पलामूः रक्षा बंधन के मौके पर बहन अपने भाइयों को कलाई पर राखी बांध रहीं हैं और उनकी लंबी उम्र की कामना कर रही हैं. लेकिन एक ऐसा शख्स भी हैं जो 46 साल से लगातार पर्यावरण को बचाने के मुहिम में जुटा है और पेड़ों को रक्षा सूत्र बांध रहा है. उन्होंने अब तक भारत समेत पांच देशों में 20 लाख से अधिक पेड़ों को रक्षा सूत्र (राखी) बांधे हैं.
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ये शख्स हैं, पलामू जिला में छतरपुर थाना क्षेत्र के रहने वाले कौशल किशोर जायसवाल. कौशल किशोर जायसवाल वनराखी मूवमेंट के प्रणेता हैं. वह अपने इस संकल्प से पर्यावरण को बचाने की मुहिम में जुटे हुए हैं. वे भारत के 102 जिलों के साथ-साथ नेपाल, भूटान, मलेशिया और सिंगापुर में लाखों पेड़ों को रक्षा सूत्र में बांध चुके हैं. इसके अलावा उन्होंने लोगों को पर्यावरण बचाने के लिए शपथ भी दिलवाई है.
अकाल ने मन को झकझोरा: 1966 में पलामू का इलाका भीषण अकाल की चपेट में आ गया था. इसकी कहानियां आज भी लोगों की जुबान पर है. कौशल किशोर जायसवाल बताते हैं कि उस दौरान वे बाल्य अवस्था में थे. उनके माता पिता बातचीत के दौरान यह कह रहे थे कि जंगल के कटने के कारण अकाल पड़ा है और बारिश कम हो रही है. यही बात उनके बाल मन में घर कर गई थी.
कुछ वर्ष बाद उन्होंने अपने गांव में करीब नौ एकड़ में पेड़ लगाए. लेकिन कुछ लोगों ने पेड़ों को काटना शुरू कर दिया. जिसके बाद उन्होंने पेड़ों को बचाने के लिए एक मुहिम शुरू की. स्थानीय महिला और ग्रामीणों को एकजुट कर पेड़ों को राखी बांधने का अभियान शुरू किया. कौशल किशोर जायसवाल बताते हैं कि वह वक्त 1977 का था, जब उन्होंने पलामू की धरती से वनराखी मूवमेंट की शुरुआत हुई थी. वे बताते हैं कि पेड़ों को रक्षा सूत्र में बांधने के लिए कई बार ग्रामीणों को समझाने के लिए मेहनत करनी पड़ती है. लेकिन उनकी मेहनत ने असर दिखाया और आज सैकड़ों ग्रामीण इस अभियान का हिस्सा हैं और पर्यावरण को बचाने के मुहिम में जुटे हैं.
पर्यावरण धर्म मंदिर की स्थापनाः वनरखी मूवमेंट के प्रणेता कौशल किशोर जायसवाल ने विश्व व्यापी पर्यावरण संरक्षण अभियान की भी शुरूआत की. इस कड़ी में कौशल किशोर जायसवाल भारत समेत कई देशों में 50 लाख से भी अधिक पौधों का वितरण कर चुके हैं. सीबीएसई और आईसीएसई ने क्लास छह के अंग्रेजी के पाठ्यक्रम में कौशल किशोर जायसवाल को शामिल किया है. कौशल किशोर जायसवाल ने पलामू के छतरपुर के डाली में पर्यावरण धर्म मंदिर की स्थापना की है. इस मंदिर की करीब पांच एकड़ जमीन पर 110 देशों के पेड़ पौधों की प्रजातियां लगायी गई हैं. इनमें से करीब तीन दर्जन से अधिक दुर्लभ प्रजाति के पौधे शामिल हैं.