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फसलों के लिए तैयार है नैनो फर्टिलाइजर, खेती में किसानों को होगा फायदा

किसान आज भी फसलों में फर्टिलाइजर और यूरिया का बेतहाशा उपयोग कर रहे हैं. अगर किसान नैनो टेक्नोलॉजी और नैनो फर्टिलाइजर का उपयोग करें तो इसके कई फायदे होंगे. एक ओर खेती की लागत कम होगी, दूसरी ओर जमीन की उर्वरता बनी रहेगी. फर्टिलाइजर से होने वाले लाभ-हानि के बारे में बता रहे हैं हैदराबाद यूनिवर्सिटी में डिपार्टमेंट ऑफ प्लांट साइंसेज के सीनियर प्रोफेसर डॉ. अप्पा राव पोडिले.

reduce dependence on huge quantities of fertilizers
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Published : Mar 3, 2022, 2:16 PM IST

Updated : Mar 17, 2022, 5:06 PM IST

हैदराबाद : जब देश में हरित क्रांति की शुरुआत हुई तब भारत के किसान धीरे-धीरे खेती के पारंपरिक तरीकों से अलग तकनीकों और उर्वरकों पर निर्भर हो गए. इस बदलाव के कारण देश कई फसलों के उगाने के मामले में आत्मनिर्भर बन गया. मगर इसका दूसरा पहलू यह है कि उर्वरकों के अधिक उपयोग के कारण पर्यावरण को काफी नुकसान हुआ. खासकर देश के अधिकतर राज्यों में खेती योग्य जमीन खराब होती चली गई. अब देश को एवर ग्रीन हरित क्रांति की जरूरत है.

कई वर्षों से भारत सरकार किसानों को सॉयल हेल्थ कार्ड बनाने के लिए जागरूक कर रही है, ताकि उन्हें पता चले कि उन्हें अपनी फसलों के लिए कितना फर्टिलाइजर का उपयोग करना है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मिट्टी की जांच और फर्टिलाइजर के उपयोग के लिए साइंटिस्ट की मदद लेने की अपील की है. मगर हमारे देश के किसान अभी फर्टिलाइजर के उपयोग के लिए वैज्ञानिक की राय से सहमत नहीं हैं.

वैज्ञानिक बताते हैं कि देश में अधिकतर हिस्सों में फर्टिलाइजर के अधिक उपयोग के कारण मिट्टी खराब हो चुकी है. मगर अभी कई ऐसी तकनीकें मौजूद हैं, जिसके उपयोग के कारण नाइट्रोजन और फास्फोरस वाले फर्टिलाइजर पर निर्भरता को कम किया जा सकता है.

जीवन को बनाए रखने के लिए नाइट्रोजन काफी महत्वपूर्ण है. जीवन को चलाने वाले दो अति आवश्यक बॉयोलॉजिकल मोलेक्यूल न्यूक्लिक एसिड और प्रोटीन नाइट्रोजन से बने होते हैं. प्रोटीन को बनाने वाली अमीनो एसिड और न्यूक्लियोटाइड भी अपनी संरचना और काम के लिए नाइट्रोजन पर निर्भर हैं. 75 प्रतिशत से अधिक वायुमंडल नाइट्रोजन गैस से भरा है. मगर सत्य है कि जानवर, पौधे और बैक्टिरिया हवा में मौजूद नाइट्रोजन को अमीनो एसिड और न्यूक्लियोटाइड में नहीं बदल सकते हैं.

कुछ नहीं दिखने वाले बैक्टिरिया नाइट्रोजन को अमोनिया में बदल सकते हैं. इसके अलावा कुछ पौधे भी इस अमोनिया को अमीनो एसिड और न्यूक्लियोटाइड में बदलकर उपयोग कर लेते हैं. केमिस्टों ने हाई टेंपरचर और हाई प्रेशर की मदद से हवा में मौजूद नाइट्रोजन को अमोनिया में कम करने के लिए हैबर प्रोसेस डिवेलप कर लिया. इसका लाभ तो तात्कालिक तौर से मिला मगर यूरिया महंगी हो गई. भारत सरकार फसलों को नाइट्रोजन जैसे पोषक तत्व उपलब्ध कराने वाले फर्टिलाइजर पर सब्सिडी दे रही है.

नाइट्रोजनेज एंजाइम बैक्टिरियल ग्रुप मिट्टी, पानी और पौधों के अंदर नाइट्रोजन के फिक्स करते हैं, ऐसी संरचनाओं को रूट नोड्यूल कहा जाता है. कुछ बैक्टीरिया वायुमंडलीय नाइट्रोजन को अमोनिया में परिवर्तित कर मिट्टी-पानी या पौधों के साथ सिम्बायोटिक नाइट्रोजन फिक्सेशन प्रक्रिया करते हैं. इस तरह यह जैविक फर्टिलाइजर यूरिया और डायमोनियम फॉस्फेट (डीएपी) जैसे सिंथेटिक उर्वरकों पर पौधों की निर्भरता को कम करते हैं. अभी बाजार में ऐसे जैव उर्वरक उपलब्ध हैं. मगर किसान अभी भी जैव उर्वरकों के बजाय केमिकल फर्टिलाइजर का उपयोग करना पसंद करते हैं. केमिकल फर्टिलाइजर के उपयोग से छोटे किसानों की कृषि लागत बढ़ जाती है.

आज के दौर में नैनो टेक्नोलॉजी से खेती की जा सकती है. इसके लिए नैनो फर्टिलाइजर का उपयोग भी किया जा सकता है. इंडियन फर्टिलाइजर इंडियन फार्मर्स फर्टिलाइजर्स कोऑपरेटिव लिमिटेड (इफ्को) ने यूरिया के नैनो लिक्विड फॉर्मूलेशन विकसित किए हैं. इसकी खासियत यह है कि जिन फसलों में एक बैग यूरिया की जरूरत होती है, उसमें एक लीटर नैनो-यूरिया डाला जा सकता है. इसके अलावा इफ्को नैनो-डीएपी और अन्य फर्टिलाइजर के विकल्प पर भी काम कर रही है. इफ्को की ओर से विकसित नैनो-डीएपी की टेस्टिंग की जा रही है. दिलचस्प बात यह है कि भारतीय बाजार में इसे उपलब्ध कराने के लिए वैकल्पिक नैनो-टेक्नोलॉजी का उपयोग किया जा रहा है.

दो दशक पहले भारत सरकार ने जैव प्रौद्योगिकी विभाग ने हाइपर नाइट्रोजन-फिक्सिंग बैक्टीरिया स्ट्रेन के निर्माण के लिए नैशनल नेटवर्क प्रोजेक्ट शुरू किए थे. इसके बाद से ऐसे स्ट्रेन डिजाइन किए गए, जो नाइट्रोजन और फास्फोरस दोनों को एक साथ ठीक कर सकते हैं. मगर लैब में मिली सफलताओं को क्षेत्रीय स्तर पर टेस्ट नहीं किया जा सका. हार्डकोर जेनेटिक इंजीनियरिंग और बायोटेक्नोलॉजी की मदद से ऐसे स्ट्रेन बनाए गए थे, मगर उसके लाभ आशंकाओं के कारण धरातल तक नहीं पहुंचा. ये सारे नतीजे किताबों में ही बने रहे और सभी स्ट्रेन -80 डिग्री सेल्सियस पर कोल्ड स्टोरेज में रखे रह गए.

हाल ही में, जेनिटिकल इंजीनियरिंग की मदद से मिट्टी में रहने वाले एक बैक्टिरियल स्ट्रेन एज़ोटोबैक्टरविनलैंडी को विकसित किया गया था. इसकी खासियत यह है कि यह वायुमंडलीय नाइट्रोजन को अमोनिया में बदल देता है. हर स्ट्रेन सभी तरह की परिस्थिति में न सिर्फ अमोनिया बनाता है बल्कि इसका कंस्ट्रेशन भी अधिक होता है. टेस्ट के दौरान इस स्ट्रेन ने धान की फसलों को अमोनिया देने में काफी मदद की. अब सभी तरह की फसलों के हिसाब से स्ट्रेन विकसित किए जा रहे हैं, क्योंकि हर एक फसल के लिए अमोनिया की जरूरत अलग-अलग होती है.

खेती में जेनिटकली मॉडिफाई स्ट्रेन के उपयोग से पर्यावरण और किसानों को कई फायदे मिलेंगे. इसे अपनाने से प्रदूषण में कमी होगी, साथ ही मिट्टी में नाइट्रोजन चक्र का प्रबंधन होगा. फसलों की उत्पादन लागत कम होने से किसानों के लाभ मार्जिन में बढ़ोतरी होगी. सबसे अधिक महत्वपूर्ण यह है कि इससे मिट्टी की उर्वरता में सुधार होगा और खाद्यान्न उत्पादन में स्थायी वृद्धि होगी.

इसी तरह, नैनो-प्रौद्योगिकियों को अपनाने से डीएपी के आयात पर हमारी निर्भरता कम होगी. उर्वरकों का न्यूनतम उपयोग से लॉजिस्टिक लागत पर भी बचत होगी. नियामक निकायों को ऐसे दिशा-निर्देश विकसित करने में सक्रिय होना चाहिए जो हमारी कृषि को टिकाऊ बनाने के लिए ऐसी तकनीकों को सुचारू रूप से अपनाने का मार्ग प्रशस्त करें. फर्टिलाइजर के उपयोग को मिट्टी-पोषण की स्थिति से जोड़ा जाना चाहिए. यह सुनिश्चित किया जाना जरूरी है कि किसानों में अत्यधिक मात्रा में उर्वरकों का उपयोग करने का जुनून कम हो.

डिस्क्लेमर : यह लेखक के निजी विचार है. ईटीवी भारत इसमें लिखे गए कंटेंट के लिए जिम्मेदार नहीं है.

पढ़ें : महिला दिवस विशेष: जब खेतों कि रखवाली करने बंदूक लेकर निकली पानीपत की किरण

हैदराबाद : जब देश में हरित क्रांति की शुरुआत हुई तब भारत के किसान धीरे-धीरे खेती के पारंपरिक तरीकों से अलग तकनीकों और उर्वरकों पर निर्भर हो गए. इस बदलाव के कारण देश कई फसलों के उगाने के मामले में आत्मनिर्भर बन गया. मगर इसका दूसरा पहलू यह है कि उर्वरकों के अधिक उपयोग के कारण पर्यावरण को काफी नुकसान हुआ. खासकर देश के अधिकतर राज्यों में खेती योग्य जमीन खराब होती चली गई. अब देश को एवर ग्रीन हरित क्रांति की जरूरत है.

कई वर्षों से भारत सरकार किसानों को सॉयल हेल्थ कार्ड बनाने के लिए जागरूक कर रही है, ताकि उन्हें पता चले कि उन्हें अपनी फसलों के लिए कितना फर्टिलाइजर का उपयोग करना है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मिट्टी की जांच और फर्टिलाइजर के उपयोग के लिए साइंटिस्ट की मदद लेने की अपील की है. मगर हमारे देश के किसान अभी फर्टिलाइजर के उपयोग के लिए वैज्ञानिक की राय से सहमत नहीं हैं.

वैज्ञानिक बताते हैं कि देश में अधिकतर हिस्सों में फर्टिलाइजर के अधिक उपयोग के कारण मिट्टी खराब हो चुकी है. मगर अभी कई ऐसी तकनीकें मौजूद हैं, जिसके उपयोग के कारण नाइट्रोजन और फास्फोरस वाले फर्टिलाइजर पर निर्भरता को कम किया जा सकता है.

जीवन को बनाए रखने के लिए नाइट्रोजन काफी महत्वपूर्ण है. जीवन को चलाने वाले दो अति आवश्यक बॉयोलॉजिकल मोलेक्यूल न्यूक्लिक एसिड और प्रोटीन नाइट्रोजन से बने होते हैं. प्रोटीन को बनाने वाली अमीनो एसिड और न्यूक्लियोटाइड भी अपनी संरचना और काम के लिए नाइट्रोजन पर निर्भर हैं. 75 प्रतिशत से अधिक वायुमंडल नाइट्रोजन गैस से भरा है. मगर सत्य है कि जानवर, पौधे और बैक्टिरिया हवा में मौजूद नाइट्रोजन को अमीनो एसिड और न्यूक्लियोटाइड में नहीं बदल सकते हैं.

कुछ नहीं दिखने वाले बैक्टिरिया नाइट्रोजन को अमोनिया में बदल सकते हैं. इसके अलावा कुछ पौधे भी इस अमोनिया को अमीनो एसिड और न्यूक्लियोटाइड में बदलकर उपयोग कर लेते हैं. केमिस्टों ने हाई टेंपरचर और हाई प्रेशर की मदद से हवा में मौजूद नाइट्रोजन को अमोनिया में कम करने के लिए हैबर प्रोसेस डिवेलप कर लिया. इसका लाभ तो तात्कालिक तौर से मिला मगर यूरिया महंगी हो गई. भारत सरकार फसलों को नाइट्रोजन जैसे पोषक तत्व उपलब्ध कराने वाले फर्टिलाइजर पर सब्सिडी दे रही है.

नाइट्रोजनेज एंजाइम बैक्टिरियल ग्रुप मिट्टी, पानी और पौधों के अंदर नाइट्रोजन के फिक्स करते हैं, ऐसी संरचनाओं को रूट नोड्यूल कहा जाता है. कुछ बैक्टीरिया वायुमंडलीय नाइट्रोजन को अमोनिया में परिवर्तित कर मिट्टी-पानी या पौधों के साथ सिम्बायोटिक नाइट्रोजन फिक्सेशन प्रक्रिया करते हैं. इस तरह यह जैविक फर्टिलाइजर यूरिया और डायमोनियम फॉस्फेट (डीएपी) जैसे सिंथेटिक उर्वरकों पर पौधों की निर्भरता को कम करते हैं. अभी बाजार में ऐसे जैव उर्वरक उपलब्ध हैं. मगर किसान अभी भी जैव उर्वरकों के बजाय केमिकल फर्टिलाइजर का उपयोग करना पसंद करते हैं. केमिकल फर्टिलाइजर के उपयोग से छोटे किसानों की कृषि लागत बढ़ जाती है.

आज के दौर में नैनो टेक्नोलॉजी से खेती की जा सकती है. इसके लिए नैनो फर्टिलाइजर का उपयोग भी किया जा सकता है. इंडियन फर्टिलाइजर इंडियन फार्मर्स फर्टिलाइजर्स कोऑपरेटिव लिमिटेड (इफ्को) ने यूरिया के नैनो लिक्विड फॉर्मूलेशन विकसित किए हैं. इसकी खासियत यह है कि जिन फसलों में एक बैग यूरिया की जरूरत होती है, उसमें एक लीटर नैनो-यूरिया डाला जा सकता है. इसके अलावा इफ्को नैनो-डीएपी और अन्य फर्टिलाइजर के विकल्प पर भी काम कर रही है. इफ्को की ओर से विकसित नैनो-डीएपी की टेस्टिंग की जा रही है. दिलचस्प बात यह है कि भारतीय बाजार में इसे उपलब्ध कराने के लिए वैकल्पिक नैनो-टेक्नोलॉजी का उपयोग किया जा रहा है.

दो दशक पहले भारत सरकार ने जैव प्रौद्योगिकी विभाग ने हाइपर नाइट्रोजन-फिक्सिंग बैक्टीरिया स्ट्रेन के निर्माण के लिए नैशनल नेटवर्क प्रोजेक्ट शुरू किए थे. इसके बाद से ऐसे स्ट्रेन डिजाइन किए गए, जो नाइट्रोजन और फास्फोरस दोनों को एक साथ ठीक कर सकते हैं. मगर लैब में मिली सफलताओं को क्षेत्रीय स्तर पर टेस्ट नहीं किया जा सका. हार्डकोर जेनेटिक इंजीनियरिंग और बायोटेक्नोलॉजी की मदद से ऐसे स्ट्रेन बनाए गए थे, मगर उसके लाभ आशंकाओं के कारण धरातल तक नहीं पहुंचा. ये सारे नतीजे किताबों में ही बने रहे और सभी स्ट्रेन -80 डिग्री सेल्सियस पर कोल्ड स्टोरेज में रखे रह गए.

हाल ही में, जेनिटिकल इंजीनियरिंग की मदद से मिट्टी में रहने वाले एक बैक्टिरियल स्ट्रेन एज़ोटोबैक्टरविनलैंडी को विकसित किया गया था. इसकी खासियत यह है कि यह वायुमंडलीय नाइट्रोजन को अमोनिया में बदल देता है. हर स्ट्रेन सभी तरह की परिस्थिति में न सिर्फ अमोनिया बनाता है बल्कि इसका कंस्ट्रेशन भी अधिक होता है. टेस्ट के दौरान इस स्ट्रेन ने धान की फसलों को अमोनिया देने में काफी मदद की. अब सभी तरह की फसलों के हिसाब से स्ट्रेन विकसित किए जा रहे हैं, क्योंकि हर एक फसल के लिए अमोनिया की जरूरत अलग-अलग होती है.

खेती में जेनिटकली मॉडिफाई स्ट्रेन के उपयोग से पर्यावरण और किसानों को कई फायदे मिलेंगे. इसे अपनाने से प्रदूषण में कमी होगी, साथ ही मिट्टी में नाइट्रोजन चक्र का प्रबंधन होगा. फसलों की उत्पादन लागत कम होने से किसानों के लाभ मार्जिन में बढ़ोतरी होगी. सबसे अधिक महत्वपूर्ण यह है कि इससे मिट्टी की उर्वरता में सुधार होगा और खाद्यान्न उत्पादन में स्थायी वृद्धि होगी.

इसी तरह, नैनो-प्रौद्योगिकियों को अपनाने से डीएपी के आयात पर हमारी निर्भरता कम होगी. उर्वरकों का न्यूनतम उपयोग से लॉजिस्टिक लागत पर भी बचत होगी. नियामक निकायों को ऐसे दिशा-निर्देश विकसित करने में सक्रिय होना चाहिए जो हमारी कृषि को टिकाऊ बनाने के लिए ऐसी तकनीकों को सुचारू रूप से अपनाने का मार्ग प्रशस्त करें. फर्टिलाइजर के उपयोग को मिट्टी-पोषण की स्थिति से जोड़ा जाना चाहिए. यह सुनिश्चित किया जाना जरूरी है कि किसानों में अत्यधिक मात्रा में उर्वरकों का उपयोग करने का जुनून कम हो.

डिस्क्लेमर : यह लेखक के निजी विचार है. ईटीवी भारत इसमें लिखे गए कंटेंट के लिए जिम्मेदार नहीं है.

पढ़ें : महिला दिवस विशेष: जब खेतों कि रखवाली करने बंदूक लेकर निकली पानीपत की किरण

Last Updated : Mar 17, 2022, 5:06 PM IST
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