पटना: छठ महापर्व की शुरुआत 17 नवंबर से हो चुकी है. साल के चार दिन छठी मईया की आराधना की जाती है. पहले दिन नहाय खाय की परंपरा का निर्वहन किया जाता है. वहीं दूसरे दिन खरना या लोहडा होता है. छठ का पर्व सूर्य देव की उपासना के लिए महत्वपूर्ण माना जाता है. आज खरना संपन्न होने के बाद कल यानी कि 19 नवंबर को अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य दिया जाएगा.
खरना का प्रसाद ग्रहण करने के बाद उपवास शुरू: छठ को सूर्य षष्ठी भी कहा जाता है. व्रती संतान की सुख-समृद्धि, लंबी आयु के लिए या फिर कोई मन्नत पूरी हो जाने पर छठ व्रत करते हैं. 36 घंटे अन्न और जल का त्याग किया जाता है. खरना का प्रसाद ग्रहण करने के बाद ये व्रत शुरू हो जाता है.
खरना का मुहूर्त क्या है?: कार्तिक महीने की पंचमी तिथि का दिन खरना कहलाता है. इसे लोहंडा के नाम से भी जाना जाता है. खरना के दिन महिलाएं शाम को मीठा भोजन कर व्रत शुरू करती है. प्रसाद में पूरी और खीर प्रमुख होते हैं. खरना के दिन सुबह 06 बजकर 46 मिनट पर सूर्योदय का समय है. वहीं 05:26 बजे सूर्यास्त होगा. हालांकि अलग-अलग स्थानों में सूर्योदय और सूर्यास्त का समय अलग-अलग हो सकता है.
खरना का महत्व: खरना का मतलब खरा यानी शुद्धता है. नहाए खाए में जहां बाहरी यानी तन की स्वच्छता करते हैं तो खरना में आंतरिक यानी कि मन की शुद्धता पर जोर दिया जाता है. खरना के दिन व्रती शाम के समय चूल्हे पर गुड़ या चीनी की खीर बनाती हैं. साथ ही पूरी बनाई जाती है. छठी मईया को प्रसाद को भोग लगाने के बाद व्रत खरना का प्रसाद ग्रहण करती हैं. इसमें केले और अन्य फलों का सेवन भी किया जाता है. मान्यताओं के अनुसार खरना पूजा के साथ ही छठी मईया घर में प्रवेश कर जाती है.
खरना करने की विधि: खरना पूजा के दिन व्रती सूर्योदय से पहले स्नान कर सबसे पहले सूर्य देवता को अर्घ्य देती हैं. शाम के समय मिट्टी के चूल्हे पर आम की लकड़ी जलाकर उसमें खीर और पूड़ी बनाई जाती है. इस दिन एक ही समय भोजन किया जाता है. प्रसाद सबसे पहले छठी मईया को अर्पण करना चाहिए. उसके बाद व्रती वही भोजन खाती हैं. व्रती के खाने के बाद घर से अन्य सदस्य प्रसाद ग्रहण करें.
क्यों बंद कमरे में होता है खरना?: छठ व्रती बंद कमरे में खरना करती हैं. मान्यताओं के अनुसार खरना के दौरान व्रती को किसी भी तरह की कोई आवाज ना सुनाई दे या किसी तरह की कोई बाधा उत्पन्न ना हो. आवाज सुनाई देने या किसी भी तरह की बाधा उत्पन्न होने पर व्रती खरना का प्रसाद ग्रहण नहीं कर सकते और बिना प्रसाद खाए ही उनका 36 घंटे का निर्जला व्रत शुरू हो जाता है. इस वजह से छठ व्रती शांति और सच्ची श्रद्धा से बंद कमरे में खरना करती हैं.
ये भी पढ़ें:
छठ की बहुत याद आ रही है, 'आना चाहते हैं बिहार लेकिन मजबूरी ने हमें रोक रखा