नई दिल्ली : फेसबुक पर भारत में ही सिर्फ आरोप नहीं लगे हैं, बल्कि दुनिया के कई देशों में विपक्षी पार्टियों ने पहले भी सत्ताधारी पार्टी के हित में काम करने का आरोप लगा चुके हैं.
मगर सवाल यहां यह उठता है कि क्या संसदीय समिति के अध्यक्ष फेसबुक को समन भेजकर संबंधित अधिकारी को पेश होने के लिए बाध्य कर सकते हैं. क्या संसदीय समिति के पास यह अधिकार प्राप्त हैं.
फेसबुक और ट्विटर पर पहले भी कई देशों में सत्ताधारी पार्टी के लाभ पहुंचाने के आरोप लग चुके हैं. संसद की सूचना से संबंधित संसदीय समिति के अध्यक्ष और कांग्रेस नेता शशि थरूर ने इस मामले पर फेसबुक को नोटिस भेजकर संसदीय समिति में सदस्यों के सामने सफाई रखने की बात लिखी है, जिसे लेकर संसदीय प्रणाली में सत्ताधारी पार्टी के सदस्यों ने सवाल खड़ा कर दिया है.
गौरतलब है कि ज्यादातर संसदीय समितियों में बीजेपी और एनडीए के खेमे में सांसदों की संख्या ज्यादा होने की वजह से इन समितियों में में भी उनके पास बहुमत है. एनडीए सांसदों के बहुमत से ही चल रही है, जिनके सदस्यों में एक भाजपा सांसद निशिकांत दुबे ने शशि थरूर पर सवाल उठाते हुए कहा कि जब इस समिति के ज्यादातर सांसद अध्यक्ष के बात से सहमत नहीं हैं तो, फिर ऐसे में शशि थरूर फेसबुक के अधिकारियों को समिति में कैसे बुला सकते हैं.
क्या है संसदीय समितियों की अधिकार
संवैधानिक नियमों के अनुसार एक संसदीय समिति का अधिकार क्षेत्र एक न्यायालय के समान ही वैकल्पिक तौर पर होता है. वह संसदीय समिति के समक्ष किसी को भी पेश होने का आग्रह कर सकती है, मगर उस समिति के ज्यादातर सदस्यों में उस विषय पर सहमति होनी चाहिए.
यहां फेसबुक के अधिकारियों को बुलाने पर सूचना से संबंधित संसदीय समिति के ज्यादातर भाजपा सांसद शशि थरूर के निर्देश से सहमत नहीं है. भाजपा सांसद निशिकांत दुबे ने यह आरोप लगाया कि संवैधानिक नियमों के अनुसार किसी भी समन को संसद के सेक्रेटरी जनरल के नियमों के अनुसार एक गवाह के होने की भी जरूरत होती है, मगर शशि थरूर ने संसदीय नियमों का पालन नहीं किया.
वैसे तो पार्लियामेंट्री कमेटियों को संसद का विस्तारित भाग ही माना जाता है और विधायी कार्यों में मदद के लिए इन समितियों का गठन किया जाता है. यह समितियां संसद के अधिकारियों के निर्देश पर काम करती हैं. संसद से संबंधित 24 विभाग और मंत्रालयों से संबंधित स्टैंडिंग कमेटी है, जिनमें से 16 लोकसभा के लिए और 8 राज्यसभा के लिए हैं.
आईटी जिसे सूचना कमेटी भी कहा जाता है. इसमें 20 सांसद लोकसभा और 9 राज्यसभा से होते हैं. इस कमेटी में 15 सांसद भाजपा और चार सासंद कांग्रेस के है, जिनमें से एक थरूर भी हैं. दो तृणमूल कांग्रेस और वाईएसआरसीपी के, दो निर्दलीय सांसद और 11 शिवसेना टीआरएस, सीपीएम, एलजेएसपी, और डीएमके के सांसद हैं, जिसके अध्यक्ष कांग्रेस सांसद शशि थरूर ही हैं.
कमेटी के पास है समन का अधिकार
संविधान विशेषज्ञ सुभाष कश्यप ने ईटीवी भारत को बताया कि कोई भी कमेटी किसी संस्था या व्यक्ति से किसी विषय पर सफाई देने के लिए समन कर सकती है. मगर उसके पास कार्यकारी सत्या नहीं है, उस व्यक्ति को या उस संस्था को एक गवाह के तौर पर बुलाया जा सकता है. किसी भी पार्लियामेंट्री कमेटी के सामने पेश होने का समन एक कोर्ट के समन के समान ही माना जाता है.
अगर बुलाए गए मेहमान उसमें उपस्थित नहीं होते हैं तो, उन्हें इस संबंध में लिखित तौर पर जवाब देना होता है. इन सब में सबसे जरूरी बात यह है किस समिति के अध्यक्ष के पास सदस्यों का बहुमत में समर्थन होना चाहिए. समिति का कोई भी सदस्य किसी बैठक को बुला सकता है, अगर उसके पास बहुमत का समर्थन है. यदि बहुमत सदस्य इस निमंत्रण के खिलाफ हो, तो इसको रद्द भी करना पड़ सकता है.
इस मामले में अगर देखें तो, इस समिति के ज्यादातर बीजेपी के सांसद अध्यक्ष शशि थरूर के सामान का विरोध कर रहे हैं. ऐसे में शशि थरूर की तरफ से फेसबुक के अधिकारियों को किया गया सामान कितना कारगर होगा यह समिति की बैठक में ही पता चल पाएगा.