धनबाद: कोयलांचल धनबाद के सबसे बड़े अस्पताल पीएमसीएच मेडिकल कॉलेज और अस्पताल का नाम आज लगभग 5 दशक के बाद बदल गया है. आज से इस अस्पताल को शहीद निर्मल महतो मेडिकल कॉलेज और अस्पताल के नाम से जाना जाएगा.
आपको बता दें कि 1969 में धनबाद में पाटलिपुत्र मेडिकल कॉलेज और अस्पताल का निर्माण हुआ था. लेकिन आज 17 सितंबर 2020 को पीएमसीएच का नाम शहीद निर्मल महतो के नाम पर रख दिया गया है. आज से धनबाद के सबसे बड़े अस्पताल पीएमसीएच को शहीद निर्मल महतो के नाम से जाना जाएगा.पीएमसीएच प्रबंधन को झारखंड सरकार का पत्र मिल चुका है और पीएमसीएच प्रबंधन के अनुसार पीएमसीएच का नाम भी बदल चुका है. जल्द ही नया नाम अस्पताल और मेडिकल कॉलेज के बोर्ड पर दिखने लगेगा. हालांकि,आज तक ऐसा कोई भी बोर्ड पीएमसीएच अस्पताल में देखने को नहीं मिला है. सारी औपचारिकता पूरी करने के बाद सरकार ने पीएमसीएच प्रबंधन को नाम परिवर्तन करने का आदेश भेजा है. इस आदेश के मिलने के साथ ही कार्यालय कार्यों में पाटलिपुत्र मेडिकल कॉलेज यानी कि पीएमसीएच की जगह अब शहीद निर्मल महतो मेडिकल कॉलेज का इस्तेमाल किया जाने लगा है. लेकिन, अभी भी बोर्ड पर शहीद निर्मल महतो का नाम अब तक नहीं दिख रहा है.
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बता दें कि बुधवार को ही सरकार की ओर से आदेश पत्र पीएमसीएच प्रबंधन को मिल चुका है. अब बहुत ही जल्द अस्पताल के बोर्ड में भी शहीद निर्मल महतो का नाम आने वाले दिनों में देखा जाएगा. लगभग 5 दशक के बाद झारखंड धनबाद के पीएमसीएच अस्पताल के नाम का बदलाव हो रहा है. यह आदेश झारखंड कि झामुमो सरकार ने दिया है. अस्पताल का नाम बदले जाने को लेकर भाजपा और वर्तमान सरकार में विरोध भी देखने को मिला लेकिन यह नाम आखिरकार बदल ही गया.
झारखंड को अलग राज्य बनाने के लिए अपना महत्वपूर्ण योगदान देने वाले और अपने जीवन का बलिदान देने वाले सच्चे और वीर सपूत निर्मल महतो का जन्म पूर्वी सिंहभूम जिलान्तर्गत उलियान नामक गांव में 25 दिसंबर 1950 को हुआ था. इनके पिता का नाम जगबंधु महतो और मां का नाम प्रिया महतो था. निर्मल की छात्र जीवन से ही राजनीति में रूचि थी. अपना राजनीतिक जीवन उन्होंने झारखंड पार्टी से शुरू किया और एक जुझारू नेता के रूप में अपने आप को स्थापित किया.
इसके बाद 1983 को धनबाद में झामुमो का प्रथम केंद्रीय महाधिवेशन हुआ, उसी समय उन्हें केंद्रीय कार्यकारिणी समिति का सदस्य चुन लिया गया. 06 अप्रैल 1984 को बोकारो में झामुमो की केंद्रीय समिति की बैठक हुई, जिसमें सर्वसम्मति से निर्मल महतो को अध्यक्ष चुना गया. हालांकि, निर्मल एक अच्छे नेता के रूप में उभर रहे थे, उनकी कर्मठता और अलग राज्य निर्माण की चाहत के कारण वे राजनीतिक षडयंत्र का शिकार हो गए और उनकी हत्या कर दी गई.