तक बेकसूर होते हुए भी जेल मे रहना पड़ा. रेल आईजी सुमन गुप्ता की समीक्षा रिपोर्ट में इस मामले का खुलासा हुआ है.

Sentenced to four innocent in ranchi
फाइल फोटो आईजी सुमन गुप्ता


रेल आईजी ने रिपोर्ट की कॉपी डीजीपी डीके पांडे, एडीजी रेल प्रशांत सिंह और एडीजी सीआईडी अजय कुमार सिंह को भेज दी है. रेल आईजी ने अपनी रिपोर्ट में बड़े ही कड़े शब्दों में यह लिखा है कि सीआईडी के पदाधिकारियों की अनुभव हीनता मनमानी और दूरदर्शिता और झूठी वाहवाही के कारण निर्दोष व्यक्तियों को कई महीनों तक जेल में रहना पड़ा है. ऐसे में जो लोग इस मामले में दोषी हैं उन पर अनुशासनात्मक कार्रवाई की जाए.


अनुशासनात्मक कार्रवाई करने की सिफारिश
रेल आईजी के अनुसार एसपी और डीएसपी से इस मामले को लेकर प्रतिवेदन की मांग की गई थी, लेकिन साल भर में उन्होंने कोई प्रतिवेदन नहीं दिया. ऐसे में रेल आईजी ने डीजीपी से दोनों पर अधिकारियों के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई करने की सिफारिश की है.


क्या है पूरा मामला
22 जून 2017 को रांची रेलवे स्टेशन पर मानव तस्करी की सूचना मिलने के बाद सीआईडी के डीएसपी केके राय, इंस्पेक्टर मोहम्मद निहाल, सीआईडी प्रभारी उमेश ठाकुर रेल थाना पहुंचे थे. आधी रात के करीब लड़के लड़कियों को रेस्क्यू के नाम पर पकड़ा गया. पुलिस ने 5 लड़कियों को नाबालिग बताते हुए मामला दर्ज किया था, लेकिन पुलिस ने किसी का भी मेडिकल नहीं कराया. आईजी की रिपोर्ट में इस बात का जिक्र है कि किसी भी पीड़िता के पास दिल्ली या तमिलनाडु का टिकट नहीं था. सभी को स्टेशन के अंदर एक काउंटर के सामने स्थित हॉल से पकड़ा गया था.


मामले में नहीं किया गया केस
इस मामले में सीआईडी के अफसरों ने खुद केस नहीं किया बल्कि अगले दिन एक एनजीओ के प्रतिनिधि से केस करवाया था. एसपी ने केस को सही बताया था. आईजी ने झूठ बताया था. इस केस का अनुसंधान रेल थाना प्रभारी अनिल कुमार सिंह के द्वारा किया गया था. अनुसंधान की डायरी के आधार पर तत्कालीन रेल एसपी अंशुमान कुमार ने मामले को सत्य करार दिया था, लेकिन जब आईजी ने केस की समीक्षा की तो केस में कई गड़बड़ियां पाई गई. उसमें रेलवे स्टेशन से रेस्क्यू की गई लड़कियों ने 164 में पुलिस को दिए बयान से अपना बयान अलग दिया था. बयान में लड़कियों ने साफ कहा था कि उनका मानव तस्करी से कोई लेना देना नहीं है. इसके अनुसंधानकर्ता अनिल कुमार सिंह को पहले ही आईजी के द्वारा निलंबित किया जा चुका है.

रांची: सीआईडी और रेल पुलिस ने अपनी झूठी वाहवाही को बटोरने के लिए मानव तस्करी के केस में चार निर्दोष लोगों को फंसा कर सलाखों के पीछे पहुंचा दिया, जबकि चारों का मानव तस्करों से कोई संबंध तक नहीं था. इन चारों को 6 माह तक बेकसूर होते हुए भी जेल मे रहना पड़ा. रेल आईजी सुमन गुप्ता की समीक्षा रिपोर्ट में इस मामले का खुलासा हुआ है.

Sentenced to four innocent in ranchi
फाइल फोटो आईजी सुमन गुप्ता


रेल आईजी ने रिपोर्ट की कॉपी डीजीपी डीके पांडे, एडीजी रेल प्रशांत सिंह और एडीजी सीआईडी अजय कुमार सिंह को भेज दी है. रेल आईजी ने अपनी रिपोर्ट में बड़े ही कड़े शब्दों में यह लिखा है कि सीआईडी के पदाधिकारियों की अनुभव हीनता मनमानी और दूरदर्शिता और झूठी वाहवाही के कारण निर्दोष व्यक्तियों को कई महीनों तक जेल में रहना पड़ा है. ऐसे में जो लोग इस मामले में दोषी हैं उन पर अनुशासनात्मक कार्रवाई की जाए.


अनुशासनात्मक कार्रवाई करने की सिफारिश
रेल आईजी के अनुसार एसपी और डीएसपी से इस मामले को लेकर प्रतिवेदन की मांग की गई थी, लेकिन साल भर में उन्होंने कोई प्रतिवेदन नहीं दिया. ऐसे में रेल आईजी ने डीजीपी से दोनों पर अधिकारियों के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई करने की सिफारिश की है.


क्या है पूरा मामला
22 जून 2017 को रांची रेलवे स्टेशन पर मानव तस्करी की सूचना मिलने के बाद सीआईडी के डीएसपी केके राय, इंस्पेक्टर मोहम्मद निहाल, सीआईडी प्रभारी उमेश ठाकुर रेल थाना पहुंचे थे. आधी रात के करीब लड़के लड़कियों को रेस्क्यू के नाम पर पकड़ा गया. पुलिस ने 5 लड़कियों को नाबालिग बताते हुए मामला दर्ज किया था, लेकिन पुलिस ने किसी का भी मेडिकल नहीं कराया. आईजी की रिपोर्ट में इस बात का जिक्र है कि किसी भी पीड़िता के पास दिल्ली या तमिलनाडु का टिकट नहीं था. सभी को स्टेशन के अंदर एक काउंटर के सामने स्थित हॉल से पकड़ा गया था.


मामले में नहीं किया गया केस
इस मामले में सीआईडी के अफसरों ने खुद केस नहीं किया बल्कि अगले दिन एक एनजीओ के प्रतिनिधि से केस करवाया था. एसपी ने केस को सही बताया था. आईजी ने झूठ बताया था. इस केस का अनुसंधान रेल थाना प्रभारी अनिल कुमार सिंह के द्वारा किया गया था. अनुसंधान की डायरी के आधार पर तत्कालीन रेल एसपी अंशुमान कुमार ने मामले को सत्य करार दिया था, लेकिन जब आईजी ने केस की समीक्षा की तो केस में कई गड़बड़ियां पाई गई. उसमें रेलवे स्टेशन से रेस्क्यू की गई लड़कियों ने 164 में पुलिस को दिए बयान से अपना बयान अलग दिया था. बयान में लड़कियों ने साफ कहा था कि उनका मानव तस्करी से कोई लेना देना नहीं है. इसके अनुसंधानकर्ता अनिल कुमार सिंह को पहले ही आईजी के द्वारा निलंबित किया जा चुका है.

Intro:सीआईडी और रेल पुलिस ने अपनी झूठी वाहवाही को बटोरने के लिए मानव तस्करी के केस में चार निर्दोष लोगों को फंसा कर सलाखों के पीछे पहुंचा दिया था। जबकि चारों का मानव तस्करों से कोई संबंध तक नहीं था। चारों को 6 माह तक बेकसूर होते हुए भी जेल मे रहना पड़ा। रेल आईजी सुमन गुप्ता की समीक्षा रिपोर्ट में इस मामले का खुलासा हुआ है। रेला आईजी ने रिपोर्ट की कॉपी डीजीपी डी के पांडे , एडीजी रेल प्रशांत सिंह और एडीजी सीआईडी अजय कुमार सिंह को भेज दी है। क्या है रिपोर्ट में रेल आईजी ने अपनी रिपोर्ट में बड़े ही कड़े शब्दों में यह लिखा है कि सीआईडी के पदाधिकारियों की अनुभव हीनता मनमानी और दूरदर्शिता और झूठी वाहवाही के कारण निर्दोष व्यक्तियों को कई महीनों तक जेल में रहना पड़ा है ऐसे में जो लोग इस मामले में दोषी हैं उन पर अनुशासनात्मक कार्रवाई की जाए। रेड आई जी के अनुसार अनुसंधानकर्ता की झूठी केस दैनिकी के आधार पर तत्कालीन रेल एसपी अंशुमान कुमार और डीएसपी क्रिस्टोफर क्रिकेटर ने केस्को सत्य करार दिया था। यहां तक कि एसपी और डीएसपी से इस मामले को लेकर प्रतिवेदन की मांग की गई थी लेकिन साल भर में उन्होंने कोई प्रतिवेदन नहीं दिया ऐसे में रेल आई जी ने डीजीपी से दोनों पर अधिकारियों के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई करने की सिफारिश की है। क्या है पूरा मामला 22 जून 2017 को रांची रेलवे स्टेशन पर मानव तस्करी की सूचना मिलने के बाद सीआईडी के डीएसपी केके राय ,इंस्पेक्टर मोहम्मद निहाल, सीआईडी प्रभारी उमेश ठाकुर रेल थाना पहुंचे थे। आधी रात के करीब लड़के लड़कियों को रेस्क्यू के नाम पर पकड़ा गया ।पुलिस ने 5 लड़कियों को नाबालिग बताते हुए मामला दर्ज किया था ,लेकिन पुलिस ने किसी का भी मेडिकल नहीं कराया ।आईजी की रिपोर्ट में इस बात का जिक्र है कि किसी भी पीड़िता के पास दिल्ली या तमिलनाडु का टिकट नहीं था। सभी को स्टेशन के अंदर एक काउंटर के सामने स्थित हॉल से पकड़ा गया था ।इस मामले में सीआईडी के अफसरों ने खुद केस नहीं किया ,बल्कि अगले दिन एक एनजीओ के प्रतिनिधि से केस करवाया था। एसपी ने केस को बताया था सही , आईजी ने बताया झूठ का पुलिंदा इस केस का अनुसंधान रेल थाना प्रभारी अनिल कुमार सिंह के द्वारा किया गया था ।अनुसंधान की डायरी के आधार पर तत्कालीन रेल एसपी अंशुमान कुमार ने मामले को सत्य करार दिया था ।लेकिन जब आईजी ने केस की समीक्षा की तो केस में कई गड़बड़ियां पाई गई। उसमें रेलवे स्टेशन से रेस्क्यू की गई लड़कियों ने 164 में पुलिस को दिए बयान से अपना बयान अलग दिया था। बयान में लड़कियों ने साफ कहा था कि उनका मानव तस्करी से कोई लेना देना नहीं है। इसके इसके अनुसंधान अत अनिल कुमार सिंह को पूर्व में ही आई जी के द्वारा निलंबित किया जा चुका है। फाइल फोटो आईजी सुमन गुप्ता।


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