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सुशांत आत्महत्या मामला : जानें बॉलीवुड में परिवारवाद पर क्या कहते हैं विशेषज्ञ

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Published : Jul 11, 2020, 8:31 PM IST

Updated : Jul 11, 2020, 9:58 PM IST

उभरते कलाकार सुशांत सिंह राजपूत की मौत के बाद बॉलीवुड में परिवारवाद यानी नेपोटिज्म को लेकर कई सवाल खड़े हो रहे हैं. ऐसे में ईटीवी भारत ने मायानगरी मुंबई को करीब से समझने वाले दो वरिष्ठ पत्रकारों पराग छापेकर और संजय प्रभाकर से खास बातचीत की.

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क्या बॉलीवुड में नेपोटिज्म है खतरनाक

नई दिल्ली : हाल ही में बॉलीवुड कलाकार सुशांत सिंह राजपूत की मौत से उनके प्रशंसकों के साथ-साथ अन्य लोग भी दुखी हैं. सुशांत की मौत के बाद से ही फिल्म इंडस्ट्री पर कई तरह के सवाल उठने शुरू हो गए हैं. मानानगरी मुंबई कलाकारों का एक हब मानी जाती है, जहां लोग सुनहरे भविष्य के सपने आंखों में लिए अपनी किस्मत आजमाने जाते हैं, लेकिन तमाम घटनाओं के बाद फिल्म निर्माताओं, कलाकारों समेत पूरी इंडस्ट्री पर सवाल उठ रहे हैं. परिवारवाद (नेपोटिज्म) पर मायानगरी मुंबई को लेकर खूब बहसें हुईं. इन सभी मसलों पर ईटीवी भारत के रीजनल एडिटर ब्रज मोहन सिंह ने बात की दो दशक से फिल्म इंडस्ट्री को कवर कर रहे वरिष्ठ पत्रकार पराग छापेकर और लंबे अर्से से क्राइम व अंडरवर्ल्ड का कवरेज कर रहे सीनियर जर्नलिस्ट संजय प्रभाकर से. देखें बातचीत के प्रमुख अंश...

जानें नेपोटिज्म पर क्या है विशेषज्ञों की राय...

ईटीवी भारत से बातचीत में पराग छापेकर ने कहा कि यहां हर कलाकार अपने बच्चे को ही लॉन्च करना चाहेगा. वहीं बाहर से आए किसी कलाकार की यदि कोई फिल्म फ्लॉप हो जाती है, तो उसे तुरंत बाहर कर देते हैं. अगर स्टार किड की कोई फिल्म लॉन्च होकर फ्लॉप हो जाए, तो उसे उसके बाद तीन से चार फिल्में करने का मौका मिलता है. फर्क बस इतना है, लेकिन हर बार परिवारवाद काम नहीं करता. यश चोपड़ा के बेटे की बात करें या फिर गुलशन कुमार के भाई की. कहीं परिवारवाद काम नहीं आया.

बॉलीवुड में तमाम सितारे ऐसे भी हैं, जो अपने टेलेंट की वजह से इंडस्ट्री में आए. राजकुमार राव, नवाजुद्दीन सिद्दिकी, कार्तिक आर्यन, पंकज त्रिपाठी, आयुष्मान खुराना इसका एक जीता-जागता उदाहरण हैं.

उन्होंने कहा कि यदि आपके अंदर योग्यता है, तो कोई आपको रोक नहीं सकता. फर्क यही है कि स्टार किड्स के पास खुद को साबित करने के कई मौके होते हैं.

सुशांत सिंह राजपूत से कुछ फिल्में वापस लेने को लेकर उन्होंने कहा कि यह ऐसा मुद्दा है, जो हो सकता है दो-तीन लोगों के बीच में हुआ.

अपनी अंतिम फिल्म को वह ओटीटी में रिलीज नहीं करना चाहते थे. इस वजह से भी कुछ अनबन हुई होगी.

वहीं ईटीवी भारत से बातचीत में संजय प्रभाकर ने कहा कि मुंबई पुलिस इस पूरे मामले की गहनता से जांच कर रही है. मामला परिवारवाद से बढ़कर है. नेपोटिज्म कहां नहीं है. डॉक्टर भी अपने बेटे को ही डॉक्टर बनाना चाहेगा.

उन्होंने कहा कि यहां 'वाइट कॉलर ऑर्गनाइज्ड सिंडिकेट' चल रहा है. जब सभी बड़े लोग आपस में मिल जाते हैं, तो वह ऐसे लोगों को किक आउट कर देते हैं.

वहीं पराग छापेकर ने इसे आईएएस परीक्षा से भी मुश्किल इंडस्ट्री बताया.

संजय प्रभाकर ने कहा कि नेपोटिज्म हर जगह है, लेकिन बॉलीवुड में चल रहे वाइट कॉलर ऑर्गनाइज्ड सिंडिकेट को तोड़ने की जरूरत है.

उन्होंने कहा कि अंडरवर्ल्ड का भी बॉलीवुड से पुराना नाता रहा है.

सुशांत सिंह राजपूत मामले को लेकर संजय प्रभाकर ने कहा कि कथित आत्महत्या को मौत के एंगल से देखा जा रहा है. पुलिस फिजूल में सबको नहीं बुलाती है, जिन्हें गवाही के तौर पर ले सकती है, उन्हें ही बुलाया जाता है.

इसके साथ ही सुशांत की अगर बात करें, तो यशराज फिल्म्स में रहते हुए भी उन्हें क्यों फिल्में नहीं दी गईं. इस मामले को लेकर भी पुलिस लगातार पूछताछ कर रही है. संजय लीला भंसाली का बयान भी दर्ज किया गया है.

सुशांत की खुदखुशी को लेकर करन जौहर और सलमान खान पर उंगली उठाए जाने को लेकर पराग छापेकर ने कहा कि एक उभरते कलाकार को आत्महत्या की तरफ धकेलने वाला भी उतना ही अपराधी माना जाता है.

उन्होंने आगे कहा कि मानवीय विकृति और संवेदनाएं हर जगह काम करती हैं.

सुशांत ने उन सभी कलाकारों के साथ काम किया है, जिनके साथ काम करना किसी भी उभरते कलाकार का सपना होता है.

बॉलीवुड में फिल्मों के लिए स्क्रीन को लेकर संजय प्रभाकर ने कहा कि अच्छी फिल्म बना लेने के बाद भी आपको उसे रिलीज करने के लिए सही स्क्रीन नहीं मिल पाती. स्क्रीन अलॉट करने का यहां दबदबा होता है.

जाहिर है, बॉलीवुड को नई प्रतिभाताओं के लिए दरवाजे खोलने होंगे, तभी लोगों का भरोसा बॉलीवुड पर बना रहेगा.

नई दिल्ली : हाल ही में बॉलीवुड कलाकार सुशांत सिंह राजपूत की मौत से उनके प्रशंसकों के साथ-साथ अन्य लोग भी दुखी हैं. सुशांत की मौत के बाद से ही फिल्म इंडस्ट्री पर कई तरह के सवाल उठने शुरू हो गए हैं. मानानगरी मुंबई कलाकारों का एक हब मानी जाती है, जहां लोग सुनहरे भविष्य के सपने आंखों में लिए अपनी किस्मत आजमाने जाते हैं, लेकिन तमाम घटनाओं के बाद फिल्म निर्माताओं, कलाकारों समेत पूरी इंडस्ट्री पर सवाल उठ रहे हैं. परिवारवाद (नेपोटिज्म) पर मायानगरी मुंबई को लेकर खूब बहसें हुईं. इन सभी मसलों पर ईटीवी भारत के रीजनल एडिटर ब्रज मोहन सिंह ने बात की दो दशक से फिल्म इंडस्ट्री को कवर कर रहे वरिष्ठ पत्रकार पराग छापेकर और लंबे अर्से से क्राइम व अंडरवर्ल्ड का कवरेज कर रहे सीनियर जर्नलिस्ट संजय प्रभाकर से. देखें बातचीत के प्रमुख अंश...

जानें नेपोटिज्म पर क्या है विशेषज्ञों की राय...

ईटीवी भारत से बातचीत में पराग छापेकर ने कहा कि यहां हर कलाकार अपने बच्चे को ही लॉन्च करना चाहेगा. वहीं बाहर से आए किसी कलाकार की यदि कोई फिल्म फ्लॉप हो जाती है, तो उसे तुरंत बाहर कर देते हैं. अगर स्टार किड की कोई फिल्म लॉन्च होकर फ्लॉप हो जाए, तो उसे उसके बाद तीन से चार फिल्में करने का मौका मिलता है. फर्क बस इतना है, लेकिन हर बार परिवारवाद काम नहीं करता. यश चोपड़ा के बेटे की बात करें या फिर गुलशन कुमार के भाई की. कहीं परिवारवाद काम नहीं आया.

बॉलीवुड में तमाम सितारे ऐसे भी हैं, जो अपने टेलेंट की वजह से इंडस्ट्री में आए. राजकुमार राव, नवाजुद्दीन सिद्दिकी, कार्तिक आर्यन, पंकज त्रिपाठी, आयुष्मान खुराना इसका एक जीता-जागता उदाहरण हैं.

उन्होंने कहा कि यदि आपके अंदर योग्यता है, तो कोई आपको रोक नहीं सकता. फर्क यही है कि स्टार किड्स के पास खुद को साबित करने के कई मौके होते हैं.

सुशांत सिंह राजपूत से कुछ फिल्में वापस लेने को लेकर उन्होंने कहा कि यह ऐसा मुद्दा है, जो हो सकता है दो-तीन लोगों के बीच में हुआ.

अपनी अंतिम फिल्म को वह ओटीटी में रिलीज नहीं करना चाहते थे. इस वजह से भी कुछ अनबन हुई होगी.

वहीं ईटीवी भारत से बातचीत में संजय प्रभाकर ने कहा कि मुंबई पुलिस इस पूरे मामले की गहनता से जांच कर रही है. मामला परिवारवाद से बढ़कर है. नेपोटिज्म कहां नहीं है. डॉक्टर भी अपने बेटे को ही डॉक्टर बनाना चाहेगा.

उन्होंने कहा कि यहां 'वाइट कॉलर ऑर्गनाइज्ड सिंडिकेट' चल रहा है. जब सभी बड़े लोग आपस में मिल जाते हैं, तो वह ऐसे लोगों को किक आउट कर देते हैं.

वहीं पराग छापेकर ने इसे आईएएस परीक्षा से भी मुश्किल इंडस्ट्री बताया.

संजय प्रभाकर ने कहा कि नेपोटिज्म हर जगह है, लेकिन बॉलीवुड में चल रहे वाइट कॉलर ऑर्गनाइज्ड सिंडिकेट को तोड़ने की जरूरत है.

उन्होंने कहा कि अंडरवर्ल्ड का भी बॉलीवुड से पुराना नाता रहा है.

सुशांत सिंह राजपूत मामले को लेकर संजय प्रभाकर ने कहा कि कथित आत्महत्या को मौत के एंगल से देखा जा रहा है. पुलिस फिजूल में सबको नहीं बुलाती है, जिन्हें गवाही के तौर पर ले सकती है, उन्हें ही बुलाया जाता है.

इसके साथ ही सुशांत की अगर बात करें, तो यशराज फिल्म्स में रहते हुए भी उन्हें क्यों फिल्में नहीं दी गईं. इस मामले को लेकर भी पुलिस लगातार पूछताछ कर रही है. संजय लीला भंसाली का बयान भी दर्ज किया गया है.

सुशांत की खुदखुशी को लेकर करन जौहर और सलमान खान पर उंगली उठाए जाने को लेकर पराग छापेकर ने कहा कि एक उभरते कलाकार को आत्महत्या की तरफ धकेलने वाला भी उतना ही अपराधी माना जाता है.

उन्होंने आगे कहा कि मानवीय विकृति और संवेदनाएं हर जगह काम करती हैं.

सुशांत ने उन सभी कलाकारों के साथ काम किया है, जिनके साथ काम करना किसी भी उभरते कलाकार का सपना होता है.

बॉलीवुड में फिल्मों के लिए स्क्रीन को लेकर संजय प्रभाकर ने कहा कि अच्छी फिल्म बना लेने के बाद भी आपको उसे रिलीज करने के लिए सही स्क्रीन नहीं मिल पाती. स्क्रीन अलॉट करने का यहां दबदबा होता है.

जाहिर है, बॉलीवुड को नई प्रतिभाताओं के लिए दरवाजे खोलने होंगे, तभी लोगों का भरोसा बॉलीवुड पर बना रहेगा.

Last Updated : Jul 11, 2020, 9:58 PM IST
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