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प्रदूषण में भारत दुनिया के चौथे स्थान पर, बच्चों पर मंडरा रहा खतरा

प्रदूषण में हमारा देश दुनिया में चौथे स्थान पर है. इसकी वजह से देश को हर साल 28-30 अरब डॉलर का आर्थिक नुकसान भी उठाना पड़ता है. फेफड़े प्रदूषण की वजह से सिकुड़ गए हैं. प्रदूषण की वजह से समय से पूर्व पैदा होने और वजन कम होने की समस्या तो होती ही है, पैदा होने के बाद भी प्रदूषण से प्रभावित बच्चों के शारीरिक और मानसिक विकास में काफी दिक्कतें होती हैं. अस्थमा का ट्रिगर होता है. बच्चों में एलर्जी के अलावा कैंसर जैसी भी समस्या आने लगती है.

प्रदूषण
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Published : Oct 17, 2021, 12:56 PM IST

नई दिल्ली : प्रदूषण की समस्या धीरे-धीरे बढ़ने लगी है. नवंबर, दिसंबर और जनवरी में प्रदूषण की समस्या दिल्ली में काफी खतरनाक स्थिति तक पहुंच जाती है. ताजा आंकड़े के मुताबिक, दिल्ली में पीएम 2.5 का लेवल 244 है. वहीं, पीएम-10 का लेवल 314 है. धीरे-धीरे ये आंकड़े और बढ़ेंगे. आधे नवंबर के बाद दिल्ली गैस चैंबर में बदलने लगती है, तब सांस लेना काफी मुश्किल हो जाता है. एयर क्वालिटी इंडेक्स पीएम 2.5 का लेवल 100 से कम होना चाहिए, लेकिन नवंबर, दिसंबर और जनवरी में इसका लेवल बढ़कर 400 के पार पहुंच जाता है.

विशेषज्ञ बताते हैं कि विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट के मुताबिक, दिल्ली विश्व की सबसे प्रदूषित राजधानियों में सर्वाधिक प्रदूषित है. प्रदूषण में भारत दुनिया में चौथे स्थान पर है. प्रदूषण की वजह से हर वर्ष 20 लाख लोगों की जान चली जाती है. इसकी वजह से देश को हर साल 28-30 अरब डॉलर का आर्थिक नुकसान भी उठाना पड़ता है. जब यूरोपीय देशों के लोगों के फेफड़ों और भारतीय लोगों के फेफड़ों का तुलनात्मक अध्ययन किया गया तो पाया गया कि भारतीय लोगों के फेफड़े प्रदूषण की वजह से सिकुड़ गए हैं.

दिल्ली प्रदूषण

वरिष्ठ बाल रोग विशेषज्ञ एवं इंडियन मेडिकल एसोसिएशन सेंट्रल दिल्ली के पूर्व अध्यक्ष डॉ. रमेश बंसल बताते हैं कि बच्चों में प्रदूषण का काफी खतरनाक असर होता है. गर्भावस्था से ही बच्चों में यह समस्या आने लगती है. प्रदूषण की वजह से समय से पूर्व पैदा होने और वजन कम होने की समस्या तो होती ही है. पैदा होने के बाद भी प्रदूषण से प्रभावित बच्चों के शारीरिक और मानसिक विकास में काफी दिक्कतें होती है. ऐसे बच्चों में सांस लेने की समस्याएं होती है. अस्थमा का भी ट्रिगर होता है. आमतौर पर बच्चों को बड़ों के मुकाबले अधिक सांस लेने की जरूरत होती है. इसकी वजह से बच्चों के फेफड़े में प्रदूषित हवा ज्यादा जाती है. बच्चों के फेफड़े छोटे होते हैं. ऊपर से प्रदूषित हवा की वजह से और ज्यादा समस्या आ जाती है. बच्चों में एलर्जी के अलावा कैंसर जैसी भी समस्या आने लगती है. ब्लड कैंसर, रेटिनोब्लास्टोमा और ट्यूमर की भी आशंका भी बढ़ जाती है.

पढ़ें : दिल्ली-एनसीआर की हवा हुई जहरीली, गंभीर स्थिति में गाजियाबाद का क्वालिटी इंडेक्स

डॉक्टर बंसल बताते हैं कि जमीन के लेवल पर प्रदूषण की समस्या ज्यादा होती है और बच्चे ज्यादातर जमीन के आसपास ही चलते हैं. इसलिए भी वे प्रदूषण के ज्यादा शिकार होते हैं. हर 10 में से एक बच्चे की मौत प्रदूषण से होती है. बचपन में तो परेशानी होती ही है. जब ऐसे बच्चे बड़े होते हैं, तो उन्हें दिल की समस्या और फेफड़े का कैंसर होने की आशंका अधिक होती है. देखा जाए तो प्रदूषण बच्चों पर एक अभिशाप है.

हालांकि, दिल्ली सरकार प्रदूषण की समस्या को लेकर काफी सतर्क है. इसलिए, इलेक्ट्रिक वाहनों को प्रोत्साहित करने के अलावा और भी कई प्रयास कर रही है. इस बार दिल्ली सरकार प्रदूषण की समस्या को लेकर काफी सख्त है. प्रदूषण फैलाने वाले कारकों के लिए जिम्मेदार लोगों पर 10 हजार रुपये जुर्माना लगाने का फैसला किया गया है. इसके अलावा दिल्ली सरकार 18 अक्टूबर से एक बार फिर रेड लाइट ऑन गाड़ी ऑफ योजना शुरू करने जा रही है, ताकि वाहनों की वजह से प्रदूषण न बढ़ पाए.

नई दिल्ली : प्रदूषण की समस्या धीरे-धीरे बढ़ने लगी है. नवंबर, दिसंबर और जनवरी में प्रदूषण की समस्या दिल्ली में काफी खतरनाक स्थिति तक पहुंच जाती है. ताजा आंकड़े के मुताबिक, दिल्ली में पीएम 2.5 का लेवल 244 है. वहीं, पीएम-10 का लेवल 314 है. धीरे-धीरे ये आंकड़े और बढ़ेंगे. आधे नवंबर के बाद दिल्ली गैस चैंबर में बदलने लगती है, तब सांस लेना काफी मुश्किल हो जाता है. एयर क्वालिटी इंडेक्स पीएम 2.5 का लेवल 100 से कम होना चाहिए, लेकिन नवंबर, दिसंबर और जनवरी में इसका लेवल बढ़कर 400 के पार पहुंच जाता है.

विशेषज्ञ बताते हैं कि विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट के मुताबिक, दिल्ली विश्व की सबसे प्रदूषित राजधानियों में सर्वाधिक प्रदूषित है. प्रदूषण में भारत दुनिया में चौथे स्थान पर है. प्रदूषण की वजह से हर वर्ष 20 लाख लोगों की जान चली जाती है. इसकी वजह से देश को हर साल 28-30 अरब डॉलर का आर्थिक नुकसान भी उठाना पड़ता है. जब यूरोपीय देशों के लोगों के फेफड़ों और भारतीय लोगों के फेफड़ों का तुलनात्मक अध्ययन किया गया तो पाया गया कि भारतीय लोगों के फेफड़े प्रदूषण की वजह से सिकुड़ गए हैं.

दिल्ली प्रदूषण

वरिष्ठ बाल रोग विशेषज्ञ एवं इंडियन मेडिकल एसोसिएशन सेंट्रल दिल्ली के पूर्व अध्यक्ष डॉ. रमेश बंसल बताते हैं कि बच्चों में प्रदूषण का काफी खतरनाक असर होता है. गर्भावस्था से ही बच्चों में यह समस्या आने लगती है. प्रदूषण की वजह से समय से पूर्व पैदा होने और वजन कम होने की समस्या तो होती ही है. पैदा होने के बाद भी प्रदूषण से प्रभावित बच्चों के शारीरिक और मानसिक विकास में काफी दिक्कतें होती है. ऐसे बच्चों में सांस लेने की समस्याएं होती है. अस्थमा का भी ट्रिगर होता है. आमतौर पर बच्चों को बड़ों के मुकाबले अधिक सांस लेने की जरूरत होती है. इसकी वजह से बच्चों के फेफड़े में प्रदूषित हवा ज्यादा जाती है. बच्चों के फेफड़े छोटे होते हैं. ऊपर से प्रदूषित हवा की वजह से और ज्यादा समस्या आ जाती है. बच्चों में एलर्जी के अलावा कैंसर जैसी भी समस्या आने लगती है. ब्लड कैंसर, रेटिनोब्लास्टोमा और ट्यूमर की भी आशंका भी बढ़ जाती है.

पढ़ें : दिल्ली-एनसीआर की हवा हुई जहरीली, गंभीर स्थिति में गाजियाबाद का क्वालिटी इंडेक्स

डॉक्टर बंसल बताते हैं कि जमीन के लेवल पर प्रदूषण की समस्या ज्यादा होती है और बच्चे ज्यादातर जमीन के आसपास ही चलते हैं. इसलिए भी वे प्रदूषण के ज्यादा शिकार होते हैं. हर 10 में से एक बच्चे की मौत प्रदूषण से होती है. बचपन में तो परेशानी होती ही है. जब ऐसे बच्चे बड़े होते हैं, तो उन्हें दिल की समस्या और फेफड़े का कैंसर होने की आशंका अधिक होती है. देखा जाए तो प्रदूषण बच्चों पर एक अभिशाप है.

हालांकि, दिल्ली सरकार प्रदूषण की समस्या को लेकर काफी सतर्क है. इसलिए, इलेक्ट्रिक वाहनों को प्रोत्साहित करने के अलावा और भी कई प्रयास कर रही है. इस बार दिल्ली सरकार प्रदूषण की समस्या को लेकर काफी सख्त है. प्रदूषण फैलाने वाले कारकों के लिए जिम्मेदार लोगों पर 10 हजार रुपये जुर्माना लगाने का फैसला किया गया है. इसके अलावा दिल्ली सरकार 18 अक्टूबर से एक बार फिर रेड लाइट ऑन गाड़ी ऑफ योजना शुरू करने जा रही है, ताकि वाहनों की वजह से प्रदूषण न बढ़ पाए.

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