ऊना: हिमाचल प्रदेश को देवी देवताओं की भूमि के नाम से जाना है. यहां बड़ी संख्या में मंदिर मौजूद हैं. जो लोगों की आस्था व श्रद्धा के प्रतीक हैं. ऐसा ही एक अनोखा मंदिर ऊना जिला की कुटलैहड़ विधानसभा क्षेत्र में मौजूद है.
इस मंदिर का निर्माण कार्य पाण्डवों द्वारा अज्ञातवास के दौरान विश्वकर्मा की देख रेख में किया गया था. इस मंदिर की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि उत्तर भारत का पहला ऐसा मंदिर है जिसमें विराजमान शिवलिंग के चार मुख हैं. मान्यता है कि पांडवों द्वारा एक ही शिला से इस शिवलिंग का निर्माण किया गया था. जो आज भी चौमुखा गांव में मौजूद है और जो श्रद्धालुओं की श्रद्धा व आस्था का प्रतीक है.
सैकड़ों की संख्या में श्रद्धालु यहां आकर शीश नवाते हैं और अपनी मनोकनाओं को पूर्ण करते हैं. इस मंदिर की सबसे बड़ी खासियत यह है कि इस मंदिर में मौजूद शिवलिंग का निर्माण एक ही शिला से किया गया है. माना जाता है कि अज्ञावास के दौरान पांडवों, विश्वकर्मा व श्री कृष्ण जी की देख रेख में इस मंदिर का निर्माण किया गया था. यह मंदिर सोलाहसिंगी धार पर स्थित है. जहां से ऊना जिले में मौजूद गोविंद सागर झील का सुंदर नजारा देखने को मिलता है. वहीं, इस मंदिर के प्रांगण में बरगद का काफी पुराना पेड़ अभी भी मौजूद है.
वहीं, मंदिर के पुजारी किशोरी लाल शर्मा की मानें तो इस मंदिर का निर्माण पांच हजार वर्ष पूर्व पांडवों द्वारा अज्ञातवास के दौरान विश्वकर्मा और श्रीकृष्ण की देख रेख में किया गया था. यह उतरी भारत का एक मात्र ऐसा प्राचीन मंदिर है, जिसका शिवलिंग चार मुखों वाला हैं, यही नहीं इस मंदिर के चारों तरफ दरवाजों का निर्माण भी किया गया था.
ये दरवाजे सोने की धातु से बनाये गए थे. कुछ समय पश्चात लुटेरों ने इन दरवाजों को चुरा लिया, लेकिन लुटेरे जब इन दरवाजों को चुराकर ले जा रहे थे, तो अचानक इन दरवाजों का वजन अत्याधिक बढ़ गया. जिसे वे उठाने में असमर्थ रहे तो उन्होंने इन दरवाजों को साथ लगते हमीरपुर जिले के राजनौंण में फेंक दिया. थोड़ी देर बाद दरवाजे पत्थर में तबदील हो गए.
इस राजनौंण का निर्माण भी पांडवों द्वारा ही किया गया था. जो आज भी यहां पर मौजूद है. जो लोगों की श्रद्धा व आस्था का प्रतीक है. इस मंदिर के प्रांगण में एक बहुत लंबी गुफा का भी निर्माण किया गया था. जिसका उपयोग लोगों द्वारा पहले आने जाने के लिए किया जाता था, लेकिन समय में परिवर्तन होने के साथ साथ ही इस गुफा को बंद कर दिया गया, लेकिन मौजूदा समय में केवल गुफा का थोड़ा सा हिस्सा ही दिखाई देता है. इस मंदिर में सैंकड़ों की संख्या में श्रद्धालु शीश नवाने पहुंचते हैं.
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