नई दिल्ली: चीन की ओर से प्रस्तावित सेना हटाने की चरणों वाली योजना से सहमत होने पर भारत को और अधिक नुकसान उठाना पड़ेगा. पूर्वी लद्दाख के चुशूल में शुक्रवार (6 नवंबर) को कोर-कमांडर स्तर की वार्ता के 8वें दौर में चीन की ओर से यह प्रस्ताव पेश किया गया है. कई उच्च पदस्थ सूत्रों ने ईटीवी भारत को बताया कि प्रस्तावों पर अभी विचार किया जा रहा है और अंतिम निर्णय लिया जाना बाकी है.
पहला चरण
पहले चरण में टैंक और बख्तरबंद जवानों को एक ही दिन के भीतर अग्रिम मोर्चों से वापस बुलाने का प्रस्ताव है, जहां उन्हें पहले तैनात किया गया था. इसमें मुख्य रूप से गलवान घाटी, पैंगोंग त्सो के दक्षिणी तट और स्पैंगुर गैप के मोर्चे शामिल हैं. इन मोर्चों पर भारत ने मुख्य रूप से टी -72 और टी -90 टैंक और पैदल सेना के बीएमपी II लड़ाकू वाहन हैं, जबकि चीन के हल्के तरह के 15 टैंक और डोंगफेंग मेंगशी वाहन शामिल हैं. यदि भारत ने गलवान घाटी से इन भारी सैन्य उपकरणों को वापस ले लिया, तो उन लोगों की तुलना में भारत के लिए अधिक मुश्किल हो जाएगी. ऐसा इस वजह से कि भारत को यदि वहां फिर तैनाती की जरूरत पड़ी, तो चीन की तरह उसके पास बेहतर सड़क की सुविधा नहीं है.
भारी वाहनों को निकालना नहीं होगा आसान
चीन की तरफ से वहां पहुंचना आसान है, इसलिए वह कम समय में फिर से सैनिकों की तैनाती कर सकता है. 15 जून की घटना के बाद अचानक पानी बढ़ने से कई भारतीय और चीनी वाहन संकरी गलवान घाटी में फंस गए थे. पैंगोंग झील और स्पैंगुर गैप के दक्षिण तट पर चीन के तैनात भारी सैन्य संपत्तियों को ऊंचाइयों पर स्थित भारतीय मोर्चों ने घेर रखा है. इस वजह से चीन बक्से में बंद जैसी स्थिति में रहने के बजाय, ऐसी सैन्य संपत्तियों को वापस लौटाने के तरीके खोजेगा. इसके अलावा ऐसे कठिन क्षेत्रों से दोनों पक्षों के लिए अपने टैंकों और भारी वाहनों को केवल एक ही दिन में निकालना आसान नहीं होगा.
दूसरा चरण
दूसरे चरण के रूप में चीन ने पैंगोंग त्सो के उत्तरी तटों से दोनों तरफ से तीन दिन तक हर दिन तक करीब 30 फीसद सैनिकों की वापस बुलाने का प्रस्ताव दिया है. इस तरह की वापसी से भारत को फिंगर 3 और 4 के बीच धन सिंह थापा पोस्ट पर वापस लौटना पड़ेगा, जबकि चीन वापस फिंगर 8 से भी पीछे चला जाएगा. ऐसा होने पर उन क्षेत्रों को लेकर एक बड़ा सवाल बना रहेगा, जहां दोनों पक्षों ने गश्त की थी. भारत ने फिंगर 8 तक और चीन ने फिंगर 4 तक गश्त की थी. चीन के सैनिक बेहतरीन सड़क पर वाहनों से अपने आखिरी छोर तक गश्त करते थे, जबकि भारतीय जवान पैदल गश्त करते थे.
निर्जन भूमि की तरह छोड़ दिया जाए
परस्पर वापसी का अर्थ यह होगा कि फिंगर 4 से फिंगर 8 के बीच के क्षेत्र को बफर जोन रखा जाए, यानी एक तरह से निर्जन भूमि के रूप में छोड़ दिया जाए. भारत के नजरिए से यह अप्रैल-मई की स्थिति को स्वीकार करने जैसा है, लेकिन ज्यादा महत्वपूर्ण बात यह है कि इसका मतलब होगा कि भारत ने हाल ही में जिन ऊंचाइयों पर अपनी चौकियां स्थापित की हैं उन्हें छोड़ देगा. भारतीय सेना वहां से फिंगर 4 रिज लाइन पर नजर रखती है, जहां चीन ने आपनी चौकियां स्थापित कर रखी हैं.
तीसरा कदम
तीसरे चरण में पैंगोंग झील क्षेत्र के दक्षिणी किनारे के सामने के इलाके से पीछे हटना शामिल है. इस इलाके में चुशूल और रेजांग ला क्षेत्र के आस-पास की ऊंचाई और क्षेत्र शामिल हैं. यह भारत का सामरिक मास्टरस्ट्रोक था जब 29-30 अगस्त की रात दक्षिणी पैंगोंग त्सो तट पर ऊंचाई वाली चौकियों पर कब्जा करने के लिए स्पेशल फ्रंटियर फोर्स (एसएफएफ) के जवानों ने चीन की पीपुल्ल लिबरेशन आर्मी (पीएलए) को हराया. वहां से भारतीय सेना अब चीन की सैन्य गतिविधियों पर नजर रखती है. इन मोर्चों को छोड़ना एक सामरिक मूर्खता होगी.
बहुत ज्यादा नहीं हुई प्रगति
6 नवंबर की वार्ता सैन्य कमांडर स्तर की 8वें दौर की वार्ता थी. इससे पहले इस स्तर की बातचीत 6 जून, 22 जून, 30 जून, 14 जुलाई, 2 अगस्त, 21 सितंबर और 12 अक्टूबर को हो चुकी थी. छह महीने की गहन बातचीत के बावजूद सैनिकों की वापसी और तनाव की तीव्रता में कमी को लेकर बहुत प्रगति नहीं हो पाई है. इसका मुख्य कारण भारत-चीन सीमा की जटिल प्रकृति के साथ-साथ वार्ता में भाग लेने वालों को जनादेश की कमी है. इसी वजह से बाद में एक वरिष्ठ राजनयिक को भी शामिल किया गया.
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चौड़ी हुई विश्वास की कमी की खाई
यदि नवीनतम प्रस्तावों पर कुछ सहमति बन जाती है, तो द्वेश के लक्षणों के बावजूद दोनों पक्ष कुछ ठीक करने का काम कर सकते हैं. बफर जोन को लेकर समझौता होना सबसे अच्छा रहेगा. पूर्वी लद्दाख में पिछले छह महीने में तेजी से हुए सैन्यीकरण को समाप्त करके ही इसे हासिल किया जा सकता है. अभी तक दो शक्तियों के बीच एक कामकाजी रिश्ते के लिए सबसे बड़ी बाधा विश्वास की कमी है. अप्रैल-मई के बाद से विश्वास की कमी की ये खाई और चौड़ी हुई है.